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प्रधानमंत्री ने यूरिया संयंत्र का किया उद्घाटन, कहा- सहकारिता गांव के स्वावलंबन का बड़ा माध्यम

प्रधानमंत्री ने यूरिया संयंत्र का किया उद्घाटन, कहा- सहकारिता गांव के स्वावलंबन का बड़ा माध्यम
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अहमदाबाद। प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने शनिवार को कहा कि आत्मनिर्भर भारत के लिए गांवों का आत्मनिर्भर होना बहुत आवश्यक है। उन्होंने कहा कि सहकार, गांव के स्वावलंबन का भी बहुत बड़ा माध्यम है। इसमें आत्मनिर्भर भारत की ऊर्जा है।

प्रधानमंत्री मोदी यहां महात्मा मंदिर, गांधीनगर में विभिन्न सहकारी संस्थानों के प्रमुखों के 'सहकार से समृद्धि' विषयक गोष्ठी को सम्बोधित कर रहे थे। प्रधानमंत्री ने कहा कि देश के किसान के हित में जो भी जरूरी हो, वो हम करते हैं, करेंगे और देश के किसानों की ताकत बढ़ाते रहेंगे। उन्होंने कहा कि भारत विदेशों से जो यूरिया मंगाता है इसमें यूरिया का 50 किलो का एक बैग 3,500 रुपये का पड़ता है। लेकिन देश में, किसान को वही यूरिया का बैग सिर्फ 300 रुपये का दिया जाता है। यानी यूरिया के एक बैग पर हमारी सरकार 3,200 रुपये का भार वहन करती है। प्रधानमंत्री ने कहा कि देश के किसान को दिक्कत न हो इसके लिए केंद्र सरकार ने पिछले साल 1.60 लाख करोड़ रुपये की सब्सिडी फर्टिलाइजर में दी है। किसानों को मिलने वाली ये राहत इस साल 2 लाख करोड़ रुपये से ज्यादा होने वाली है।

आदर्श सहकारी ग्राम

उन्होंने कहा कि महात्मा गांधी और सरदार वल्लभ भाई पटेल ने हमें जो रास्ता दिखाया, उसके अनुसार आज हम आदर्श सहकारी ग्राम की दिशा में आगे बढ़ रहे हैं। गुजरात के सहकारी क्षेत्र की राज्य की प्रगति में जीवंत भूमिका है। उन्होंने आगे कहा कि गुजरात के छह गांवों को चिन्हित किया गया है जहां सहकारिता की पूरी व्यवस्था की जाएगी।

यूरिया प्लांट की बढ़ रही संख्या -

मोदी ने गांधीनगर में इफको, कलोल में लगभग 175 करोड़ रुपये की लागत से निर्मित नैनो-यूरिया (तरल) संयंत्र के उद्घाटन करने पर प्रसन्नता व्यक्त की। उन्होंने कहा कि अब यूरिया की एक बोरी की जितनी ताकत है, वो एक बोतल में समाहित है। नैनो यूरिया की करीब आधा लीटर बोतल, किसान की एक बोरी यूरिया की जरूरत को पूरा करेगी। कल्पना कीजिए कि परिवहन लागत कितनी कम हो जाएगी और छोटे किसानों को लाभ होगा। इस प्लांट की क्षमता 1.5 लाख बोतलों के निर्माण की है, लेकिन आने वाले समय में भारत में ऐसे 8 और प्लांट स्थापित किए जाएंगे।

यूरिया की कालाबाजारी -

पिछली सरकारों में यूरिया की कालाबाजारी के कारणों किसानों को होने वाली समस्या का उल्लेख करते हुए प्रधानमंत्री ने कहा कि 7-8 साल पहले तक हमारे यहां ज्यादातर यूरिया खेत में जाने के बजाए, कालाबाजारी का शिकार हो जाता था और किसान अपनी जरूरत के लिए लाठियां खाने को मजबूर हो जाता था। हमारे यहां बड़ी फैक्ट्रियां भी नई तकनीक के अभाव में बंद हो गई। उन्होंने कहा कि 2014 में सरकार बनने के बाद हमने यूरिया की शत-प्रतिशत नीम कोटिंग का काम किया। इससे देश के किसानों को पर्याप्त यूरिया मिलना सुनिश्चित हुआ। साथ ही हमने उत्तर प्रदेश, बिहार, झारखंड, ओडिशा और तेलंगाना में 5 बंद पड़े खाद कारखानों को फिर चालू करने का काम शुरु किया।

Updated : 28 May 2022 12:15 PM GMT
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स्वदेश डेस्क

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