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मंहगाई व मंदी से ईंट उद्योग पर बंदी की मार, दो दर्जन से अधिक लोगों को रोजगार देता एक ईंट भट्ठा

मंहगाई व मंदी से ईंट उद्योग पर बंदी की मार, दो दर्जन से अधिक लोगों को रोजगार देता एक ईंट भट्ठा
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बांदा।जिले में वैसे तो ज्यादातर लोगों का बसर खेती से चल रहा है, लेकिन कुछ लोग कुटीर उद्योग से जुड़े कार्यों से अपना रोजगार चला रहे हैं। इनमें एक काम ईंट निर्माण से जुड़ा हुआ है। अतर्रा के सर्मीपवर्ती गांवों में सालो से फल-फूल रहे ईंट उद्योग पर मंहगाई व मंदी का ग्रहण लग गया है। जिसके चलते यह कार्य बंदी के कगार पर पहुंचता जा रहा है। जबकि एक भट्ठे पर कम से कम दो दर्जन लागों को रोजगार मिल जाता है। इस काम से जुड़े लोगों का कहना है कि कोरोना महामारी के चलते आई मंदी और मंहगाई के कारण यहां का ईंट उद्योग सिमटता जा रहा है।

शहर के पल्हरी गांव के पास व अतर्रा के चिमनी पुरवा के निवासी जो ईंट बनाने का काम करते हैं इनका कहना है कि प्रति हजार ईट के लिए लगभग चार सौ रूपए कीमत की मिट्टी खरीदनी पड़ती है। जिसमें लगभग छह सौ रूपए प्रति हजार पथाई देनी पड़ती है। आठ सौ रूपए प्रति हजार कच्ची ईंट की ढुलाई में खर्च होते हैं। इसी प्रकार भट्टे में ईट लगवाने में मजदूरी खर्च प्रति हजार सात सौ रूपए आता है।

ईंधन में एक लाख ईंट लगवाने के लिए लगभग डेढ़ लाख रुपए कीमत की करीब सौ कुंतल लकड़ी लग जाती है । 5 हजार के कंडे और एक लाख कीमत का छह सौ फीट कोयला लग जाता है। इस प्रकार अन्य खर्चों सहित एक लाख ईंट का भट्ठा लगवाने का खर्च करीब चार लाख आ जाता है। जिसमें तैयार ईट लगभग 45 सौ रुपए प्रति हजार की दर से बेची जाती है। वहीं एक ईंट भट्ठे में लगभग दो दर्जन लोगों को रोजगार मिल जाता है आज से कुछ वर्षों पहले तक सैकड़ों की संख्या में देसी ईंट भट्ठे लगते थे जो अब सिमटते जा रहे हैं।

अतर्रा के ईंट भट्ठा व्यवसायी मर्हेंद्र सोनकर का कहना है कि एक समय था जब ईंट भट्ठा का काम बढ़िया चलता रहा है। लेकिन अब पहले जैसी बात नहीं है। इस पर ध्यान दिया जाना चाहिए। अतर्रा निवासी ईंट भट्ठा व्यसायी प्रकाश सोनकर बताते हैं कि इस काम को बढ़ावा दिया जाना चाहिए। चुनाव का समय है। नेताओं को इस पर भी ध्यान चाहिए ताकि इसे बढ़ावा मिल सके। ईंट भट्ठा व्यवसायी कृष्ण कुमार सोनकर का कहना है कि इस कार्य में हम लोग काफी समय से जुड़े हैं। लेकिन कुछ सालो से कोरोना महामारी से आई मंदी व मंहगाई से हमारा काम मंद पड़ गया है।

ईंट भट्ठा व्यवसायी अतर्रा निवासी बुद्धविलाश बताते हैं कि चिमनी पुरवा में काफी समय से ईंट का कारोबार चल रहा है, लेकिन अब मंहगाई व मंदी से काम पर असर पड़ रहा है।

चिमनी से नाम पड़ा चिमनी पुरवा

अतर्रा में नरैनी रोड के आस-पास ईंट भट्ठे लगने से उस इलाके का नाम चिमनी पुरवा पड़ गया था। इस इलाके में पहले कभी ईंट भट्ठे पकाने के लिए दो चिमनी भी चला करती थी।

Updated : 14 Feb 2022 11:29 AM GMT
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स्वदेश डेस्क

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