Home > स्वदेश विशेष > स्त्री - सबला या अबला ?

स्त्री - सबला या अबला ?

देवेश कुमार माथुर, लेखक,शिक्षक एवं चिंतक

स्त्री - सबला या अबला ?
X

वेबडेस्क। 75वें स्वतंत्रता दिवस पर जब हम आज़ादी का अमृत महोत्सव मना रहे हैं और कुछ दिनों बाद ही भाई-बहन के प्यार का प्रतीक पावन रक्षाबंधन का त्यौहार आने वाला है , तब इस लेख को लिखते समय मेरी उँगलियाँ काँप रहीं हैं और मन व्याकुल है। मष्तिष्क में रह रह कर ये प्रश्न आ रहा है कि आज़ादी की बलिवेदी पर अपना सर्वस्व न्यौछावर कर देने वाले उन अमर बलिदानियों ने क्या ऐसे समाज का सपना भी देखा होगा ? श्री कृष्णा और द्रौपदी के एक दूसरे प्रति रक्षा और स्नेह की भावना से प्रारम्भ हुए रक्षाबंधन के पवित्र त्यौहार ने क्या ऐसी परिस्थिति की कल्पना की होगी? क्या हम ऐसे समाज के बारे में सोच सकतें हैं,जहाँ बहन-बेटियों को एक अनजाने भय के साये में दिन रात घुट-घुटकर जीना पड़ता है? निसंदेह नहीं। जब तक कोई भी व्यक्ति इंसानियत के छदम आवरण में होता है, तब तक वह इस स्थिति की कल्पना भी नहीं कर सकता,परन्तु जैसे ही उसके अंदर छुपा शैतान इस इंसानियत रूपी छदम आवरण को तोड़कर बाहर आता है,तो वह व्यक्ति रक्षक से भक्षक बन जाता है। उसकी यही लोलुपता सारी मर्यादायों को तार तार करके सामने वाली स्त्री को जीवन भर का ना खत्म होने वाला दर्द दे जाती है। कितने शर्म की बात है ?

भारतीय सभ्यता और संस्कृति में स्त्री को शक्ति का अवतार कहा गया है। इस शक्ति स्वरूपा को देवी का दर्जा दिया जाता है। वर्ष में दो बार बड़े ही धूम-धाम से इस शक्तिस्वरूपा देवी की पूजा की जाती है। इतिहास गवाह है कि भारत वर्ष में कई ऐसी महिलायें हुई हैं ,जिन्होंने ज्ञान -विज्ञान, अर्थ, राजनीति, युद्ध कौशल एवं खेलकूद जैसे विभिन्न क्षेत्रों में अतुलनीय योगदान दिया है। माँ दुर्गा ,लक्ष्मी, सरस्वती, सीता ,राधा,अहिल्या बाई ,मीरा, रानी लक्ष्मीबाई, सुभद्रा कुमारी चौहान, इंदिरा गाँधी , पी टी उषा , लता मंगेशकर, कल्पना चावला और चानू मीराबाई तक अनगिनत महिलाओं ने अपने अपने क्षेत्र में अपनी श्रेष्ठता सिद्ध की है। इतनी समृद्ध विरासत होने के बाद भी महिलाओं के प्रति बढ़ते बलात्कार के मामले व्याकुल कर देतें हैं। कितने अफ़सोस की बात है कि 4 माह की नवजात बालिका से लेकर 90 वर्ष की बुजुर्ग महिला तक, इंसानियत के इन दुश्मनों ने तो लगभग हर आयुवर्ग की महिला के साथ ज्यादती की है।

अभी हाल ही में राज्य सभा में एक लिखित प्रश्न का जवाब देते हुए केंद्रीय गृह राज्य मंत्री अजय कुमार मिश्रा ने बताया कि 2015 से लेकर 2019 तक इन 5 वर्षों में 1.71 लाख बलात्कार के मामले दर्ज किये गए। अर्थात 34200 मामले प्रतिवर्ष या फिर 94 मामले प्रतिदिन या फिर 4 मामले प्रति घंटे या फिर यूँ कहें कि हर 15 मिनट में बलात्कार का एक मामला दर्ज हो रहा है। अत्यंत अफसोसजनक तथ्य है कि केंद्र सरकार की जानकारी के अनुसार इस तरह के अपराधों में मध्यप्रदेश प्रथम स्थान पर है। जहाँ उक्त अवधि में 22753 बलात्कार के मामले दर्ज किये गए। इसका मतलब 4551 मामले प्रतिवर्ष,13 मामले प्रतिदिन और प्रत्येक 30 मिनट में एक बलात्कार का मामला मध्यप्रदेश में दर्ज किया जा रहा है। मध्यप्रदेश के गृहमंत्री नरोत्तम मिश्रा ने विधानसभा में एक प्रश्न का जवाब देते हुए बताया कि जनवरी 2017 से लेकर जून 2021 की 4.5 साल की अवधि में मध्यप्रदेश में 26708 बलात्कार के मामले दर्ज किये गए हैं। वहीं सामूहिक बलात्कार के बाद 37 कत्ल के मामले दर्ज किये गए हैं। महिलाओं के प्रति अन्य अपराधों के मामले तो अलग ही हैं। क्या ये आँकडें एक बेटी के माता- पिता को भयग्रस्त करने के लिए पर्याप्त नहीं हैं ? हम किस आधुनिक समाज में रह रहें हैं ? जहाँ बहन -बेटियां महफूज़ नहीं हैं। क्या महिला होना एक अपराध है ?

बेटी है तो कल है , बेटी बचाओं-बेटी पढ़ाओ जैसे नारे गढ़ने वाला ये समाज क्या इतना खोखला और कमजोर है कि अपनी बहन -बेटियों की इज़्ज़त की रक्षा भी नहीं कर सकता ? क्या वास्तव में ये आदर्शवादी समाज है या फिर आदर्शवादी होने का ढोंग करता है ? आखिर महिलाओं के प्रति इस तरह के अपराधों का जिम्मेदार कौन है ? कुछ नासमझ लोग महिलाओं के छोटे कपड़ों को इसका जिम्मेदार मानते हैं। क्या सिर्फ यही एकमात्र कारण है ? यदि आप निष्पक्ष होकर सोचेंगे तो उत्तर होगा नहीं। यदि ऐसा होता तो ४ माह की नवजात बच्ची और ९० वर्ष की बुजुर्ग महिला शिकार नहीं बनती। कभी आपने सोचा है कि आखिर क्यों पुरुषों द्वारा उपयोग की जाने वाली सामग्री के विज्ञापन में महिआएं एक अनिवार्य हिस्सा होती हैं। फिर चाहे वह शेविंग क्रीम का विज्ञापन हो या फिर डिओड्रेंट का या फिर अंडर गारमेंट्स का। इसका कारण संभवत: यह हो सकता है कि आदि काल से ही महिला को आकर्षित कर उसका उपभोग करना समाज की मनोवृत्ति रही है। महिला को उपभोग की वस्तु समझा जाना ही इस तरह के अपराधों की एक बड़ी वजह मानी जा सकती है। इसी के साथ दरकता सामजिक ढाँचा,सयुंक्त परिवारों का बिखराव ,एकल परिवारों के चलते बच्चों को पर्याप्त संस्कार ना मिल पाना और इंटरनेट पर आसानी से उपलब्ध नीला जहर अर्थात अश्लील साहित्य भी इस तरह के अपराधों की एक बड़ी वजह प्रतीत होती है।

ध्यान रहें कि इस समाज का अस्तित्व तभी तक है ,जब तक की नारी का अस्तित्व है ,उसका मान - सम्मान है। आज़ादी का अमृत महोत्सव और रक्षाबंधन जैसे पर्व तभी सार्थक और सफल बन पायेंगे जबकि हम अपनी बहन - बेटियों की सुरक्षा के लिए प्रतिबद्ध हों। ना स्वयं किसी अपराध में भागीदार बने और नई ही किसी को इस तरह का अपराध करने दें। संभवत: तभी महान कवि जयशंकर प्रसाद की ये पंक्तियाँ सही सिद्ध हो सकेंगी कि -

नारी! तुम केवल श्रद्धा हो

विश्वास-रजत-नग पगतल में।

पीयूष-स्रोत-सी बहा करो

जीवन के सुंदर समतल में।

Updated : 12 Oct 2021 10:36 AM GMT
Tags:    
author-thhumb

स्वदेश डेस्क

वेब डेस्क


Next Story
Top