15 साल में बरैया और बसपा दोनों हुए कमजोर
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15 साल में बरैया और बसपा दोनों हुए कमजोरहर प्रदेश में आत्मनिर्भर नेता बनाना चाहते थे कांशीराम लेकिन मायावती ने किसी को आगे नहीं बढऩे दिया
ग्वालियर/दिनेश शर्मा। मध्यप्रदेश की राजनीति में कभी बहुजन समाज पार्टी (बसपा) और फूलसिंह बरैया एक-दूसरे के पूरक हुआ करते थे, लेकिन वर्ष 2003 में बरैया को पार्टी से निकाले जाने के बाद से ही जहां बसपा कमजोर होती चली गई तो वहीं बरैया को भी राजनीति में कोई स्थाई ठिकाना नहीं मिला और वे राजनीति में अपना अस्तित्व बनाए रखने के लिए पिछले 15 सालों से अपनी दम पर ही संघर्ष करते आ रहे हैं। इस बीच श्री बरैया ने पहले लोक जन शक्ति पार्टी और फिर भारतीय जनता पार्टी में शामिल होकर भी अपना भाग्य आजमाया। इसके साथ ही स्वयं के दल का गठन भी किया, लेकिन वे जहां थे, आज भी वहीं खड़े हैं।
छात्र जीवन से दलित शोषित संघर्ष समिति के माध्यम से सामाजिक क्षेत्र में सक्रिय रहे फूलसिंह बरैया ने राजनीति में उस समय कदम रखा था, जब डॉ. भीमराव आम्बेडकर जी की जयंती के दिन 14 अपै्रल 1984 को कांशीराम जी ने बहुजन समाज पार्टी का गठन किया। इसके बाद श्री बरैया म.प्र. में लम्बे समय तक बसपा के सिरमौर रहे। बसपा में रहते हुए उन्होंने कमजोर वर्ग का विश्वास जीता और पार्टी का जनाधार बढ़ाया, लेकिन पार्टी की मुखिया मायावती को श्री बरैया का बढ़ता हुआ कद रास नहीं आया और उन्होंने वर्ष 2003 में ठीक विधानसभा चुनाव के दौरान श्री बरैया को पार्टी से निष्कासित कर दिया। उन पर पार्टी प्रत्याशियों के अधिकृत पत्रों में गड़बड़ी करने का आरोप लगाया गया था। यहीं से बसपा और श्री बरैया दोनों की ही उल्टी गिनती शुरू हो गई। तब से लेकर न तो बसपा ऊपर उठ पाई और न ही बरैया को राजनीति में कोई उचित स्थान मिल पाया है। अब राजनीति के गलियारों में चर्चा है कि श्री बरैया कांग्रेस में शामिल होकर भिण्ड-दतिया सुरक्षित संसदीय क्षेत्र से लोकसभा का चुनाव लडऩा चाहते हैं, लेकिन फिलहाल कांगे्रस उनको कोई महत्व देती नहीं दिख रही है।
दो बार बनाई नई पार्टी और दो बार बदला दल
बसपा से निष्कासन के बाद श्री बरैया ने समता समाज पार्टी बनाई और वर्ष 2003 के चुनाव में अपने उम्मीदवार खड़े किए। इस चुनाव में उन्हें एक मात्र भिण्ड जिले की मेहगांव विधानसभा सीट पर सफलता मिली और वहां से मुन्नासिंह नरवरिया चुनाव जीते, लेकिन भाण्डेर से स्वयं श्री बरैया को पराजय का सामना करना पड़ा था। वर्ष 2004 में श्री बरैया ने रामविलास पासवान की लोक जन शक्ति पार्टी में अपनी समता समाज पार्टी का बिलय कर दिया और उन्हें राष्ट्रीय उपाध्यक्ष का दायित्व मिला, लेकिन वर्ष 2008 में श्री पासवान ने म.प्र. में अपनी पार्टी बंद कर दी। इसके बाद वर्ष 2009 में श्री बरैया भाजपा में शामिल हो गए, लेकिन भाजपा में उन्हें उतना महत्व नहीं मिला, जैसा कि वे चाहते थे, इसलिए उन्होंने भाजपा को छोड़ नई पार्टी बहुजन संघर्ष दल का गठन किया और वर्ष 2013 में विधानसभा का चुनाव भी लड़े, लेकिन एक भी सीट पर सफलता नहीं मिली। वर्तमान में भी उनकी पार्टी का कोई अस्तित्व नहीं है। संभवत: इसी कारण वे कांग्रेस में अपना राजनैतिक भविष्य तलाश रहे हैं।
पार्टी में किसी को आगे बढ़ते नहीं देखना चाहतीं मायावती
बसपा के संस्थापक कांशीराम ने दलित आंदोलन को आगे बढ़ाने के लिए मायावती को उत्तर प्रदेश, फूलसिंह बरैया को मध्यप्रदेश और बाबूराम रत्नाकर को छत्तीसगढ़ की जिम्मेदारी दी थी। दरअसल कांशीराम हर प्रदेश में एक आत्मनिर्भर नेता बनाना चाहते थे, जो दलित आंदोलन को आगे बढ़ाता, लेकिन उनके बाद मायावती ने इसे नकार दिया। कांशीराम के बाद जैसे ही मायावती पार्टी की सर्वमान्य नेता बनी तो उन्होंने सबसे पहले फूलसिंह बरैया को पार्टी से बाहर का रास्ता दिखा दिया। इसके बाद उन्होंने म.प्र. में तो क्या पूरे देश में किसी और नेता को पार्टी के भीतर पनपने नहीं दिया क्योंकि वे नहीं चाहती कि कोई नेता उनके समकक्ष पहुंचकर उनके नेतृत्व को चुनौती दे। दरअसल फूलसिंह बरैया और बाबूराम रत्नाकर जैसे नेता मायावती को पार्टी का सर्वोच्च नेता मानने के लिए तैयार नहीं थे और ऐसे में उनका पार्टी में बना रहना मायावती के लिए खतरनाक हो सकता था।
Naveen Savita
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