Home > Archived > जनमानस

जनमानस

दरिन्दों को फांसी जरूरी है


बाते दिन दिल्ली में जो शर्मसार करने वाली घटना घटी, वह निश्चित ही मर्दानगी पर कलंक है। क्योंकि मर्द कभी भी नारी या कमजोर को सताते नहीं बल्कि उनकी रक्षा करते हैं। इस घटित घटना जैसा कलंकित कारनामा लकड़बग्घों की तरह बहसी, क्रूर, जालिमी था जो कायरता की अमानवीयता की हदें पार हुई दिखाता है। पूरे देश में ना जाने कितने बलात्कार हर रोज होते हैं लेकिन ये कुकर्मी धन, बल राजनीतिक की सपोर्ट के कारण कुछ समय बाद छूट जाते हैं और फिर से ऐसी घटनाएं निरन्तर होती रहती हैं क्योंकि उनके अपराधियों के दिमाग में फांसी या मौत का भयानक खौफ नहीं होता है। अर्थात फांसी या मौत या फिर आखिरी सांस तक जेल की सजा जरूरी है ऐसे दरिंदों को। साथ में उन लड़कियों को भी कहना चाहूंगा जो मुंह पर कपड़ा बांध कर गलत संगत को अंजाम देती हैं और माता-पिता को, भाई बंधुओं को बेशर्मी रूपी कलंक लगा देती हैं। क्योंकि हरेक लड़की मां बाप के लिए जान से बढ़कर इज्जत होती है और हर भाई के लिए बहन सर उठाकर जीने के लिए मान सम्मान होता है। अत: लड़कियों को बहनों को अपने अन्दर की दुर्गा को जीवित रखते हुए नारी शक्ति बनकर घर परिवार, समाज देश का गौरव बनकर जीना चाहिए तब किसी भी आदमखौर की हिम्मत नहीं पड़ सकती कि कोई गलत निगाह से देख सके।
उदयभान रजक, ग्वालियर

भारतीय खेलों की दुर्दशा


जब से सरकार द्वारा विलायती खेल क्रिकेट और क्रिकेटरों को मान-सम्मान देना शुरू किया, तभी से भारतीय देशी खेलों की हालत बिगडऩा शुरू हुई। सरकार ने देशी खेलने और उसके खिलाडिय़ों के साथ दोयम दर्जे का व्यवहार शुरू किया, तभी से अन्तर्राष्ट्रीय स्तर पर गिरावट आने लगी। यही कारण है कि ओलम्पिक खेलों में देशी खेलों के खिलाड़ी स्वर्ण पदक नहीं ला सके। यदि सरकार देशी खेलों और उसके खिलाडिय़ों को प्रोत्साहन देना चाहती है तो खिलाडिय़ों को आर्थिक सहायता और बिना बारी के पदोन्नति देना चाहिए। सरकार को खेल संगठनों में राजनेता कम, खिलाडिय़ों को भर्ती करना चाहिए।

अनिल कोथुलकर, इन्दौर




Updated : 24 Dec 2012 12:00 AM GMT
Next Story
Top