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सादगी की मिसाल थे डॉ. एपीजे अब्दुल कलाम

पुण्यतिथि, 27 जुलाई पर विशेष

सादगी की मिसाल थे डॉ. एपीजे अब्दुल कलाम
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- प्रदीप कुमार सिंह

भारत के लोकप्रिय पूर्व राष्ट्रपति, प्रसिद्ध वैज्ञानिक और भारत रत्न डॉ. एपीजे अब्दुल कलाम अपनी विनम्रता, सरलता, ज्ञान, मानवीय भावनाओं तथा तकनीकी कुशलता के लिए जाने जाते हैं। उनके जीवन में अध्यात्म तथा विज्ञान का सुन्दर समन्वय था। डॉ. कलाम रामेश्वरम के साधारण घर में पैदा हुए। वह तमिल मुस्लिम थे। उनकी शिक्षा-दीक्षा हिन्दू शिक्षक के सानिध्य में हुई। उन्होंने उस चर्च में काम किया जो बाद में विक्रम सारामाई स्पेस लंचिग सेन्टर बना। डॉ. कलाम की सभी धर्मों के प्रति गहरी आस्था थी। वह ऐसे स्वीकार्य भारतीय थे, जो न केवल देशवासियों के वरन् विश्ववासियों के दिलों में युगों-युगों तक आदर्श के रूप में बने रहेंगे।

बालक अब्दुल कलाम की कहानी बचपन में देखे एक सपने की उड़ान के साकार होने की सच्चाई है। एक सपना जो पतंग तथा पक्षियों की उड़ान में पला-बढ़ा था। उनके भाई मोहम्मद मुतूमीरान ने बताया कि एक बार कलाम ने अपने शिक्षक से पूछा कि 'चिड़िया उड़ती कैसे है? वो कुएं में पत्थर फेकते थे और जब पानी ऊपर उठता था तो उसे देखते थे। वो घंटों पतंग उड़ाते रहते थे या कागज के हवाई जहाज बनाकर उड़ाते थे।' कलाम सभी भाई-बहनों में सबसे छोटे थे। कलाम के पिता जैनुलब्दीन एक नेकदिल इंसान थे और मां आशियम्मा सबका भला चाहने वाली महिला थीं। कलाम का जन्म 15 अक्टूबर 1931 को धनुषकोडी, रामेश्वरम (तमिलनाडु) में हुआ था। कलाम के पिता रामेश्वरम आने-जाने वाले तीर्थ यात्रियों को किराये पर नाव देते थे। लेकिन चक्रवात में वह नाव भी टूट गई। कलाम की पढ़ने की ललक इतनी थी कि सुबह चार बजे उठ जाते थे। कलाम के गणित शिक्षक पांच बच्चों को निःशुल्क गणित पढ़ाते थे। उनकी शर्त थी सुबह चार बजे नहाकर आने की। कलाम सुबह 4 बजे नहाकर गणित का ट्यूशन पढ़ने के लिए जाते थे। कलाम अपने चचेरे भाई की अखबार बेचने में मदद किया करते थे। उसी से उनकी पहली कमाई शुरू हुई थी। कलाम ने थकान को कभी अपने जीवन में आने ही नहीं दिया। पढ़ाई की ओर कलाम का रूझान देखते हुए उनकी मां ने उनके लिए छोटा-सा लैंप खरीदा था जिससे कलाम रात 11 बजे तक पढ़ सकते थे। सुब्रह्मण्यम अय्यर उनके सबसे प्रिय टीचर थे।

डॉ. कलाम ने समुद्र की लहरों से जीवन के संघर्ष का मतलब समझा और सपना देखने तथा उसे पूरा करने का हुनर सीखा। एक ऐसा सपना जिसके लिए कठोर परिश्रम तथा विज्ञान की ललक चाहिए थी। डॉ. कलाम ने स्वाट्र्ज हायर सेकेण्डरी स्कूल, रामनाथपुरम से स्कूल की पढ़ाई की थी। उसके बाद बीएससी की पढ़ाई सेन्ट जोसफ कालेज, तिरूचिरापल्ली से पूरी की। उन्होंने मद्रास इंस्टीट्यूट ऑफ टेक्नोलॉजी से 1960 में अंतरिक्ष इंजीनियरिंग की पढ़ाई पूरी की। कलाम ने अंतरिक्ष इंजीनियरिंग की पढ़ाई के दौरान तीन रात जागकर अपनी थीसिस तैयार की, ताकि स्कॉलरशिप मिल सके। वह एयरफोर्स में जाना चाहते थे। लेकिन टेस्ट में उनका नम्बर नौवां आया। इस पद पर केवल आठ की भर्ती होनी थी। कलाम के युवा सपनों को आकार देने के लिए शुरूआत होती है 1960 से, जब वह एक टेस्ट देने दिल्ली आए। इस टेस्ट को पास करके उन्होंने रक्षा मंत्रालय के तकनीकी विकास और अनुसन्धान विभाग के सीनियर साइंटिस्ट का कार्यभार सम्भाला। सपनों की उड़ान 1969 में नया मोड़ लेती है जब डॉ. कलाम को देश के पहले स्पेस लांच प्रोजेक्ट का डायरेक्टर बनाया गया। तब अंतरिक्ष अनुसन्धान संस्थान नया-नया ही बना था। संस्थान के कर्मचारी राकेट का सामान साइकिल तथा बैलगाड़ी से ले जाया करते थे। संस्थान का 70 के दशक तक संघर्ष कुछ ऐसे ही चला। रोहिणी उपग्रह की सफलता से तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी काफी प्रभावित हुई थीं।

भारतीय परमाणु आयोग ने राजस्थान के पोखरण में अपना पहला भूमिगत परीक्षण स्माइलिंग बुद्धा 18 मई 1974 को किया था। हालांकि उस समय भारत सरकार ने घोषणा की थी कि भारत का परमाणु कार्यक्रम शांतिपूर्ण कार्यों के लिए होगा और यह परीक्षण भारत को ऊर्जा के क्षेत्र में आत्मनिर्भर बनाने के लिए किया गया है। डॉ. कलाम की इच्छा भारत को परमाणु ताकत बनाने की थी। मार्च 1998 में पूरे प्रोजेक्ट के साथ वह तत्कालीन प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी से मिले और मिसाइल प्रोग्राम के बारे में जानकारी दी। उसी मुलाकात में ऑपरेशन शक्ति को मंजूरी मिल गई। दुनिया 11 व 13 मई 1998 का दिन कैसे भूल सकती है जब भारत पोखरण परमाणु टेस्ट करने में कामयाब रहा। तब डॉ. कलाम तत्कालीन प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी के प्रमुख वैज्ञानिक सलाहकार बन गए थे। डॉ. कलाम को मिसाइल मैन कहे जाने से पहले का संघर्ष भरा जीवन रहा है। डॉ. कलाम ने देश को अग्नि, पृथ्वी और ब्रह्मोस जैसी मिसाइलों की सौगात दी। भारत ने स्वयं को परमाणु शक्ति संपन्न देश घोषित कर दिया। डॉ. कलाम ने अपने मकसद में कामयाब होने के लिए पूरे जीवन अविवाहित रहने का निर्णय लिया था।

अटल बिहारी वाजपेयी की पहल पर डॉ. कलाम को 25 जुलाई 2002 को देश का राष्ट्रपति बनाया गया। उनका राष्ट्रपति कार्यकाल 25 जुलाई 2002 से 25 जुलाई 2007 तक रहा। वह एक गैर राजनीतिक व्यक्ति थे। विज्ञान की दुनिया में चमत्कारिक प्रदर्शन के कारण ही राष्ट्रपति भवन के द्वार इनके लिए स्वतः खुल गए। डॉ. कलाम के पास भौतिक दृष्टि से न घर, न धन, न गाड़ी और संतान कुछ भी नहीं था। वह सादगी की मिसाल थे। राष्ट्रपति बनने के बाद भी वह सादगी उनके पूरे व्यक्तित्व में दिखती थी। राष्ट्रपति बनते ही उन्होंने अपनी पूरी जमा पूंजी दान कर दी। वह कहते थे कि 'अब मैं राष्ट्रपति बन गया हूं। मेरी देखभाल तो आजीवन अब सरकार करेगी। अब मैं अपनी बचत और वेतन का क्या करूंगा?' वह राष्ट्रपति भवन में दो सूटकेस लेकर आये थे और दो सूटकेस लेकर गए। एक सूटकेस में उनके कपड़े तथा दूसरी में उनकी प्रिय किताबें थी। डॉ. कलाम ने राष्ट्रपति पद से अवकाश के बाद अपने जीवन को बच्चों तथा युवाओं के लिए समर्पित कर दिया। उनकी मौत भी बहुत चुपके से आयी उन्हीं युवाओं के बीच। 27 जुलाई 2015 को शिलांग में आईआईएम की एक गोष्ठी के दौरान दिल का दौरा पड़ने से उनका निधन हो गया।

उनके सलाहकार रहे सृजन पाल सिंह के अनुसार दोपहर 12 बजे डॉ. कलाम ने दिल्ली से गुवाहाटी के लिए उड़ान भरी थी। यह ढाई घंटे की उड़ान थी। गुवाहाटी से शिलांग तक का ढाई घंटे कार का सफर था। डॉ. कलाम गुवाहाटी से सृजन के साथ कार में सवार होकर शिलांग के लिए रवाना हुए थे। शिलांग में उनके व्याख्यान का विषय था 'पृथ्वी को रहने योग्य ग्रह बनाना'। सड़क मार्ग से सफर के दौरान डॉ. कलाम ने सृजन से कहा कि ऐसा लगता है कि प्रदूषण की तरह इंसान भी धरती के लिए खतरा बन गया है। हिंसा, प्रदूषण और इंसान की बेलगाम हरकतें धरती छोड़ने पर मजबूर कर देगी। शायद 30 साल बाद धरती रहने लायक नहीं बचेगी। डॉ. कलाम भारतीय संसद के हंगामे के कारण बार-बार ठप होने से चिंतित थे। उन्होंने कहा कि 'मैंने अपने कार्यकाल में दो अलग-अलग सरकारों को देखा। इसके बाद का वक्त भी देखा। संसद में यह हंगामा बार-बार होता है। यह ठीक नहीं है। मैं ऐसा तरीका ढूंढना चाहता हूं जिससे संसद विकास की राजनीति पर काम करे।' उन्होंने सृजन से कहा कि आईआईएम शिलांग के छात्रों के लिए सरप्राइज एसाइनमेंट तैयार करो। जो उन्हें लेक्चर के आखिर में दी जाए। वह चाहते थे कि छात्र ऐसे सुझाव बताएं जिससे संसद ज्यादा कार्य कर सके। फिर उन्होंने कहा कि 'जब मेरे पास इसका कोई तरीका नहीं है, तब मैं उनसे कैसे पूछ सकता हूं?'

डॉ. कलाम सुरक्षा की 6-7 गाड़ियों के काफिले के साथ शिलांग की ओर बढ़ रहे थे। आगे जिप्सी चल रही थी जिसमें तीन जवान थे। दो जवान बैठे थे। एक जवान बंदूक लेकर खड़ा था। एक घंटे के बाद डॉ. कलाम ने सृजन से सवाल किया वो जवान खड़ा क्यों है? वो थक जाएगा। यह तो सजा की तरह है। क्या तुम उसे वायरलेस पर मैसेज दे सकते हो कि वह बैठ जाए। कलाम के कहने पर सृजन ने मैजेस देने की कोशिश की जो नाकाम रही। बाद में कलाम ने सृजन से कहा कि वह उस जवान से मिलकर उसका शुक्रिया अदा करना चाहते हैं। शिलांग पहुंचकर डॉ. कलाम ने ढाई घंटे खड़े रहने वाले जवान को शुक्रिया कहा। जवान से पूछा, क्या तुम थक गये हो? क्या तुम कुछ खाना चाहोगे? मैं माफी चाहता हूं। मेरी वजह से तुम ढाई घंटे खड़े रहे। वह जवान हैरान रह गया। उसने कहा कि सर आपके लिए तो 6 घंटे भी खड़ा रह सकता हूं। जवान से मिलने के बाद डॉ. कलाम सीधे लेक्चर हाल में गए। उसके बाद सृजन ने जैसे ही उनका माइक सेट किया तो वह मुस्कुराए और कहा बहुत अच्छा मित्र, तुमने बहुत अच्छा किया। व्याख्यान के प्रारम्भ में यूरोपियन यूनियन की क्लिप थी। शान्ति के विषय पर वह दिखाई गई। इसी बीच डॉ. कलाम पीछे की ओर झुके और जमीन पर गिर गए। सुरक्षा गार्ड आगे बढ़ा। तब तक उनका निधन हो चुका था।

- लेखक स्वतंत्र टिप्पणीकार हैं।

Updated : 29 July 2019 2:12 PM GMT
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