राज्य की संपत्ति
एक बार मगध के शासक ने कौशल राज्य पर हमला कर दिया। कौशल नरेश ने तुरंत अपनी प्रजा को नगर खाली कर किसी सुरक्षित प्रदेश में निकल जाने को कहा। राजाज्ञा मानकर सभी नागरिक अपने परिवार और सामान समेत नगर से प्रस्थान कर गए। मगघ की सेना ने नगर में प्रवेश किया और कौशल नरेश तथा उनके साथ चल रहे कुछ अन्य नागरिकों को घेर लिया। कौशल नरेश ने मगध के सेनापति से अनुरोध किया कि अगर वह उनके साथ चल रहे बारह लोगों को मुक्त कर दें तो वे स्वयं बिना शर्त आत्मसमर्पण कर देंगे। सेनापति ने शर्त स्वीकार कर ली। कौशल नरेश के साथ चल रहे बारह लोगों को छोड़ दिया गया और कौशल नरेश को उनके अंगरक्षकों के साथ मगध नरेश के सामने प्रस्तुत किया गया। सेनापति ने बारह लोगों को छोड़े जाने वाली बात मगध नरेश को बताई तो वह आश्चर्य में पड़ गए। उन्होंने कौशल नरेश से पूछा- जिन बारह लोगों को आपने छुड़वाया वे कौन थे?
कौशल नरेश ने उत्तर दिया- मान्यवर, वे हमारे राज्य के संत और विद्वान थे। मैं रहूं या न रहूं इससे कोई अंतर नहीं आने वाला है। लेकिन एक राज्य के लिए संतों और विद्वानों का बचे रहना आवश्यक है। वे राज्य की संपत्ति हैं। वे रहेंगे तो आदर्श और संस्कार जीवित रहेंगे। किसी राज्य के लिए ये जरूरी चीजें हैं। इन्हीं के द्वारा भविष्य में भी कर्तव्यनिष्ठ और योग्य नागरिकों का निर्माण होगा। इस विचार ने मगध नरेश को इतना प्रभावित किया कि उन्होंने कौशल नरेश को रिहा कर दिया और उनका राज्य भी लौटा दिया।
City Desk
Web Journalist www.swadeshnews.in