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क्या गुल खिलाएगी न्यूनतम आय गारंटी योजना

क्या गुल खिलाएगी न्यूनतम आय गारंटी योजना
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सत्ता की अंधी दौड़ में देश के मूल ढ़ांचे को तहस-नहस करने की योजना

भोपाल/विशेष संवाददाता। राफेल के मुद्दे की हवा निकलते देख और राजनीतिक महत्वाकांक्षाओं की पूर्ति के लिए राहुल गांधी की न्यूनतम आय गारंटी योजना का कांग्रेस ने जिस हड़बड़ी में ऐलान किया उससे ऐसा लगता है कि राहुल के सलाहकारों ने बिना गोली की बन्दूक उनके हाथ में थमा कर बार्डर पर जंग के लिए भेज दिया है। फि़लहाल 35 तरह की सब्सिडी देते देश में न्यूनतम आय गारंटी योजना क्या गुल खिलाएगी, का अनुमान ही लगाया जा सकता है। राहुल गाँधी भले ही इस बात का दावा कर रहे हैं, कि इसकी प्रतिपूर्ति का खाका तैयार है, परन्तु यह बात किसी के गले नहीं उतर रही, इसके लिए धन कहाँ से आएगा? राजनीति में इस विषय पर खलबली मची है, अर्थशास्त्री भी मंथन करने में जुट हुए हैं।

सबके सामने यक्ष सवाल

सबके सामने यही यक्ष सवाल है, कि इस योजना के लिए संसाधन कहां से लाए जाएंगे। अनुमान है कि करीब 3 लाख 60 हजार करोड़ रुपये का खर्च इस पर आएगा, जो कुल बजट का लगभग 13 प्रतिशत होगा। यह राशि कुल जीडीपी की 3 प्रतिशत होगी। अभी यह स्पष्ट नहीं है कि यह सहायता अभी दी जा रही सब्सिडियों की जगह लेगी या उनके अतिरिक्त होगी? फिलहाल सरकार 35 तरह की सब्सिडी + नागरिकों को उपलब्ध करा रही है। इन सभी सब्सिडियों के साथ न्यूनतम आय योजना को लागू करना बेहद कठिन है यह तभी लागू हो सकती है, जब सब्सिडियां कम या खत्म की जाएं। अभी जो सब्सिडी दी जा रही है, वह भी समाज के कमजोर वर्ग के ही लिए है। इनमें कटौती से कुछ तबकों में आक्रोश फैल सकता है। जो राहुल गांधी और कांग्रेस के गले की फांस बन सकता है।


पहले भी हुई कोशिश,लेकिन मिली नाकामी

कभी कांग्रेसी शासन में वित्त मंत्री रहे प्रणव मुखर्जी ने इस तरह की कोशिशें की थीं, पर वे अपर्याप्त साबित हुईं थीं। यूँ तो दुनिया की सबसे बड़ी न्यूनतम आय गारंटी योजना का ऐलान कर कांग्रेस ने चुनाव को राष्ट्रवाद जैसे भावनात्मक मुद्दे से हटाकर सामाजिक-आर्थिक मुद्दे पर केंद्रित करने की नाकाम कोशिश की है। कांग्रेस की मुख्य प्रतिद्वंद्वी पार्टी भाजपा के अलावा नीति आयोग ने भी इस पर सवाल उठाए हैं, लेकिन कांग्रेस को देश से पहले पार्टी वाले सिद्धांत का बुखार चढ़ा हुआ है। वह मोदी विरोध की अंधी दौड़ और सत्ता के सिंहासन पर पहुंचने की लालसा में देश के मूल ढ़ांचे को ही तहस-नहस करने पर आमादा है। हांलाकि लोकसभा चुनाव पर इसका कितना असर पड़ेगा यह तो भविष्य के गर्भ में समाया है। परन्तु कांग्रेस युवराज के ऐलान के बाद देश के मतदाताओं का जो मूढ़ दिखाई दे रहा है, उससे इतना तो साफ है कि देश का मतदाता तीन राज्यों के विधानसभा चुनाव के दौरान कांग्रेस की घोष्णाओं के हश्र से भली-भोति परिचित है। इसलिए अब देश का मतदाता ऐसे किसी झांसे में आसानी से आने वाला नही है। कांग्रेस के युवराज ने इस योजना को भाजपा सरकार द्वारा किसानों को सालाना 6000 रुपए देने की घोषणा की काट के रुप में लाने का ऐलान किया है। कांग्रेस का दावा है अगर उनकी सरकार केंद्र में आई तो सबसे गरीब 20 प्रतिशत परिवारों को हर साल 72000 रुपए दिए जाएंगे।

बढ़ेगी आर्थिक असमानता

अभी इस तथ्य से इंकार नही किया जा सकता है कि भारत का सुपर रिच तबका अभी अपने सामथ्र्य के हिसाब से बहुत कम टैक्स देता है। तमाम सरकारें टैक्स के नाम पर नौकरी पेशा मध्यवर्ग को ही निचोड़ती आई हैं। कांग्रेस अगर अपनी इस योजना के लिए देश के एक प्रतिशत सुपर अमीरों पर टैक्स बढ़ाती है तो यह एक नई शुरुआत होगी। वैसे भी भारत जैसे देश में, जहां आर्थिक असमानता बढऩे की रफ्तार अपनी पूरी तेजी पर है, गरीबों के लिए न्यूनतम आय की गारंटी करना बेहद जरूरी है। सामाजिक असंतोष को कम करने का यह एक बेहतर साधन हो सकता है। कांग्रेस के सहयोगी दल भी अभी इस पर सहमत नहीं है कांग्रेस अभी इस योजना से अपने सहयोगी दलों को सहमत करा पाती है या नहीं और चुनाव में उसे इसका कितना राजनीतिक लाभ मिलता है। एक प्रश्न चिन्ह है, यहाँ एक बात और भी विचार करने की है कि क्या इससे रोजगार का अथवा सुख पूर्वक जीवन का कोई हल देश को मिलेगा ?

Updated : 29 March 2019 3:15 PM GMT
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Naveen Savita

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