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लाखों खर्च के बाद भी नहीं आई सोन चिरैया

लाखों खर्च के बाद भी नहीं आई सोन चिरैया
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लाखों खर्च के बाद भी नहीं आई सोन चिरैया

दिनेश शर्मा/ग्वालियर। सोन चिरैया अभयारण्य घाटीगांव स्थित भटपुरा के जंगल में सोन चिरैया के लिए प्राकृतिक रहवास तैयार करने में वन विभाग ने 'सोन चिरैया पुनर्वास प्रबंधन' योजना के तहत पिछले दो सालों में लाखों की राशि खर्च कर दी। बावजूद इसके अभयारण्य में सोन चिरैया नजर नहीं आई है, लेकिन अभयारण्य प्रबंधन अभी भी यह उम्मीद लगाए बैठा है कि आने वाले समय में यहां सोन चिरैया जरूर आएगी। इसी उम्मीद के फेर में भटपुरा के बाद अब देवखो और नलकेश्वर के जंगलों में भी सोन चिरैया के लिए प्राकृतिक रहवास तैयार किए जा रहे हैं।

इस अभयारण्य घाटीगांव में पिछले करीब पांच-छह सालों से सोन चिरैया दिखाई नहीं दी है। इस कारण इस अभयारण्य के अंदर और आसपास बसे गांवों के ग्रामीणों की ओर से इस अभयारण्य को समाप्त करने की मांग जोर-शोर से उठाई जाने लगी है क्योंकि इस अभयारण्य के कारण कई पाबंदियों के चलते ग्रामीणों को विभिन्न परेशानियों का सामना करना पड़ रहा है। अत: अभयारण्य को बचाए रखने के लिए वन विभाग ने यहां फिर से सोन चिरैया को बसाने के प्रयास तेज कर दिए हैं। इन्हीं प्रयासों के क्रम में वन विभाग ने अभयारण्य के अंतर्गत कुछ ऐसे स्थान चिन्हित किए हैं, जहां पूर्व में सोन चिरैया का रहवास था। ऐसे ही एक स्थान भटपुरा के जंगल में पिछले साल लोखों की राशि खर्च कर करीब 200 हैक्टेयर क्षेत्र में चैनलिंग कर घास के मैदान तैयार किए थे।

इसी स्थान पर इस वर्ष भी केन्द्र शासन से मिली करीब 30 लाख की लागत से 150 हैक्टेयर क्षेत्र में चैनलिंग और चुनिंदा स्थानों पर पत्थर की दीवार खड़ी की गई है। इस प्रकार भटपुरा में करीब 350 हैक्टेयर क्षेत्र को सुरक्षित किया गया है। यहां बारिश के दिनों में घास लगाई जाएगी क्योंकि सोन चिरैया घास के मैदानों में ही रहना पसंद करती है। इस सुरक्षित क्षेत्र में मानव और पालतू पशुओं का दखल रोकने के लिए एक चौकीदार भी रखा गया है।

अब देवखो व नलकेश्वर में तैयार होंगे रहवास

सोन चिरैया के रहवास के रूप में वन विभाग ने देवखो और नलकेश्वर क्षेत्र को भी चुना है। इन दोनों स्थानों पर क्रमश: 100 हैक्टेयर और 50 हैक्टेयर क्षेत्र को चैनलिंग और पत्थर की दीवार बनाकर सुरक्षित करने तथा घास के मैदान तैयार करने के लिए चम्बल अभयारण्य प्रबंधन की ओर से सोन चिरैया अभयारण्य प्रबंध को करीब 79 लाख की राशि प्रदान की गई है। इन दोनों स्थानों पर यह काम प्रारंभ भी हो गया है।

प्राकृतिक जल स्त्रोत सूखे कैसे आए सोन चिरैया

अभयारण्य में गैमरेंज घाटीगांव और गैमरेंज तिघरा दो वन क्षेत्र शामिल हैं। यदि तिघरा जलाशय को छोड़ दिया जाए तो इस अभयारण्य में वन्यजीवों के लिए दूर-दूर तक पानी नहीं है। चूंकि पिछले साल बारिश कम होने से सभी प्राकृतिक जल स्त्रोत सूख चुके हैं। हालांकि अभयारण्य के अंतर्गत दो स्थानों पावटा और देवखो में क्रमश: 50 और 28 घन मीटर लम्बे-चौड़े पक्के तालाब बनाए गए हैं, लेकिन इन्हें भरने के लिए बारिश का इंतजार है। इसके अलावा भटपुरा में सुरक्षित किए गए 350 हैक्टेयर क्षेत्र में चार छोटे-छोटे तालाब (सांसर) बनाए गए हैं, जिनमें टैंकरों से पानी भरा जाता है, लेकिन इतने बड़े क्षेत्र में यह जल स्त्रोत ऊंट के मुंह में जीरे के समान हैं। अभयारण्य प्रबंधन का कहना है कि जल्द ही छह-सात सांसर और बनाए जाएंगे।

सोन चिरैया न सही अन्य वन्यजीव तो हैं
अभयारण्य अधीक्षक प्रकाश श्रीवास्तव का कहना है कि भटपुरा में सुरक्षित किए गए जंगल में अभी सोन चिरैया भले ही न आई हो, लेकिन वहां घास, वनस्पति, पानी आदि की व्यवस्था होने से चीतल, चिंकारा, नीलगाय, खरगोश, लंगूर सहित विभिन्न प्रकार के पक्षियों की संख्या बढ़ गई है और उम्मीद की जा रही है कि आने वाले समय में यहां सोन चिरैया भी आएगी।

Updated : 2 May 2016 12:00 AM GMT
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