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न्याय और गारंटियों के बीच कांग्रेस के वायदों का पिटारा

कांग्रेस के घोषणा पत्र को जारी करते हुए घोषणा पत्र समिति के प्रमुख पी चिदंबरम् ने बड़े जोर देकर कहा कि कांग्रेस की सरकार बनेगी तो वह सिर्फ नौकरी, नौकरी और नौकरी ही देगी।

न्याय और गारंटियों के बीच कांग्रेस के वायदों का पिटारा
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नईदिल्ली। चुनाव घोषणा पत्र जारी करने में देश की सबसे पुरानी पार्टी बाजी मारने में कामयाब रही है। जैसा कि अक्सर होता है, चुनाव घोषणा पत्र राजनीतिक दल का भावी शासन का रोडमैप होता है। कांग्रेस ने इस रोड मैप को हाल के दिनों में अख्तियार किए दो शब्दों ‘न्याय’ और ‘गारंटी’ के इर्द-गिर्द ही केंद्रित किया है। लेकिन इस रोडमैप को मोटे तौर पर देखें तो वह कुछ मुद्दों पर अपनी पुरानी गलतियों को दुरूस्त करती दिख रही है, तो कई बार वह नेहरूवादी समाजवाद की ओर बढ़ती नजर आ रही है तो कई मुद्दों पर राहुल-प्रियंका के वामपंथी सलाहकारों का असर भी नजर आ रहा है।

कांग्रेस इन दिनों जिस तरह न्याय और गारंटी पर जोर दे रही है, उससे कुछ सवाल जरूर उठते हैं। देश की आजादी का 77वां साल चल रहा है। इतने दिनों में पचपन साल तक उसका ही शासन रहा है। जाहिर है कि आजाद भारत के दो तिहाई हिस्से पर कांग्रेस का ही शासन रहा है। इसके बावजूद वह लोगों को न्याय दिलाने का वादा करती है, गारंटियां देने की बात करती है तो यह सवाल जरूर उठेगा कि कांग्रेस क्या अपने शासनकाल में लोगों को न्याय नहीं दे पाई या फिर वह पहले गारंटी नहीं दे पाई। जाहिर है कि जब ये सवाल उठेंगे तो कांग्रेस और उसके समर्थक जवाब में कह सकते हैं कि पार्टी का न्याय और गारंटियों का वादा भाजपा शासन काल के दौरान हुए अन्याय और अनदेखी का जवाब है। लेकिन कांग्रेस के घोषणा पत्र को गौर से देखेंगे तो पता चलेगा कि पार्टी कुछ ऐसे मुद्दों पर अपनी गलती को सुधार करती दिख रही है, जिन्हें राष्ट्रवादी राजनीति के मुद्दे माना जाता है। आर्थिक सुधार प्रक्रिया के तहत नई पेंशन योजना को स्वीकार करना और समान नागरिक संहिता को स्वीकार करना राष्ट्रवादी राजनीति के ही मुद्दे हैं। लेकिन कांग्रेस अपने घोषणा पत्र में इन दोनों अहम मुद्दों पर चुप्पी साध ली गई है। यानी एक तरह से पार्टी का रूख इस मुद्दे पर बदला हुआ नजर आ रहा है।

कांग्रेस के घोषणा पत्र को जारी करते हुए घोषणा पत्र समिति के प्रमुख पी चिदंबरम् ने बड़े जोर देकर कहा कि कांग्रेस की सरकार बनेगी तो वह सिर्फ नौकरी, नौकरी और नौकरी ही देगी। चुनाव घोषणा पत्र में बेरोजगारी को बड़ा मुद्दा बनाते हुए सरकारी दफ्तरों और सार्वजनिक निगमों में खाली पड़े तीस लाख पदों को भरने का वादा किया गया है। पार्टी खुद ही अजीम प्रेम जी फाउंडेशन के एक सर्वे आंकड़े का हवाला देते हुए कहती है कि देश के पच्चीस साल तक की उम्र वाले युवाओं में से 42 फीसद बेरोजगार हैं। अगर इसी आंकड़े पर भरोसा करें तो यह संख्या करोड़ों में होगी। कांग्रेस सिर्फ तीस लाख सरकारी पदों को भरने का स्पष्ट वादा तो कर रही है, लेकिन शेष युवाओं का क्या होगा, पार्टी इस पर मौन है। हां, वह तकनीकी शिक्षा ले चुके युवाओं के लिए एक साल के लिए अप्रेंटिसशिप का वादा जरूर कर रही है, जिसमें एक लाख सालाना मिलेंगे। इस रकम का आधा हिस्सा सरकारें वहन करेंगी। यूपीए एक के शासन के दौरान पार्टी ने मनरेगा की शुरूआत की थी। इसे पार्टी अपना बेहतरीन कदम मानती है। घोषणा पत्र में इसकी चर्चा नहीं होती तो आश्चर्य होता। पार्टी ने मनरेगा की मजूदरी 400 रूपए तक बढ़ाने का वादा कर रही है।

इसे संयोग कहें या कुछ और कि कांग्रेस के एक बड़े प्रवक्ता गौरव बल्लभ और धाकड़ सांसद रहे संजय निरूपम ने पार्टी छोड़ी, उसके ठीक बाद ही कांग्रेस ने अपने महत्वाकांक्षी घोषणा पत्र को जारी किया। दल चाहे जो भी हो, उसका घोषणा पत्र एक या दो दिन में नहीं तैयार किए जाते हैं। इसलिए यह उम्मीद करना कि चुनाव घोषणा पत्र में कुछ ऐसा होगा, जिसके जरिए पार्टी अपने यहां मची भगदड़ को रोकने या उसे संबोधित करने की कोशिश करेगी। लेकिन इस घोषणा पत्र में भगदड़ में पार्टी से लगातार निकल रहे लोगों के सवालों का जवाब देने की कोई कोशिश तक नजर नहीं आती। संजय निरूपम ने पार्टी छोड़ते वक्त आरोप लगाया था कि कांग्रेस इन दिनों वामपंथी विचारधारा के प्रभाव में ज्यादा है। स्वामीनाथन आयोग की सिफारिशों के आधार पर किसानों को न्यूनतम समर्थन मूल्य देने का वादा भी वामपंथी वैचारिकता का ही विस्तार है। जाति जनगणना की भी बात वाम वैचारिकी की ही देन है।

कांग्रेस ने अपने घोषणा पत्र में संस्थानों की स्वायत्तता पर भी एक तरह से सवाल खड़ा किया है। इसमें चुनाव आयोग और न्यायपालिका शामिल है। यह सोच भी वामवैचारिकी की ही है। कांग्रेस ने जहां चुनाव आयोग को स्वायत्त बनाने का वादा किया है, वहीं न्यायपालिका में वंचित तबकों को बढ़ावा देने के साथ ही न्यायिक नियुक्ति आयोग बनाने का भी वादा किया है।मीडिया को भी स्वायत्त बनाने की भी बात कही गई है। माना जा रहा है कि इसके जरिए पार्टी ने मीडिया में कार्यरत लोगों के समर्थन की उम्मीद रखी है।

अब बात करते हैं, कांग्रेस की पांच न्याय की। पार्टी ने जिन न्याय की बात की है, उसमें पहला है युवा न्याय। इस गारंटी के तहत 30 लाख सरकारी नौकरियां देने और युवाओं को एकसाल के लिए प्रशिक्षुता कार्यक्रम के तहत एक लाख रुपये देने का वादा शामिल है। दूसरे नंबर पर पार्टी ने हिस्सेदारी न्याय की चर्चा की है, जिसके तहत जाति जनगणना कराने की ‘गारंटी’ दी गई है। तीसरे नंबर पर किसान न्याय की चर्चा की गई है। जिसके तहत कांग्रेस ने न्यूनतम समर्थन मूल्य को कानूनी दर्जा देने के साथ ही किसानों की कर्ज माफी के लिए आयोग के गठन के साथ-साथ जीएसटी मुक्त खेती का वादा कियाहै। चौथे नंबर पर पार्टी ने श्रमिक न्याय की बात की गई है। पार्टी ने इसके तहत मजदूरों को स्वास्थ्य का अधिकार, मनरेगा की न्यूनतम मजूदरी 400 रुपये रोजाना करने के साथ ही शहरी रोजगार गारंटी का वादा किया गया है। पांचवां न्याय है नारी न्याय। इसके तहत कांग्रेस ने ‘महालक्ष्मी’ गारंटी देने का वादा किया है। इसमें गरीब परिवारों की महिलाओं को एक-एक लाख रुपये सालाना देने समेत कई वादे किए गए हैं। इसके साथ ही गरीब परिवार की एक महिला को सालाना एक लाख की मदद का भी ऐलान किया गया है।

पार्टी के घोषणा पत्र के कुछ प्रमुख वायदों पर निगाह डाल लेते हैं। पार्टी ने कहा है कि अगर उसकी सरकार बनी तो वह महिलाओं को 6 हजार रुपये प्रति माह देगी। इसके साथ ही उन्हें केंद्र सरकार की नौकरियों में एक तिहाई आरक्षण देने का भी वादा किया गया है। पार्टी ने हाईकोर्ट और सुप्रीम कोर्ट में महिला जजों की संख्या बढ़ाने का भी वादा किया है। पार्टी अपनी हर चुनावी सभा में महंगाई का हवाला देती है। इसे ध्यान में रखते हुए पार्टी ने गैस सिलेंडर की कीमतों में कटौती का भी वादा किया है। पार्टी ने संवैधानिक न्याय और आर्थिक न्याय का भी वादा किया है। पार्टी ने अपने घोषणा पत्र में रक्षा न्याय का भी वादा किया है, जिसके तहत देश की रक्षा करने वाली विदेश नीति पर काम करने की बात की गई है। मछुआरों के लिए डीजल सब्सिडी दे के साथ ही अगले 10 वर्षों में देश की जीडीपी को दोगुना करने का लक्ष्य भी रखा गया है। कांग्रेस ने अपने घोषणा पत्र में मॉब लिंचिंग, बुलडोजर न्याय और फर्जी मुठभेड़ जैसे कदमों का जोरदार विरोध किया है। इसके साथ ही वन रैंक, वन पेंशन आदि मुद्दों को भी छुआ गया है।

हाल में हुए विधानसभा चुनावों में पार्टी ने ऐसे ही कुछ वायदे किए थे,लेकिन तेलंगाना छोड़ उसे कहीं समर्थन नहीं मिल पाया। ऐसे में देखना होगा कि चुनावी रण में जनता उसके इन वायदों पर कितना भरोसा कर पाती है?

Updated : 15 April 2024 2:09 PM GMT
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स्वदेश डेस्क

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