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दो साल में चार नौकरशाहों को प्रभार, थम गया था विकास का पहिया

विवि को स्थायी कुलपति मिलने से जागी उम्मीद

दो साल में चार नौकरशाहों को प्रभार, थम गया था विकास का पहिया
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ग्वालियर, न.सं.। राजा मानसिंह संगीत एवं कला विश्वविद्यालय को आखिरकार दो साल बाद स्थायी कुलपति मिल गया है। कुलाधिपति एवं राज्यपाल आनंदीबेन पटेल ने प्रयागराज विश्वविद्यालय के संगीत एवं प्रदर्शन कला विभाग के प्राध्यापक डॉ. साहित्य कुमार नाहर को कुलपति नियुक्त किया है। उनका कार्यकाल चार वर्ष के लिए रहेगा। प्रो. लवली शर्मा की बर्खास्तगी के बाद से विवि को स्थायी कुलपति की दरकार थी और अभी तक प्रभारी कुलपतियों के भरोसे विवि चल रहा था। जिसमें से ज्यादातर बतौर प्रभारी नौकरशाहों के पास जिम्मेदारी थी, इसलिए कहीं न कहीं विवि का विकास रुकने के साथ ही साख को बट्टा भी लगा है।

ग्वालियर में राजा मानसिंह तोमर के नाम पर संगीत विवि की स्थापना इसलिए की गई थी कि ग्वालियर संगीत एवं कला का राजघराना रहा है और इस क्षेत्र में बड़े-बड़े पुरोधा ग्वालियर ने दिए। यहां की संगीत एवं कला की धरोहर को बढ़ावा देने के मकसद से 2009 को संगीत विवि की स्थापना हुई और प्रो. चितरंजन ज्योतिषी बतौर संस्थापक कुलपति बनाए गए हैं। 2009 से 2013 तक के उनके कार्यकाल में विवि ने नई ऊंचाइयों को छुआ और संगीत की परिकल्पना साकार होने लगी। इस बीच उनका कार्यकाल पूरा होने के बाद 2013 में प्रो. स्वतंत्र शर्मा बतौर कुलपति नियुक्त हुईं। इनका भी कुछ कालखंड विवि के विकास के लिए समर्पित रहा।

हालांकि कार्यकाल के आखिरी समय में कुछ विवादित निर्णयों ने उनके दूसरी बार कुलपति बनने के सपने को साकार नहीं होने दिया। इन निर्णयों को लेकर वह विवादों में भी रहीं और इस बीच शिक्षकों व कर्मचारियों का आपसी विवाद काफी चर्चा में रहा। हालांकि इन सब आरोपों के बीच 2017 में आगरा विवि की प्रो. लवली शर्मा की बतौर कुलपति नियुक्ति की गई। उन्होंने पदभार ग्रहण करने के साथ ही विवि में अंतरद्वंद शुरू हो गया। बताया यह जा रहा है कि उन्होंने आते ही कर्मचारियों और शिक्षकों को आपस में लड़ाना शुरू करवा दिया। उनके कार्यकाल में भ्रष्टाचार एवं गड़बडिय़ों का बोलबाला रहा। यहां तक कि कुछ शिक्षकों पर शारीरिक शोषण के आरोप भी लगे। कुलपति के आतंक की वजह से कुछ शिक्षकों ने पद से इस्तीफा भी दे दिया। उनके कार्यकाल की गड़बडिय़ों की शिकायत लगातार शासन व राजभवन पहुंचती रही। इसलिए राज्य शासन ने 3 अक्टूबर 2018 को उन्हें बर्खास्त कर दिया। उनके हटने के साथ ही कुलपति का प्रभारी नौकरशाहों के पास आ गया और वह भोपाल में ही बैठकर विवि चलाते रहे। इस बीच चार प्रमुख सचिव स्तर के अधिकारियों के पास जिम्मेदारी रही लेकिन ज्यादातर अधिकारी विवि में ही बैठे रहे और विवि की उन्हें कतई चिंता नहीं रही। यही वजह है कि पिछले तीन सालों में विवि की साख को भारी बट्टा लगा है और जिस गति से कृषि विश्वविद्यालय के शिक्षा का स्तर व विकास हुआ है वैसा संगीत विवि में नहीं हो सका। हालांकि अब राजभवन ने स्थायी कुलपति की नियुक्ति कर दी है और बहुत जल्द नवागत कुलपति डॉ. नाहर पदभार ग्रहण कर लेंगे।

स्थानीय लोगों को भी दिया जाए महत्व

विवि की कुलपति की दौड़ में बाहर के साथ-साथ प्रदेश व ग्वालियर के भी कुछ कला व संगीत के पुरोधा थे। इसके प्रयास भी लगातार हो रहे थे। उनका मानना यह था कि स्थानीय लोगों को कुलपति बनाने से वह विवि का विकास बहुत ही बेहतर तरीके से कर सकते हैं और संगीत व कला की धरोहरों को विश्व पटल पर फिर से स्थान दिलवा सकते हैं। कुछ स्थानीय प्राध्यापकों ने कहा कि शासन को स्थानीय लोगों को भी तबज्जो देना चाहिए।

Updated : 19 Sep 2020 1:01 AM GMT
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स्वदेश डेस्क

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