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काव्यात्मक रिपोर्ताज : महाविजेता

डॉ. रुचि चतुर्वेदी

काव्यात्मक रिपोर्ताज : महाविजेता
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महाविजय का महासूर्य नभ में दीपित फिर से।

सतत जागरण भावदीप है नवज्योतित फिर से ।।

विजय की इबारत लिखने वाला विजेता और महाविजय की गाथा लिखने वाला महाविजेता कहलाता है। इसमें कोई दो राय नहीं कि जिस व्यक्ति के ललाट पर महाविजय का शुभ तिलक लगा हो,वह दैवीय शक्तियों का शुभाशीष प्राप्त होता है,और यूँ कहें कि उसमें स्वयं दैवीय अंश होता है भी अतिश्योक्ति न होगी।

ऐसे ही एक महाविजेता का प्रादुर्भाव इस भारतवर्ष में हुआ जिसने भारतीय राजनीति की पुरानी पुस्तक का पाठ्यक्रम ही बदलकर रख दिया। उस महाविजेता के समक्ष समस्त नकारात्मक ताकतें चट्टान के समान खड़ी थीं,किन्तु इस महाविजेता ने सिद्ध कर दिखाया कि उसको चट्टान को चीरकर राहें बनाना आता है।

इस महाविजेता को एक प्रमेय सिद्ध करनी थी कि जाति और धर्म के आधार पर विजयग्रंथ के पृष्ठ लिखे जाते हैं किन्तु इस महाविजेता ने इस प्रमेय का आधार समाप्त कर एक नयी प्रमेय ही लिख डाली कि जाति और धर्म से नहीं राष्ट्र को राष्ट्र भावना से सुसज्जित किया जाता है। उस महाविजेता ने विभाजन,आराजकता,कुत्सित भाव, भ्रष्टाचार जैसी समस्त ज्यामितीयों को स्वार्थी कोणों सहित मिटाते हुए, एक नयी ज्यामितिय संरचना दे डाली, जिसमें स्नेह, निस्वार्थभाव, सामंजस्य, भाईचारा, ईमानदारी, सेवा और समर्पण, जिसके कोण प्रेम और निष्ठा, जिसका आकर आर्यावर्त जैसा हो।

उस महाविजेता के एक एक शब्द के अन्तरस्वर जिस वन्दना का स्वर सुनाते वो नमस्ते सदा वत्सले मातृभूमि का स्वर होता। उस महाविजेता ने इतिहास के प्राचीनतम पृष्ठ को नवीनतम लेखनी से लिखना शुरु किया तो युगों की लिपियाँ ही बदल डालीं। उस महाविजेता ने ठाना कि जन जन की सेवा निर्जन भाव और परिवारों की अनंत लतिका नहीं संकल्प की वृहद दीपिकायें और दृढ़ निश्चय की संकल्पना ही कर सकती है,तो यह कर भी दिखाया।

उस महाविजेता को दुख था कि माँ भारती का मस्तक जिसको सजीली चुनरिया ओढऩी थी,वह पीड़ाओं से घिरा है,इस कष्ट के निवारण के लिाए वह महाविजेता जब चला तो बड़ी कठिनाइयाँ राह रोकतीं किन्तु उस महाविजेता ने हर एक आक्रांता की आँखों में आँखें डालकर जब देखा तो दुश्मन और घर के विरोधी दोनों धूल का स्वाद चखते हुए माँ भारती के चरणों में नतमस्तक हो गये , उस क्षण सारी कायनात अभिनंदन के सुमन समर्पित करने समक्ष थी ।

उस महाविजेता ने कू्रर ताकतों के विरुद्ध ताल ठोकी तो कू्ररता ने ममता खोते हुए गुंडा कह डाला, बुराई ने माया का बंधन बांधना चाहा,अखिल विश्व नरेश तक इसमें कमर कसकर सामने खड़े थे, लेकिन जब उस महाविजेता का रथ इस महासमर में दौड़ा तो लगा बुराई को उड़ा ले जाने वाली प्रलयंकर आँधी सब कुछ उड़ा ले जायेगी । चुनाव के महासागर में उठती बुराइयों की तेज़ लहरें, कूटनीति के भँवर और आराजकता की ललकारों के चक्रवात उठते आ रहे थे, किन्तु वह दिन आया जब उस महाविजेता को संसार की सर्वशक्तियों ने चहुँदिश शक्ति दी और एक सुखद शांति का संचार हुआ,सब कुछ शांत। उड़ गयी सारी बुराई मानो बुराई का कण भी शेष न रहेगा। वह सुनामी थी जीत की, गडग़ड़ाहट थी प्रचण्ड आरम्भ की, गूँज थी सच्चाई की, और लपटें थीं भाव यज्ञदीपों की।

उसके बाद हुआ एक आरम्भ, एक नया आरम्भ। घन्टे, शंख, ढोल की ध्वनियों की गूँज बधाई देती, स्वयं इन्द्रदेव पुष्प वर्षा करते, आसमान बिजली की चमक से चमका,सागर जलतरंग सुनाता और समस्त सृष्टि पुष्प वर्षा करती।

उस महाविजेता की महाविजय के दृश्य ऐसे थे जो शब्दों का लोभ कर मौन होकर बस इस पल को जी लेना चाहते थे, दृश्य ऐसा था कि जो संदर्भों का लोभ कर बस अंतस में समा लेना चाहता था सब कुछ ।

स्वागत को दसों दिशाओं से इंद्रधनुष का पहिया पुष्प वर्षा को आतुर था। उन्होंने सब कुछ बदल दिया सब कुछ का मतलब सब कुछ अपने विपक्षियों की चालों का आख्यान भी लिखा तो दुष्टों की हर एक कुत्सित भावना का दमन भी किया। दसों दिशायें,आकाश ,धरा,रात दिन बस उसकी जय-जयकार में खो जाना चाहते थे, चारों ओर से एक ही स्वर सुनायी देता था ...मोदी, मोदी, मोदी ।

दुनिया मंत्रमुग्ध होकर बस सुनना चाहती थीउस महाविजेता को जिसने स्वयं को फकीर की संज्ञा दे डाली। जनता देखना चाहती थी उनके भाव और समझना चाहती थी उनकी भाव भंगिमा। वह जब चले तो पैरों में पहिया बांध लिया और हाथ में चक्र ले लिया। ऐसा पहिया जिसकी रफ्तार महा विजय की उस महा मंजिल के बाद ही रुकी और ऐसा पहिया जिसको उस महा विजय के बाद एक और जीत की इबारत लिखने के लिए चल पडऩा है।

जीत जिसने जाति, धर्म, भेदभाव को सिरे से नकार दिया ।

जीत की वो कहानी जो बस सुनते जाना है जिसे लिखा है उस महाविजेता ने ।

उस महाविजेता का नाम है श्री नरेंद्र दामोदर दास मोदी ।।

Updated : 23 Jun 2019 7:00 AM GMT
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Swadesh Digital

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