ऋतुओं के अनुसार ग्रहण करें भोजन
X
नई दिल्ली। कुछ खाद्य पदार्थों को आहार के रूप में ग्रहण किया जाये तो वे शरीर का तापमान बढ़ा देते है, जबकि ऐसे आहार ठंड के मोसम में ग्रहण किये जायें तो शरीर का तापमान अनुकूल हो जाता है। जब प्रक्रति में तापमान अधिक रहता है तो जठरागिन मंद हो जाती है, किन्तु जब प्रक्रति में ठंडक रहती है तब उसकी अग्नि तीव्र हो जाती है, इसी कारण ठंड में गरीष्ठ आहार आसानी से पच जाता है।
व्यक्तिव का आहार के साथ गहरा सम्बन्ध है।क्रोधी स्वाभाव का व्यकित प्रातकाल का भोजन ठंडी प्रक्रति का व काम मिर्च मसाले का लेंवे, गर्म प्रक्रति के आहार को कदापि ग्रहण न करें।
विभिन्न ऋतुओं में निम्नानुसार आहार ग्रहण किया जाये तो स्वास्थ्य श्रेष्ठ बना रहता है:
-हेमंत ऋतु (15 नवम्बर से 14 जनवरी) : इस ऋतु में ठंडक होने से कफ बढ़ जाता है। हेमंत ऋतु में खट्टा, नमकीन, वसायुक्त, चटनी, आचार, दूध या दूध से बने पदार्थ लेना चाहिये। हेमंत ऋतु शक्ति बढ़ाने वाली ऋतु है। अतः इसमें चिकनई वाले पदार्थ को ग्रहण करकर श्रेष्ठ स्वास्थ्य पा सकते है।
-शिशिर ऋतु (15 जनवरी से 25 मई) : शिशिर ऋतु में वात (वायु) बढ़ जाता है। शिशिर ऋतु में तीखा, कड़वा, ठंडा व कृत्रिम पेय नहीं लेना चाहिए। इस ऋतु में मीठे खट्टे व नमकीन पदार्थ लेने से वायु प्रकोप कम हो जाता है।
-वसंत ऋतु (15 मार्च से 25 मई) : इस ऋतु में संचित कफ अनेक रोगों को उत्पन्न करता है | इसका उपचार कुंजर क्रिया के द्वारा करते है | साथ ही खट्टे, तेल युक्त व मीठे पदार्थों का सेवन नहीं करना चाहिए | अतः वसंत ऋतु में हल्का व गर्म, कडवे व चटपटे आहार लेना चाहिए |
-ग्रीष्म ऋतु (15 मई से 15 जुलाई ) : इस ऋतु में पित्त कि अधिकता हो जाती है ग्रीष्म ऋतु में नमकीन, खट्टे व गर्म भोजन का सेवन नहीं करना चाहिए | स्वादिष्ट ठंडे, चटपटे, कसेले, तेलयुक्त व मीठा आहार लेना चाहिए |
-वर्षा ऋतु ( 15 जुलाई से 15 सितम्बर ) : इस ऋतु में वात की अधिकता रहती है | पाचन - क्रिया मंद हो जाती है गर्मी बढाने वाले सुपाच्य आहार लेवें, हरी पत्तेदार सब्जियों का सेवन करें
-शरद ऋतु (15 सितम्बर से 15 नवम्बर ) : इस ऋतु में पित्त की अधिकता रहती है | इस ऋतु में पित्त रहित आहार ग्रहण करना चाहिए | मीठे, हलके और ठंडे भोजन का सेवन करें | कडवे पय, घी,वसा व तेल के प्रयोग से बचें |
Swadesh Digital
स्वदेश वेब डेस्क www.swadeshnews.in