मंदिरों एवं संतों द्वारा अपने जन्मदिन पर केक काटना शर्मनाक-देवकी नंदन कुम्हेरिया
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मथुरा। सुप्रसिद्ध कवि, साहित्यकार एवं पत्रकार श्री देवकी नंदन कुम्हेरिया ने इस बात पर गहरा रोष व्यक्त किया है कि अब तो मंदिरों और संतों द्वारा भी अपने जन्मदिन पर केक काटा जा रहा है। उन्होंने कहा कि यह अत्यंत शर्मनाक हैं।
87 वर्षीय श्री कुम्हेरिया अपने जमाने की अत्यंत ख्याति प्राप्त हस्ती रहे हैं। वे अत्यंत विद्वान हैं। उन्होंने कई पुस्तकों की रचना भी की है। पिछले कुछ वर्ष पूर्व गिर जाने के कारण उनकी रीढ़ की हड्डी चटक गई थी। इस वजह से वे ज्यादा चल फिर नहीं पाते तथा गोवर्धन स्थित निवास पर ही रहते हैं।
विगत दिवस इस संवाददाता से फोन पर हुई बातचीत के दौरान उन्होंने वेदना व्यक्त करते हुए कहा कि गुप्ता जी हर क्षेत्र में गिरावट ही गिरावट हो रही है। यहां तक कि जो लोग संतों का आवरण डाले हुए हैं, वे भी अपनी मूल संस्कृति से विमुख होकर पाश्चात्य संस्कृति की ओर अग्रसर हो रहे हैं।
श्री कुम्हेरिया जी कहते हैं कि जब धर्म और संस्कृति के ठेकेदार बने ये तथाकथित संत ही अंग्रेजियत का अनुसरण करेंगे और बात-बात में महिलाओं तक से माई डियर-माई डियर करके बात करेंगे तो फिर हमारी संस्कृति धीरे-धीरे नष्ट ही हो जायेगी।
उल्लेखनीय है कि आज कल सच्चे संत तो नाम मात्र के है लेकिन संतों के नाम पर लुगाड़ों की बाढ़ आ गई है।
मजेदार बात तो यह है कि साधु-संतों के नाम पर कुछ नये-नये बाचाल लड़के भी कथा वाचक बनकर इस प्रतिस्पर्धा में शामिल हो रहे हैं। उनकी बोली भाषा और आंखों में झलकती वासना से स्पष्ट हो जाता है कि ये गाय की खाल में भेड़िये हैं। समय-समय पर अखबारों में छपी खबरों से स्थिति खुद ब खुद स्पष्ट हो जाती है। युवा तो युवा बुजुर्ग साधु वेशधारी लोग भी इस प्रतिस्पर्धा में शामिल हैं। वे मौका लगते ही सुंदर लड़कियों का चुम्बन लेने व उनसे आलिंगनबद्ध हो जाने से भी नहीं चूकते। कुम्हेरिया जी की वेदना एक दम सही है।
कुम्हेरिया जी कहते हैं कि पिछले दिनों मैंने अखबार में पढ़ा कि एक मंदिर में केक काटकर जन्मोत्सव मनाया। वे कहते हैं कि हद हो गई, ये सब क्या हो रहा है? केक काटना, फिर मोमबत्ती जलाकर फूंक मारना हमारी संस्कृति का हिस्सा नहीं है। फूंक मारने पर हवा के साथ थूक के छींटे स्वतः ही निकलते हैं और केक भी झूठा हो जाता है। फिर उस झूठे केक को प्रसाद की तरह बांट कर खाया जाता है।
उनका कहना है कि जन्मदिन पर भजन, कीर्तन, पूजा-पाठ, कथा, हवन आदि होने चाहिए तथा ठाकुर जी को खीर या हलवा आदि मिष्ठान का भोग लगना चाहिये। यह सब पोंगा पंथी गलत है।
जब बाबा ने पलटी मारी
कुम्हेरिया जी ने बातचीत के दौरान एक रोचक किस्सा भी सुनाया। वे कहते हैं कि बात लगभग तीन दशक पुरानी है। जब गोपबंधु पटनायक जिलाधिकारी थे तथा मानसी गंगा में सफाई अभियान जोर-शोर से चल रहा था।
उसी दौरान मैंने जागरण में एक खबर छापी जिसमें कहा था कि मानसी गंगा में अपार खजाना है। उस पर भी नजर रखी जानी चाहिये क्योंकि भरतपुर के राजा महाराजा खासकर राजा मान सिंह जिनका नाम ही मानसी गंगा के नाम पर रखा गया था, अक्सर मुठ्ठी भर-भर कर सोने की अशर्फियां और गिन्नी बीचों-बीच में फैंका करते थे (भेंट स्वरूप चढ़ाते थे)। इसके अलावा सफाई के ठेके में भी घालमेल के कुछ सवाल उठाये।
कुम्हेरिया जी बताते हैं कि इस समाचार के बाद सफाई अभियान में सक्रिय भूमिका अदा कर रहे एक बाबा ने मुझे बुलाया। मेरे जाते ही एकदम गंभीर मुद्रा में पहले पूछा कि यह समाचार किसने लिखा? इस पर मैंने कहा कि महाराज जी मैंने लिखा।
बस इतना सुनते ही बाबा बोले कि मुझे केवल बाबा ही मत समझना, तुम्हें हथकड़ियां डलवा दूंगा। इस पर मैंने भी उसी अंदाज में जबाव दिया कि मैं भी बृजवासी हूँ, मुझे भी ऐरा-गेरा मत समझना, बाबा मैं तुम्हारी धूल कूट दूंगा। बस इतना सुनते ही बाबा एक दम डाउन होकर पलट गऐ और बोले कि अरे मैं तो मजाक कर रहा था। उसके बाद जब-जब कही बाबा किसी कार्यक्रम में मिले तब-तब एकदम गहककर बात करते तथा कहते कि अरे भाई तुम तो हमारे बड़े पुराने स्नेही हो।
स्वदेश मथुरा
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