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मुस्लिम आरक्षण आजादी के बाद से ही कांग्रेस की रणनीति का हिस्सा

  • लियाकत अली और नेहरू समझौते का एक हिस्सा मुस्लिम आरक्षण भी था
  • अनीता चौधरी

मुस्लिम आरक्षण आजादी के बाद से ही कांग्रेस की रणनीति का हिस्सा
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नईदिल्ली/अनिता चौधरी। 2024 लोकसभा चुनाव में ओबीसी कोटे में मुस्लिम आरक्षण का मामला तूल पकड़ता जा रहा है। एक तरफ कांग्रेस इस चुनावी दौर में जनता से तुष्टिकरण की राजनीति की पराकाष्ठा पार करते हुए मुस्लिम आरक्षण के बड़े - बड़े वादे कर रही है तो वहीं दूसरी तरफ़ भाजपा कांग्रेस की मंशा पर सवाल उठाते हुए इसे अनैतिक और संविधान के खिलाफ बता रही है । कांग्रेस मैनिफेस्टो के मुस्लिम आरक्षण के वादे को लेकर पीएम मोदी कांग्रेस हमलावर हैं और पूरी भाजपा हल्ला बोल हुई हैं। वैसे कांग्रेस के मुस्लिम आरक्षण के वादे ने एक नये विवाद को जन्म दे दिया है जिसकी चर्चा भी चहुँ ओर होने लगी है ।

वैसे मुस्लिम तुष्टिकरण की राजनीति तो कांग्रेस के लिए आम थी अब सवाल ये उठता है कि क्या कांग्रेस के तुष्टिकरण की राजनीति में मुस्लिम आरक्षण भी शामिल था ? क्या ये पहला मौक़ा है जब कांग्रेस संविधान के ख़िलाफ़ मुस्लिम आरक्षण की बात कर रही है ? बहुत सारे क्या के बीच कांग्रेस के इस नीति को समझने के लिए हम सभी को नेहरू युग में जा कर नेहरू की नीतियों को समझाना बेहद ज़रूरी है । सबसे पहले ये समझाना होगा कि मुस्लिम आरक्षण की भूत की जड़ प्रथम बार आयी कहाँ से ?

1947 में देश का बंटवारा धर्म के आधार -

दरअसल ये बहुत बड़ा सच है कि 1947 में देश का बंटवारा भले धर्म के आधार पर हुआ जो बहुत बड़ा दर्द भी दे गया ? मगर एक सच ये भी है कि आज़ादी के बाद से ही नेहरु मुसलमानों को नौकरियों के साथ-साथ चुनावों में भी आरक्षण देने के पक्षधर थे । उन्होंने बाक़ायदा इसके लिए ब्लू प्रिंट भी तैयार कर लिया था ! नेहरु का मुस्लिम चुनावी आरक्षण का प्लान भविष्य के भारत के लिए बेहद ख़तरनाक था । नेहरू के ब्लू प्रिंट के मुताबिक़ भारत में कई मुस्लिम बाहुल सीट बनाने का प्लान था । इस योजना के अनुसार इन सीटों पर सिर्फ मुस्लिम उम्मीदवार ही खड़े हो सकते थे और उस सीट पर वोट डालने का अधिकार भी सिर्फ मुसलमान को ही होता । यानी नेहरू की योजना अनुसार पंचायत से लेकर लोकसभा तक भारत के मुस्लिम बाहुल शेयरों में सिर्फ मुसलमानों द्वारा मुसलमान प्रतिनिधि चुना जाता । जवाहर लाल नेहरू की इस योजना और उनकी मुस्लिम परास्त मंशा का उल्लेख तब के नेहरू कैबिनेट के पीडब्ल्यूडी मिनिस्टर एन . वी. गाडगिल ने अपनी किताब गवर्नमेंट ऑफ इनसाइड में पूरे विस्तार से किया है ।

करीब पांच लाख बंगाली हिंदुओं का नरसंहार कर दिया

ये बात 1949 की है जब पूर्वी पाकिस्तान यानी आज के बांग्लादेश में हिंदू विरोधी दंगे अपने पूरे उफान पर थे। करीब पांच लाख बंगाली हिंदुओं का नरसंहार कर दिया गया था । वहीं करीब पचास लाख बंगाली हिंदू जान बचाकर हमेशा-हमेशा के लिए पश्चिम बंगाल में शरण ले चुके थे । पूरे देश में पाकिस्तान के खिलाफ सख्त एक्शन लेने की मांग हो रही थी। लेकिन शांति के मसीहा कहे जाने वाले नेहरू के दिमाग में कुछ और ही चल रहा था। उन्होने ब्रिटिश सरकार के दबाव में पाकिस्तान से युद्ध के बजाय बातचीत का रास्ता चुना।

प्रधानमंत्री लियाकत अली खान दिल्ली पहुंचे

शांति के इस रास्ते में आगे की स्थिति और भी भयावह थी । दरअसल 1950 के मार्च महीने के आखिर हफ्ते में पाकिस्तान के प्रधानमंत्री लियाकत अली खान दिल्ली पहुंचे और नेहरू के साथ उनकी बातचीत के दौर शुरु हुआ । इस बातचीत का मुद्दा ये था कि दोनों देश अपने-अपने अल्पसंख्यकों को किस तरह से सुरक्षा दे सकते हैं। इस बातचीत में लियाकत अली ने नेहरू से कहा कि वो भारत में मुसलमानों के लिए आरक्षण की व्यवस्था करें। हैरत की बात है कि लियाक़त अली के इस बेहूदा मांग पर नेहरू पूरी तरह से तैयार भी हो गये। बकायदा समझौते का एक ड्रॉफ्ट भी तैयार की गई । जिसमें भारत में मुसलमानों को नौकरी और चुनावों में आरक्षण देने का वादा किया गया। लेकिन लियाक़त अली और नेहरू इस ख़तरनाक मंसूबे पर पानी फेरने के लिए एक नया मोड़ आया और इस प्रकरण में एंट्री हुई सरदार पटेल और एन .वी. गाडगिल की।

मुसलमानों को उनकी आबादी के अनुपात आरक्षण देने का वादा -

नेहरू जब इस ड्रॉफ्ट को लेकर कैबिनेट की बैठक में पहुंचे तो बैठक में मौजूद तत्कालीन पीडब्लूडी मंत्री एन.वी. गाडगिल और मंत्री सरदार वल्लभ भाई पटेल ने इसका विरोध किया । एन . वी. गाडगिल अपनी किताब Government From Inside में इस पूरे मामले का ज़िक्र करते हुए लिखते हैं कि -

"ठीक 10 बजे नेहरू ने कैबिनेट के सामने लियाकत अली के साथ अपने समझौते का एक ड्रॉफ्ट रखा। मुझे इस बात की जानकारी नहीं थी कि इस ड्रॉफ्ट पर सरदार पटेल से सहमति ली गई थी या नहीं। समझौते के अंतिम दो पैराग्राफ में भारत के सभी राज्यों की नौकरियों और प्रतिनिधि निकायों के सभी चुनावों में मुसलमानों को उनकी आबादी के अनुपात आरक्षण देने का वादा किया गया था। केंद्र सरकार की नौकरियों के लिए भी यही प्रावधान रखे गये थे। हम सभी मंत्रियों को ड्रॉफ्ट की एक-एक कॉपी दे दी गई थी लेकिन किसी ने अपना मुंह नहीं खोला। तब मैंने कहा कि – ‘ये दो पैराग्राफ कांग्रेस की पूरी विचारधारा के खिलाफ हैं। मुसलमानों के लिये अलग से सीट स्वीकार करने की वजह से देश को विभाजन की कीमत चुकानी पड़ी। आप हमें फिर से वही ज़हर पीने को कह रहे हैं। ये एक विश्वासघात है।’

गाडगिल की आपत्तियों में दम

कैबिनेट की बैठक में मुसलमानों को आरक्षण देने वाले ड्राफ्ट का एन.वी. गाडगिल ने सख्त विरोध किया, इसके बाद कैबिनेट की बैठक में क्या हुआ ये जानने के लिए आये खुद एनवी गाडगिल के शब्दों में वो अपनी किताब में लिखते हैं उसे पढ़ते हैं। वो लिखते हैं कि “मेरे विरोध की वजह से नेहरू नाराज थे लेकिन बाकी मंत्री खुश थे। फिर भी उनमें से किसी ने भी मेरा समर्थन करने की हिम्मत नहीं की। आधे घंटे तक चली चर्चा के बाद मंत्री गोपालस्वामी अयंगर ने कहा कि – ‘गाडगिल की आपत्तियों में दम है’ और उन्होने समझौते के आखिरी दो पैराग्राफ फिर तैयार करने का काम अपने हाथ में ले लिया। इस पर नेहरू ने गुस्से में जवाब दिया कि - ‘मैंने लियाकत अली खान के साथ इस शर्त पर अपनी सहमति व्यक्त की है।‘ तब मैंने उन्हे जवाब दिया कि – ‘आपने उन्हें ये भी बताया होगा कि कैबिनेट की मंजूरी के बाद ही समझौते को अंतिम रूप दिया जा सकता है। मैं अन्य कैबिनेट सदस्यों के बारे में तो नहीं कह सकता लेकिन मैं इसका सौ फीसदी विरोध करता हूं।’ इस पर सरदार पटेल ने चुपचाप सुझाव दिया कि चर्चा अगले दिन के लिए स्थगित कर दी जाए और बैठक स्थगित कर दी गई।"

गाडगिल अपनी किताब में आगे लिखते हैं कि उसी रात सरदार पटेल ने उन्हे ये जानकारी दी कि गोपालस्वामी आयंगर ने समझौते के ड्राफ्ट में बदलाव कर दिया है। लिहाज़ा जब अगले दिन मंत्रिमंडल की बैठक हुई तो अंतिम दो पैराग्राफों को हटा दिया गया था। इस तरह सरदार पटेल की समझदारी और एन.वी. गाडगिल का खुला विरोध ने नेहरू -लियाक़त के इस पैक्ट पर पानी फेर दिया ।

Updated : 29 April 2024 7:24 AM GMT
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स्वदेश डेस्क

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