अचिन्त्य का अर्थ सभी दर्शनों व परंपराओं का समन्वय-आचार्य श्रीवत्स
—श्रीनिंबार्काचार्य वृंद महोत्सव के अंर्तगत अंतर्राष्ट्रीय संगोष्ठी सम्प्न्न
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वृन्दावन। श्रीनिंबार्काचार्य वृंद महोत्सव के 176वें समारोह के उपलक्ष्य में श्रीनिंबार्क कोट एवं वृन्दावन शोध संस्थान के संयुक्त तत्वाधान में अन्तर्राष्ट्रीय संगोष्ठी का आयोजन रमणरेती स्थित संस्थान के सभागार में किया गया, जिसमें विद्वानों ने द्वैताद्वैत एवं अन्य वैष्णव दर्शनों का तुलनात्मक अध्ययन विषय पर विचार व्यक्त किए।
आचार्य श्रीवत्स गोस्वामी ने कहा कि अचिन्त्य का अर्थ है सभी दर्शनों एवं परंपराओं का समन्वय। उन्होंने कहा कि हमारे आचार्यों ने सनातनी परंपरा को जो सूत्र दिए, वह अद्भुत है। इनसे आज विश्व लाभान्वित एवं प्रभावित है।
स्वामी महेशानंद सरस्वती ने सभी मतों के संदर्भ में विचार व्यक्त करते हुए कहा कि संस्थान के द्वारा ऐसे आयोजन हर्ष का विषय है। डा. शैलेंद्रनाथ पांडे ने कहा कि शंकर के अद्वैतवाद से पृथक मत निर्धारण के निमित्त ही समस्त वैष्णव दर्शनों का उद्भव हुआ। उन्होंने कहा कि जीव ब्रह्म से पृथक नहीं है, किंतु निंबार्क सहित अन्य संप्रदायों के अनुसार ब्रह्म और जगत की अपनी-अपनी सत्ता भी है, जिसे नकारा नहीं जा सकता। डा. प्रतापपाल शर्मा, मृदुलकान्त शास्त्री, पं. उदयन शर्मा, महामंडलेश्वर नवल गिरि, महंत फूलडोल बिहारीदास, प्राचार्य रामसुदर्शनाचार्य आदि ने भी विचार व्यक्त किए।
इस अवसर पर संस्थान निदेशक सतीशचंद्र दीक्षित, सचिव सुशीला गुप्ता, महेश खंडेलवाल, ममता कुमारी, प्रगति शर्मा, डा. राजेश शर्मा, सुकुमार गोस्वामी, भगवती प्रसाद, कन्हैया लाल शर्मा, विनोद झा, रमेशचंद्र, शिल्पी शर्मा, अंकुर सिंह, अशोक दीक्षित आदि उपस्थित थे। संचालन निंबार्क कोट के महंत वृंदावन बिहारी एवं डा. ब्रजभूषण चतुर्वेदी ने किया।
स्वदेश आगरा
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