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अविश्वास प्रस्ताव : लोकसभा चुनाव में तस्वीर हुई साफ, अन्नाद्रमुक और टीआरएस होगी भाजपा के साथ

अविश्वास प्रस्ताव : लोकसभा चुनाव में तस्वीर हुई साफ, अन्नाद्रमुक और टीआरएस होगी भाजपा के साथ
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नई दिल्ली। 20 जुलाई 2018 को लोकसभा में मोदी सरकार के विरूद्ध अविश्वास प्रस्ताव के समय जिन दलों ने भाजपा का साथ दिया, जिनने साथ नहीं दिया, उससे 2019 लोकसभा चुनाव के संभावित पक्ष-विपक्ष का खाका बहुत हद तक साफ हो गया। यह तो स्पष्ट हो ही गया कि भाजपानीत राजग के विरूद्ध कांग्रेस, राकांपा, तृणमूल कांग्रेस, तेलुगुदेशम, माकपा, भाकपा, सपा, राजद, आप और जद(एस) हैं। चूंकि बसपा और द्रमुक का कोई सांसद लोकसभा में नहीं है| इसलिए इनका खुलासा नहीं हो सका। लेकिन द्रमुक ने कांग्रेस के साथ रहने का संकेत दिया है। वरिष्ठ पत्रकार वेंकटेश का कहना है कि वैसे तो तमिलनाडु में लोकसभा चुनाव में एक बार द्रमुक की सीटें अधिक आती हैं, दूसरी बाद अन्नाद्रमुक की। यह क्रम चलता रहता है। जयललिता की मौत के बाद से अन्नाद्रमुक में लगभग दो फाड़ हो गया है| उनमें पैबंद प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने लगवा रखा है। सो छापे आदि के डर से ये दोनों धड़े फिलहाल केन्द्र की भाजपा सरकार व उसके नेताओं की बात मान रहे हैं। इसीलिए अविश्वास प्रस्ताव के समय अन्नाद्रमुक के 37 सांसदों ने भाजपा की तरफदारी में अविश्वास प्रस्ताव के विरूद्ध वोट दिया| इससे राजग को मिले मतों की संख्या बढ़कर 325 हो गई, वरना उसके वोट 288 होते। लेकिन आगामी लोकसभा चुनाव में अन्नाद्रमुक की सीटें कम आने की संभावना है। सो द्रमुक जिसके साथ रहेगी उसको फायदा होगा और द्रमुक की कांग्रेस से बात हो रही है।

भाजपानीत राजग के साथ अन्नाद्रमुक ,टीआरएस की संभावना बनी है। जहां तक बीजू जनता दल का सवाल है तो ओडिशा में भाजपा हर हालत में सत्ता चाहती है। ऐसे में वह उसके विरूद्ध हर उपक्रम करके लड़ेगी, तभी अधिक सीटें आएंगी। इस बारे में बीजद के एक सांसद का नाम नहीं छापने की शर्त पर कहना है कि बीजद द्वारा 20 जुलाई को अविश्वास प्रस्ताव में मतदान में भाग नहीं लेने से यह मान लेना कि भाजपा के साथ हो गई है, गलत है। हां, केन्द्र में 2019 में भी भाजपा की सरकार बनी तो वैसे जनहित व राज्यहित के कुछ-कुछ मुद्दों पर समर्थन करके अपना काम निकलवाती रहेगी, जैसे अभी कर रही है।

रही बात तेलंगाना की सत्ताधारी पार्टी टीआरएस व उसके मालिक चंद्रशेखर राव की, तो तेलंगाना में उसकी लड़ाई कांग्रेस से है| इसलिए वहां वह भाजपा के साथ आ सकती है| हालांकि उसको वहां अपनी सरकार बचाने के लिए भाजपा की जरूरत नहीं है। अगले विधानसभा चुनाव में भी राज्य में उसकी ही सरकार बनने की संभावना है। वरिष्ठ पत्रकार वेंकट का कहना है कि चन्द्रशेखर राव अपनी बेटी,जो लोकसभा सांसद हैं, को केन्द्र में मंत्री बनवाना चाहते हैं| इसके लिए 2014 में भाजपा के आला नेताओं से आग्रह भी किये थे, लेकिन बात बनी नहीं। कुछ टीआरएस नेताओं का कहना है कि 2019 के लोकसभा चुनाव में भाजपा की हवा 2014 वाली नहीं रहेगी, सो अब भाजपा के शीर्ष नेता थोड़ा झुकेंगे और टीआरएस नेता चन्द्रशेखर राव की बात मानकर 2019 चुनाव के बाद भाजपानीत सरकार बनने पर उनकी बेटी कविता को राज्यमंत्री बना देंगे। इसके लिए लगभग सहमति बन गई है। इसलिए ज्यादा संभावना है कि 2019 के लोकसभा चुनाव में चन्द्रशेखर राव अपनी पार्टी टीआरएस को भाजपा का सहयोगी बना दें। उसके साथ सीटों का तालमेल करके चुनाव लड़ें। जब लोकसभा में सीटों का तालमेल करेंगे, तो विधानसभा चुनाव में भी सीटों का बंटवारा भाजपा के साथ करना पड़ेगा। भाजपा यदि उनकी बेटी कविता को केन्द्र में मंत्री बनाएगी, तो अपनी पार्टी के नेताओं को तेलंगाना में राव की सरकार में मंत्री बनवाएगी। मालूम हो कि तेलंगाना व आन्ध्र प्रदेश में विधानसभा चुनाव लोकसभा चुनाव के साथ ही होंगे।

इधर आन्ध्र प्रदेश में टीडीपी फिलहाल अकेले लड़ेगी। टीडीपी के एक नेता का कहना है कि कांग्रेस के साथ गठबंधन नहीं होगा, लेकिन कुछ सीटों पर अंदरूनी तालमेल हो सकता है। टीडीपी की विरोधी पार्टी जगन रेड्डी की है। जगन पर भ्रष्टाचार के भयंकर आरोप हैं। वह भाजपा नेताओं से संपर्क बने हुए हैं। इसीलिए घोटाले के कई मामले में जगन बेल पर विचरण कर रहे हैं| वरना जेल में होते। भाजपा आगामी लोकसभा व विधानसभा चुनाव में उनकी पार्टी के साथ अघोषित तालमेल करके चुनाव लड़ सकती है।

बीएचयू छात्र संघ के पूर्व अध्यक्ष व उ.प्र. कांग्रेस के पदाधिकारी अनिल श्रीवास्तव का कहना है कि भाजपा को सबसे बड़ा खतरा उत्तर भारत में है। यदि कांग्रेस, सपा, बसपा, राजद, झामुमो, राकांपा, आप, जद (एस) जैसे दल मिलकर आगामी लोकसभा चुनाव लड़े, तो उ.प्र., बिहार, झारखंड, म.प्र., महाराष्ट्र, राजस्थान, पंजाब, हरियाणा, उत्तराखंड, दिल्ली, कर्नाटक में इस गठबंधन को भाजपा से अधिक वोट मिलेगा। भाजपा को इन राज्यों में 2014 में मिली सीटें 2019 में आधी हो सकती हैं। उ.प्र. के पूर्व मंत्री व कांग्रेस के वरिष्ठ नेता सुरेन्द्र सिंह का कहना है कि यदि कांग्रेस, सपा, बसपा, राकांपा,राजद व अन्य स्थानीय दलों का गठबंधन हो गया और मिलकर चुनाव लड़े, तो 2019 के लोकसभा चुनाव में उ.प्र., बिहार, झारखंड, म.प्र., राजस्थान, दिल्ली, महाराष्ट्र में भाजपा को 2014 में मिली लोकसभा सीटें आधी से भी कम हो सकती हैं। यह भाजपा के लिए सबसे बड़ा झटका होगा। यह नहीं होने पाए इसके लिए भाजपा अयोध्या से लेकर पाकिस्तान, मंदिर से लेकर मुसलमान तक को मुद्दा बनाती रहेगी और लोकसभा चुनाव आते-आते इसे ही अपना एजेंडा नम्बर वन बना देगी।

Updated : 23 July 2018 12:10 PM GMT
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Swadesh Digital

स्वदेश वेब डेस्क www.swadeshnews.in


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