चम्बल के पुराने किस्से, अब नहीं बचा बीहड़ के डकैतों का साम्राज्य
चंबल में 2009 तक चली डकैतों की हुकूमत
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स्वामीनाथ शुक्ल। इतिहास के पुराने पन्नों को पलटने से पता चलता है कि पहले बीहड़ के जंगलों से दुर्दांत डकैतों के चुनावी फरमान जारी होते थे। जिससे डकैत उत्तर प्रदेश और मध्यप्रदेश के दर्जनों जिलों में उम्मीदवारों के जीत-हार का फैसला करते थे। राजनीति के जानकार बताते हैं कि औरैया, इटावा, बांदा, जालौन, चित्रकूट फतेहपुर,सतना, रीवा, पन्ना, छतरपुर और फर्रुखाबाद, मैनपुरी,एटा तक की राजनीति में डकैतों का सीधा हस्तक्षेप होता था। सरपंच के चुनाव से लेकर विधानसभा और लोकसभा चुनाव में बीहड़ के जंगलों से डकैतों की चिट्ठी में लिखे गए चुनावी फरमान गांव गांव पढ़ें जाते थे। जिस उम्मीदवार के पक्ष में समर्थन होता था। वहीं वोट पड़ते थे। डकैतों में ददुआ, निर्भर गुर्जर, ठोकिया, रागिया, बलखड़िया,बबली कोल, लालाराम, श्रीराम, फूलन देवी,राम आसरे फक्कड़, रामवीर और गौरी यादव आदि थे।
चंबल में 2009 तक चली डकैतों की हुकूमत, इनके बड़े बड़े गिरोह थे सक्रिय
- डकैत निर्भर गुर्जर
- डकैत जगजीवन परिहार
- डकैत राम आसरे फक्कड़
- डकैत रामवीर सिंह गुर्जर
- डकैत अरविंद गुर्जर
- डकैत चंदन यादव
- डकैत मंगली केवट
- डकैत रघुवीर ढीमर
निर्भय गुर्जर, जगजीवन परिहार और पहलवान गुर्जर के नाम से चुनावी फरमान जारी होते थे। बताया जाता है कि निर्भय गुर्जर लेटरपैड पर फरमान जारी करता था। लेटर पैड के ऊपर दस्यु सम्राट निर्भर वीर गुर्जर लिखा होता था। लेकिन 2009 के बाद से बीहड़ में डकैतों का सफाया हो गया। साल 1980 से 2 हजार तक ददुआ की तूती बोलती थी। लेकिन धीरे-धीरे राजनीति में सक्रिय भूमिका निभाई। पहले बीहड़ के जंगलों में हाथी दौड़ाई फिर परिवार को लाल टोपी पहना दी। भाई बालकुमार पटेल, बेटा वीर सिंह पटेल और भतीजे रामसिंह पटेल को पट्टी प्रतापगढ़ से सपा का विधायक बना दिया। रामसिंह पटेल मौजूदा समय में पट्टी प्रतापगढ़ से सपा के विधायक हैं। योगी आदित्यनाथ की कैबिनेट के पूर्व मंत्री राजेंद्र प्रताप सिंह उर्फ मोती सिंह को रामसिंह पटेल हराकर विधानसभा गए थे। लेकिन बसपा की 2007 की सरकार में एसटीएफ ने ददुआ को मार गिराया था।
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