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जल परिवहन, एक भविष्यदर्शी योजना

आजादी के बाद पहली बार कोई सरकार आयी है जिसने नदियों की ताकत पहचानी है।

जल परिवहन, एक भविष्यदर्शी योजना
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- सियाराम पांडेय शांत

प्रधानमंत्री उम्मीदवार के रूप में नरेंद्र मोदी ने अपनी प्रथम उपस्थिति में काशीवासियों को यह कहकर चौंकाया था कि उन्हें मां गंगा ने बुलाया है। इस बयान के बाद मोदी पर उस समय और उसके बाद भी तमाम राजनीतिक आक्षेप हुए लेकिन मोदी उससे जरा भी विचलित नही हुए। वे काशी आते रहे और उसे विकास की सौगात देते रहे। काशी ने अगर देश का प्रधानमंत्री चुना तो यह कहने में किसी को शायद ही गुरेज हो कि मोदी ने काशी को बनाया। उसके विकास के सपने देखे। उसके विकास के लिए अनेक योजनाएं दी। उनकी मॉनिटरिंग भी की। उन्होंने साबित किया कि मां गंगा ने ही उन्हें प्रधानमंत्री बनने का गौरव दिया है। इसलिए वे गंगा की साफ-सफाई को लेकर चिंतित है। उनके मंत्री नितिन गडकरी की इस बात से तसल्ली होती है कि अगले साल कुम्भ से पहले गंगा पूरे देश में 80 प्रतिशत शुद्ध हो जाएगी। प्रदूषण मुक्त हो जाएगी। नरेन्द्र मोदी भी आश्वस्त कर रहे हैं कि वे गंगा सफाई का पैसा पानी में नही बह रहे हैं बल्कि उसकी सफाई के मूल उद्देश्य पर ही उसे खर्च कर रहे हैं। सूर्योपासना के पर्व डाला छठ पर काशी को 2500 करोड़ की सौगात देकर उन्होंने एक बात फिर साबित कर दी है कि उनका विश्वास केवल और केवल विकास में है। भाजपा उन दलों में बील्कुल भी शामिल नहीं है, जिनका विश्वास किसी खास परिवार के विकास में है। उसकी राजनीति न तो परिवार से आरंभ होती है और न ही परिवार पर खत्म। काशी में देश में निर्मित पहले मल्टी मॉडल टर्मिनल का तो प्रधानमंत्री ने लोकार्पण किया ही,साथ ही काशी को रिंग रोड,सीवरेज ट्रीटमेंट प्लांट,बीएचयू मार्ग पर उपरिगामी फुटपाथ के निर्माण,हेलीपोर्ट के निर्माण,चालक प्रशिक्षण केंद्र की स्थापना कार्यों का शिलान्यास भी किया। काशी के लिए मूलभूत सुविधाओं का विकास एक अच्छा प्रयास है।

आजादी के बाद पहली बार कोई सरकार आयी है जिसने नदियों की ताकत पहचानी है। नदियों से जुड़ने का मतलब है अपनी जड़ों से जुड़ना, अपनी संस्कृति से जुड़ना। भारतीय संस्कृति का विकास नदियों की घाटियों में ही हुआ है। हमें इस बात को भूलना नही चाहिए। नरेंद्र मोदी ने पहले यह बात सोची कि जब नदियां पहले व्यापार का जरिया थीं, तो आज ऐसा क्यों नही हो सकता। इसमें शक नहीं कि पूर्ववर्ती सरकारों ने नदियों के साथ अन्याय- अतिचार किया। आज अगर नदियां प्रदूषित हैं,उनका अविरल,अविकल प्रवाह बाधित हुआ है तो उसके मूल में सरकारों के स्तर पर नदियों की अनदेखी ही बहुत हद तक जिम्मेदार है। जब नदियां व्यापारिक केंद्र बनेंगी तो वे सबके आकर्षण का केंद्र होंगी। शासन-प्रशासन की तो उन पर दृष्टि होगी ही,आम आदमी भी नदियों को प्रदूषित करने से बचेगा । मोदी सरकार अगर 100 से अधिक जलमार्गों की योजना पर काम कर रही है तो उसके मूल में भी नदियों की बेहतरी के ही भाव है।

कांग्रेस राज में गंगा प्रदूषण के नाम पर करोड़ों-अरबों रुपये यूं ही पानी में बह दिए गए। करोड़ों रुपये मूल्य के कागजी कछुए गंगा में छोड़े गए। जब जांच में एक भी कछुआ नहीं मिला तो कांग्रेसियों ने तर्क दिया कि कछुए बहकर वाराणसी से बाहर निकल गए। गंगा प्रदूषण पर सवाल उठाने वालों की नजर कभी भी नदियों में गिरने वाले नालों और टेनरीज के प्रदूषित अवलेह पर नही पड़ी। कल- कारखाने अपने रासायनिक कचरे धड़ल्ले से नदियों,तालाबों और नहरों में गिराते रहे। कभी किसी सरकार ने जलस्रोतों के प्रदूषित होने के हालात पर विचार नहीं किया। मोदी विजनरी पीएम हैं। वह जैसा सोचते हैं,उसे मूर्त रूप देने की सोचते भी हैं। उन्होंने नए भारत का सपना देखा है।अब भारत को आधुनिक बनाना है तो पुरातनता का मोह तो छोड़ना ही होगा। उन्होंने तो चार साल पहले ही बनारस और हल्दिया को जल मार्ग से जोड़ने की घोषणा कर दी थी।उस समय भी विपक्ष ने तर्क दिया था कि मैली हो रही गंगा में मालवाहक जहाज कैसे चलेंगे लेकिन हल्दिया से चलकर जहाज काशी आ गया । इसे विचार और पुरुषार्थ की ताकत नहीं तो और क्या कहा जायेगा।प्रधानमंत्री का दावा है कि लोग जलमार्ग के जरिये कुम्भ में सवा घंटे में वाराणसी से प्रयागराज जा सकेंगे।अगर ऐसा होता है तो इससे बड़ी बात और क्या होगी। गंगा वाराणसी की जीवन रेखा है । जलमार्ग विकसित होने के बाद यह व्यापार का बड़ा माध्यम बनेगी। इससे उत्तर प्रदेश की भी अर्थव्यवस्था मजबूत होगी। नितिन गडकरी का दावा है कि सड़क परिवहन और रेल परिवहन से जल परिवहन क्रमशः 10 और 6 गुना सस्ता होगा। क्रूज पर्यटन की ओर देश बढ़ रहा है। तरक्की के नए रास्ते खुल रहे हैं। अभी वाराणसी हल्दिया से चलकर 16 कंटेनर आएंगे। बाद में यह तादाद और बढ़ेगी।

केंद्र सरकार का लक्ष्य इस साल 80 लाख टन सामान के जल परिवहन का है। सरकार की योजना चीनी मिलों में तैयार एथेनॉल से जलवाहक चलाने की है। इससे डीजल और पेट्रोल पर निर्भरता घटेगी। किसानों और चीनी मिलों को लाभ होगा । यह देश सोने की चिड़िया इसलिये भी रहा कि यहां के लोग छोटी-छोटी चीजों पर सोचते थे। वह शब्दश: नहीं,तत्वतः विचार करते थे। व्यावहारिक चिंतन करते थे। बहुत दिनों बाद देश को इस ढंग से सोचने-समझने वाला कोई प्रधानमंत्री मिला है जिसने देश को दुनिया भर में समादृत करने का काम किया है। विपक्ष को यह बात पच नही रही है। इससे पहले राजनीतिक वादे केवल वादों तक ही रहते थे। यथार्थ का अमली जामा नहीं पहन पाते थे। विगत कुछ वर्षों में यह प्रवृत्ति बदली है तो विपक्ष परेशान है। मोदी सरकार को गलत बताने का प्रयास कर रहा है लेकिन उसे सिंहासन बत्तीसी की पुतलियों के सवालों पर भी विचार करना होगा कि क्या वे विक्रमादित्य जैसी काबिलियत रखते हैं। सत्तारूढ़ होना और बात है और देश को आगे ले जाना और बात। यह देश के भविष्य का सवाल है।

देश को ही सोचना होगा कि उसका भविष्य किसके हाथों में सुरक्षित है। गंगा में जल परिवहन शुरू हो गया है तो गंगा के अविरल प्रवाह की भी चिंता करनी होगी। बांध गंगा या किसी भी नदी के अविरल प्रवाह में बाधक हैं लेकिन नदी में हर वक्त दो फीट पानी की सुनिश्चितता के दावे से काम नही चलेगा। दो फीट पानी में तो सामान्य नाव नहीं चलती। मलवाहक जहाज कैसे चलेंगे? नदियों में हर मौसम में 20-25 फ़ीट पानी तो रहना ही चाहिए । सरकार गंभीर रहे और स्थानीयता के स्वार्थ उन पर हावी न हों तो असम्भव कुछ भी नहीं। बस अनुश्रवण होता रहे और एक राज्य का दूसरे राज्य से तालमेल बना रहे। जहां सुमति तहँ सम्पति नाना।

Updated : 18 Nov 2018 7:37 PM GMT
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Swadesh Digital

स्वदेश वेब डेस्क www.swadeshnews.in


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