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माँ लक्ष्मी का अवतरण, महारास और महर्षि वाल्मीकि जयंती की त्रिवेणी शरद पूर्णिमा

डॉ. आनंद सिंह राणा

माँ लक्ष्मी का अवतरण, महारास और महर्षि वाल्मीकि जयंती की त्रिवेणी शरद पूर्णिमा
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शरद पूर्णिमा, कोजागरी पूर्णिमा - कौन जागता है? क्योंकि माँ लक्ष्मी आज गृह प्रवेश करती हैं। रास पूर्णिमा के आलोक में आज समुद्र मंथन में माँ लक्ष्मी का अवतरण हुआ। वर्ष के बारह महीनों में ये पूर्णिमा ऐसी है, जो तन, मन और धन तीनों के लिए सर्वश्रेष्ठ होती है। इस पूर्णिमा को चंद्रमा की किरणों से अमृत की वर्षा होती हैै। शरद पूर्णिमा का एक नाम कोजागरी पूर्णिमा भी है यानी लक्ष्मी जी पूछती हैं- कौन जाग रहा है? अश्विनी महीने की पूर्णिमा को चंद्रमा अश्विनी नक्षत्र में होता है इसलिए इस महीने का नाम अश्विनी पड़ा है।

एक महीने में चंद्रमा जिन 27 नक्षत्रों में भ्रमण करता है, उनमें ये सबसे पहला है और आश्विन नक्षत्र की पूर्णिमा आरोग्य देती है। आयुर्वेदाचार्य वर्ष भर इस पूर्णिमा की प्रतीक्षा करते हैं। जीवनदायिनी रोगनाशक जड़ी-बूटियों को वह शरद पूर्णिमा की चांदनी में रखते हैं। अमृत से नहाई इन जड़ी-बूटियों से जब दवा बनायी जाती है तो वह रोगी के ऊपर तुंरत असर करती है। शरद पूर्णिमा की शीतल चांदनी में रखी खीर खाने से शरीर के सभी रोग दूर होते हैं। ज्येष्ठ, आषाढ़, सावन और भाद्रपद मास में शरीर में पित्त का जो संचय हो जाता है, शरद पूर्णिमा की शीतल धवल चांदनी में रखी खीर खाने से पित्त बाहर निकलता है। लेकिन इस खीर को एक विशेष विधि से बनाया जाता है। पूरी रात चांद की चांदनी में रखने के बाद सुबह खाली पेट यह खीर खाने से सभी रोग दूर होते हैं, शरीर निरोगी होता है।

शरद पूर्णिमा को रास पूर्णिमा भी कहते हैं। स्वयं सोलह कला संपूर्ण भगवान श्रीकृष्ण से भी जुड़ी है यह पूर्णिमा। इस रात को अपनी राधा रानी और अन्य सखियों के साथ श्रीकृष्ण महारास रचाते हैं।

शरद पूर्णिमा ऐसे महीने में आती है, जब वर्षा ऋतु अंतिम समय पर होती है। शरद ऋतु अपने बाल्यकाल में होती है और हेमंत ऋतु आरंभ हो चुकी होती है और इसी पूर्णिमा से कार्तिक स्नान प्रारंभ हो जाता है। शरद पूर्णिमा को ही आदिकवि, सामाजिक समरसता के पुरोधा शस्त्र और शास्त्रों के ज्ञाता विश्व के सर्वोच्च ग्रन्थ 'रामायणÓ के रचयिता - महर्षि वाल्मीकि की जयंती आती है। आज हमारा प्रश्न है और चुनौती है? उन वामपंथियों को, उन पाश्चात्य विद्वानों को, एक दल विशेष के समर्थक इतिहासकारों को और उन वर्णसंकरों को, तथाकथित सेक्यूलरों को, जिन्होंने भारतीय सामाजिक समरसता को जातिवाद और वर्णव्यवस्था की आड़ में दुर्भावना से प्रेरित होकर दुष्प्रचार किया और कर रहे हैं - ताकि अखंड भारत और उसकी विरासत खंड - खंड हो जाए! परंतु ऐसा होने वाला नहीं हैं हमारे पास महर्षि वाल्मीकि हैं जो इनको कभी सफल नहीं होने देंगे। प्रथमत: यह कि हिन्दुओं का सर्वोच्च धर्म ग्रंथ 'रामायणÓ - महर्षि वाल्मीकि ने ही लिखा है और वही शिरोधार्य है, तो फिर जातिवाद और वर्णव्यवस्था को लेकर विवाद कौन करा रहा है? सावधान रहिए! उपर्युक्त षड्यंत्रकारियों से।

द्वितीयत: यह कि भगवान् श्रीराम की धर्मपत्नी माता सीता (जगत जननी) अयोध्या से एक प्रयोजनार्थ निष्कासित हुईं तो, गर्भावस्था में कहीं अन्यत्र भी जा सकती थीं, परंतु महर्षि वाल्मीकि के यहाँ ही क्यों गईं? उत्तर यही है महर्षि वाल्मीकि शस्त्र और शास्त्रों के महाज्ञाता थे और सहृदय संत - उनसे बेहतर कोई नहीं हो सकता था इसलिए सुरक्षा और भावी संतान के उज्ज्वल भविष्य के लिए महर्षि वाल्मीकि का आश्रम ही उपयुक्त था! इन सभी के साक्षी स्वयं महर्षि वाल्मीकि ही हैं। तो फिर यक्ष प्रश्न यही है कि वर्ण व्यवस्था और जातिवाद के सिद्धांतों की गलत व्याख्या कर और आचरण में लाने के लिए किसने षड्यंत्र किया है? उत्तर हम ऊपर दे चुके हैं। आईये आज हम सभी शरद पूर्णिमा की पावन तिथि और महर्षि वाल्मीकि जयंती पर शपथ लें कि तथाकथित वर्ण व्यवस्था और जातिवाद के तथाकथित षड्यंत्रपूर्वक रोपित विष वृक्षों को उखाड़ फेंकेंगे।

(लेखक श्रीजानकीरमण महाविद्यालय में इतिहास विभाग के विभागाध्यक्ष हैं)

Updated : 27 Oct 2023 8:50 PM GMT
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