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फाल्के पुरस्कार पाकर खुश हैं सौमित्र चटर्जी

फाल्के पुरस्कार पाकर खुश हैं सौमित्र चटर्जी
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नई दिल्ली।
लगभग एक दशक पहले राष्ट्रीय फिल्म पुरस्कार ठुकराने वाले बंगाल के चर्चित अभिनेता सौमित्र चटर्जी दादा साहब फाल्के पुरस्कार पाकर गौरवान्वित महसूस कर रहे हैं और उनका मानना है कि इस पुरस्कार ने देशवासियों पर उनके भरोसे को सही साबित किया है।

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सौमित्र चटर्जी ने कहा, मैं बहुत खुश हूं और अच्छा लग रहा है। कम से कम यह पुरस्कार तो किसी तरह की राजनीति से परे था। इससे देशवासियों पर मेरा भरोसा सही साबित हुआ है। मैं पिछले 50 से भी ज्यादा साल से काम कर रहा हूं और मुझे खुशी है कि मेरे काम को सराहा गया।

दादा साहब फाल्के पुरस्कार ज्यूरी ने प्राण, मनोज कुमार और वैजंतीमाला पर तरजीह देकर इस साल सिनेमा के इस सर्वोच्च पुरस्कार के लिए चटर्जी को चुना। चटर्जी ने राष्ट्रीय फिल्म पुरस्कार समिति पर पक्षपात का आरोप लगाकर 2001 में सर्वश्रेष्ठ अभिनेता का विशेष ज्यूरी पुरस्कार ठुकरा दिया था। महान फिल्मकार सत्यजीत राय की फिल्मों में मुख्य अभिनेता रहे चटर्जी उन्हें श्रेय देने से नहीं चूकते। उन्होंने कहा, जो कुछ भी मैं आज हूं वह राय की बदौलत ही हूं। यदि निर्देशक उनके जैसा महान कलाकार नहीं होता तो मैं शायद अच्छा अभिनय नहीं कर पाता।

उन्होंने 1959 में राय की सुपरहिट फिल्म अपूर संसार के जरिए फिल्मों में पदार्पण किया था। वह सोनार केला, चारुलता, घरे-बाहरे जैसी उनकी क्लासिक फिल्मों के मुख्य अभिनेता रहे। उन्होंने तपन सिन्हा और मृणाल सेन जैसे समानांतर सिनेमा के दो अन्य दिग्गजों के साथ भी काम किया।

कला और साहित्य से करीब से जुड़े रहे चटर्जी का मानना है कि तमाम तकनीकी प्रगति के बावजूद सिनेमा की आत्मा जीवित रहेगी। उन्होंने कहा, लोग कहते हैं कि बंगाल में सिनेमा खत्म हो रहा है लेकिन मुझे ऐसा नहीं लगता। कई बार हमारे आसपास काफी प्रतिभाशाली लोग होते हैं, लेकिन हम उन्हें देख नहीं पाते। हमारे यहां भी कई प्रतिभाशाली फिल्मकार हैं, हालांकि मैं उनका नाम नहीं लेना चाहता।

इस 77 वर्षीय अभिनेता ने कहा, मुझे यकीन है कि सिनेमा का भविष्य उज्ज्वल है। अतीत में जो था, वैसा तो नहीं हो सकता लेकिन तकनीकी प्रगति के बावजूद सिनेमा की आत्मा नहीं मरी है। रंगमंच के प्रति अपने जुनून के लिए विख्यात पद्म भूषण पुरस्कार प्राप्त चटर्जी ने कहा कि रंगमंच उनका पहला प्यार है। उन्होंने कहा, मुझे नाटकों का निर्देशन करना सबसे ज्यादा पसंद है। निर्देशन और एक नाटक को रंगमंच पर अभिव्यक्त करना मुझे सबसे ज्यादा रोमांचित करता है।

वह हिन्दी फिल्में नहीं देखते लेकिन श्याम बेनगल का काम उन्हें पसंद है। उन्होंने कहा, मैं बॉलीवुड फिल्में नहीं देखता लेकिन श्याम बेनगल ने मुझे काफी प्रभावित किया। वह अपने फन के उस्ताद हैं। मुझे मुख्यधारा के सिनेमा से कोई परेशानी नहीं बल्कि मेरा मानना है कि ए काफी सशक्त माध्यम है। मसलन शोले अच्छे फिल्म निर्माण का उम्दा उदाहरण है।

Updated : 22 March 2012 12:00 AM GMT
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