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लाभ का पद : गर्माया सियासी पारा, किसी भी वक्त हो सकता है उपचुनाव

लाभ का पद : गर्माया सियासी पारा, किसी भी वक्त हो सकता है उपचुनाव
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नई दिल्ली। राजधानी दिल्ली का सियासी पारा एक बार फिर गर्मा गया है। अब तक ठंढ़े बस्ते में चल रहा लाभ का पद का मामला चुनाव आयोग के हस्तक्षेप के बाद जहां एक बार फिर सुर्खियों में आ गया है | वहीं विपक्ष इस मामले को लेकर एक फिर इस्तीफे की मांग पर अड़ गया है। हालांकि केजरीवाल सरकार और पार्टी ने इसे अब तक आर्थिक लाभ नहीं मान रही है।

दरअसल, चुनाव आयोग ने निर्णय दिया है कि लाभ पद मामले में फंसे आम आदमी पार्टी (आप) के 20 विधायकों पर वह सुनवाई जारी रखेगा। इन विधायकों ने दिल्ली उच्च न्यायालय के आदेश के आधार पर आयोग से इस मामले को खत्म करने का अनुरोध किया था। आयोग के आदेश के बाद भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) और कांग्रेस ने अनिश्चितता का माहौल खत्म करने के लिये इस मामले से जुड़े विधायकों से नैतिकता के आधार पर तुरंत इस्तीफे की मांग की है।

किसी भी समय चुनाव हो सकते हैं- भाजपा

भाजपा के दिल्ली अध्यक्ष मनोज तिवारी ने कहा कि उच्च न्यायालय के बाद केंद्रीय चुनाव आयोग द्वारा भी आम आदमी पार्टी (आप) के 21 विधायकों को संसदीय सचिव के रूप में लाभ के पद का उपभोग करने का दोषी पाया है जो स्वागत योग्य है।

वहीं इस मसेल पर भाजपा संगठन महामंत्री रामलाल के अनुसार किसी भी समय 20 से 21 विधानसभा क्षेत्रों में उपचुनाव हो सकते हैं। जिसके अंतर्गत पार्टी के वरिष्ठ एवं सक्रिय कार्यकर्ता घर-घर जाकर सम्पर्क करेंगे, विधानसभा के संभावित चुनाव से पूर्व यह लोगों से सम्पर्क का अच्छा माध्यम बन गई है।

केजरीवाल के 20 विधायक तुरंत दें इस्तीफा : माकन

दिल्ली कांग्रेस अध्यक्ष अजय माकन ने कहा, ‘चुनाव आयोग ने स्पष्ट और सख्त आदेश दिया है। इसके बाद इन विधायकों के पद पर बने रहने का कोई औचित्य नहीं है। अनिश्चितता का माहौल खत्म करने और इन सीटों पर जल्दी उप चुनाव कराने के लिये लाभ पद के मामले में फंसे विधायकों को नैतिकता के आधार पर तुरंत इस्तीफा देना चाहिए।‘

विधायकों की सदस्यता पर कोई असर नहीं पड़ेगा - आप

उधर, आप पार्टी ने कहा है कि आयोग के फैसले का इन विधायकों की सदस्यता पर कोई असर नहीं पड़ा है। आप के 21 विधायकों को 13 मार्च 2015 को संसदीय सचिव नियुक्त किया गया था। वकील प्रशांत पटेल ने 19 जून 2015 को विधायकों की नियुक्ति को लाभ का पद बताते हुए चुनौती दी थी। राष्ट्रपति को दी गयी प्रशांत पटेल की याचिका में विधायकों की सदस्यता रद्द करने का अनुरोध किया गया था । राष्ट्रपति ने 22 जून को यह याचिका चुनाव आयोग को भेज दी थी। इन विधायकों में से जरनैल सिंह ने पंजाब विधानसभा का चुनाव लड़ने के लिए इस्तीफा दे दिया था। इस वर्ष मार्च में हुए पंजाब विधानसभा चुनाव में जरनैल सिंह ने प्रकाश सिंह बादल के खिलाफ चुनाव लड़े थे और हार गए थे। दिल्ली उच्च न्यायालय ने पिछले साल 08 सितंबर को संसदीय सचिव के रूप में विधायकों की नियुक्ति रद्द कर दी थी। लाभ के पद मामले में फंसे विधायकों ने इसके बाद चुनाव आयोग में याचिका दी थी कि जब न्यायालय ने संसदीय सचिव की नियुक्ति को ही रद्द कर दिया है तो फिर आयोग में मामला चलने का कोई सवाल नहीं रह जाता।

आयोग ने विधायकों की मामला खत्म करने की याचिका को खारिज कर दिया है। आयोग ने याचिका खारिज करने के पीछे तर्क दिया है कि विधायकों के पास 13 मार्च 2015 से 08 सितंबर 2016 तक संसदीय सचिव का पद था। इसलिये उन पर मामला चलेगा । आयोग ने कहा है कि राजौरी गार्डन के विधायक इस वर्ष जनवरी में इस्तीफा दे चुके हैं, इसलिये उन पर यह मामला नहीं चलेगा। आयोग के इस निर्णय के बाद अब इस मामले की अंतिम सुनवाई शुरू होगी और विधायकों को यह साबित करना पड़ेगा कि संसदीय सचिव के तौर पर वह लाभ के पद पर नहीं थे।

आयोग अब इस मामले में राष्ट्रपति को दी जानी वाली राय पर सुनवाई करेगा। इस सुनवाई के बाद आयोग विधायकों की संसदीय सचिव के रूप में नियुक्ति की वैद्यता को लेकर क्या राय देता है, उसी पर इनकी सदस्यता निर्भर करेगी । प्रशांत पटेल की चुनौती के बाद दिल्ली सरकार ने दिल्ली विधानसभा में इन विधायकों के संसदीय सचिव की नियुक्ति को वैध बनाने के लिए एक विधेयक पारित किया था जिससे पिछली तारीख से कानून बनाकर लाभ पद दायरे में आए इन विधायकों बाहर किया जा सके। इस विधेयक को राष्ट्रपति की मंजूरी नहीं मिली और लौटा दिया गया। शिकायकर्ता का कहना है कि संसदीय सचिव नियुक्त करने के बाद इन विधायकों को कई तरह की सुविधाएं दी गई।
उधर, विधायकों की यह दलील है कि संसदीय सचिव के रूप में उनकी नियुक्ति से न उन्हें कोई आर्थिक लाभ नहीं मिला है।

पांडे ने कहा है कि दरअसल इन विधायकों ने चुनाव आयोग के सामने प्राथमिक आपत्तियां दायर की थी कि आयोग को यह मामला सुनने का अधिकार नहीं है और कोई मामला बनता नहीं है। आयोग ने एक साल सुनवाई के बाद कल यह फैसला दिया है कि इस मामले को सुनने का उसे अधिकार है और वह इसकी सुनवाई करेगा। एक तरफ आयोग अब इस मामले में सुनवाई शुरू करेगा तो दूसरी तरफ विधायक आयोग के इस फैसले को उच्च न्यायालय में चुनौती देंगे। अभी इन विधायकों को किसी तरह का कोई खतरा नहीं है।

Updated : 25 Jun 2017 12:00 AM GMT
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