अंग्रेज तो पराए थे, लेकिन तब अपनों ने ही सितम ढहाए थे

अंग्रेज तो पराए थे, लेकिन तब अपनों ने ही सितम ढहाए थे
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आपातकाल पर विशेष: 48 साल बाद भी नहीं भुला पा रहे वो इतिहास का काला अध्याय

झांसी। 25 जून 1975 की तारीख भारतीय इतिहास का वो काला दिन है जिसे भुलाया नहीं जा सकता था। हमारे पूर्वजों ने इस काले दिन को जिया.. हम इसके काले अध्याय की काली कहानियों को याद कर रहे हैं और हमारी आने वाली पीढ़ी इन्हीं कहानियों को इतिहास के रूप में पढ़ती जाएगी। आज यानी कि 25 जून, 2023 को आपातकाल को 48 वर्ष पूरे हो गए। भले ही इस काले दिन को बीते 48 साल हो गए हों, लेकिन इसके दिए जख्म आज भी ताजा हैं। 25 जून, 1975 भारतीय मानस पटल पर यह तिथि काला दिन के नाम से दर्ज है। इस दिन देश में आपातकाल लागू हुआ। लोकतांत्रिक अधिकारों को घोषित रूप से समाप्त कर दिया गया। विरोधियों को जेल में ठूंस दिया गया था। सरकार के विरुद्ध कुछ भी बोलने वालों का उत्पीड़न किया गया। आपातकाल के अत्याचार को याद कर आज भी लोग कह उठते हैं कि अंग्रेज तो पराए थे, लेकिन तब अपनों ने ही सितम ढहाए थे। इसी दिन तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी ने देश में आपातकाल की घोषणा कर दी थी। घोषणा होते ही देश में अफरातफरी मच गई। देश के बड़े-बड़े नेताओं को गिरफ्तार कर जेल में डाल दिया गया था। न सिर्फ नेता बल्कि आम जनता भी इस आपातकाल की आग में झुलस गई। आपातकाल के दमन के साक्षी लोकतंत्र सेनानियों से स्वदेश ने चर्चा कर जानी उनकी जुबानी।

आपातकाल के दमन के साक्षी लोकतंत्र सेनानियों की जुबानी

देश में आपातकाल घोषित किए जाने के बाद उसका देश की छात्र शक्ति और युवाओं ने खुलकर विरोध किया। उसी कड़ी में झांसी से वर्तमान में वरिष्ठ पत्रकार जो तत्कालीन राष्ट्र्रीय स्वयंसेवक संघ के स्वयं सेवक व गुरसरांय स्थित खैर इंटर कॉलेज के इंटरमीडिएट के छात्र रामसेवक अडजरिया ने 13 दिसंबर 1975 को झांसी के सदर बाजार में चार साथियों के साथ सत्याग्रह किया। इसके परिणाम स्वरूप उन्हें सदर बाजार थाना की पुलिस द्वारा गिरफ्तार कर जेल भेज दिया गया। श्री अडजरिया ने बताया कि जब वह अपने साथियों मऊरानीपुर से विलास शावरीकर, गुरसरांय से राजेन्द्र कुशवाहा व सुरेश गुप्ता के साथ जेल पहुंचे तो वहां पर पहले से ही झांसी और ललितपुर जनपद के राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ, जनसंघ के नेता व स्वयंसेवक कारागार में मौजूद थे। उन लोगों ने इन छात्र स्वयंसेवकों का खुले मन से स्वागत किया गिरफ्तारी के समय जनता देखने को तो एकत्रित हुई। लेकिन कोई किसी से कुछ कह नहीं रहा था। हालांकि उनके चेहरे से मूक सहमति जरूर प्रतीत हो रही थी कि यह जो कुछ भी हो रहा है, बेहतर है। उसके बाद रामसेवक अडजरिया व उनके साथी करीब साढे 5 माह तक जेल में ही रहे। यहां तक कि उन्हें इंटरमीडिएट की परीक्षा जेल में ही देनी पड़ी। बाहर निकलने की उन्हें कदापि अनुमति नहीं थी। न अपील, न ही कोई भी दलील सुनने को तैयार नहीं था। तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी का इतना आतंक था कि अधिकारी चाहते हुए भी कोई सहयोग नहीं कर सके। इसके इतर छात्र स्वयंसेवकों का मनोबल इतना ऊंचा था कि उन्होंने हार नहीं मानी। क्योंकि उन्हें भरोसा था कि देश में उनकी यह मुहिम परिवर्तन लाएगी और उसका परिणाम भी देखने को मिला। 1977 में देश की तानाशाह प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी को आपातकाल को हटाना ही पड़ा।

जेल में ही दी इंटरमीडिएट की परीक्षा

श्री अडजरिया ने बताया कि जेल में ही इंटरमीडिएट के सभी विषयों की पढ़ाई के लिए उन्हें पहले से ही शिक्षक उपलब्ध मिले, क्योंकि उनको भी गिरफ्तार किया गया था। यहां हाईस्कूल से लेकर स्नातक तक के सभी छात्र मौजूद थे और उनका अध्ययन संपन्न कराने के लिए शिक्षकों की भी व्यवस्था सुचारू थी। यहीं नहीं स्वयंसेवक सुबह और शाम शाखा भी लगाते थे। ध्वज प्रणाम से लेकर वंदे मातरम का गायन और भारत माता की जयघोष उनके प्रति दिन की दिनचर्या में शामिल था। शाखा में प्रार्थना भी प्रतिदिन की जाती और सुबह शाम नमस्ते सदा वत्सले मातृभूमि भूमि के गायन से कारागार भी गुंजायमान हो उठता था। बताया कि झांसी और ललितपुर के करीब 90 लोग उस समय जिला कारागार में निरुद्ध रहे। जिन्हें बाद में 2006 में लोकतंत्र सेनानी घोषित किया गया।

डरावने सपने से कम नहीं थे वह दिन: नारायण मिस्त्री

आपातकाल के समय तत्कालीन झांसी विभाग प्रचारक ओमप्रकाश तिवारी 21 महीने की अवधि तक पुलिस के हाथ नहीं लगे। श्री तिवारी ने उस समय जो मीसाबंदी रहे उनके परिवारों तक मद्द पहुंचाने का बखूबी कार्य किया। श्री तिवारी ने इस कार्य के लिए युवा वर्ग को चुना। इन्हीं युवाओं में शामिल रहे मात्र 18 वर्षीय नारायण मिस्त्री ने भी युवाओं के साथ मिलकर मीसाबंदियों के परिवारों को मद्द पहुंचाने का कार्य किया। अब नारायण मिस्त्री 66 सावन पार कर चुके हैं। श्री मिस्त्री ने उन दिनों को याद करते हुए बताया कि वो लम्हें किसी डरावने सपने से कम नहीं थे। हमेशा डर बना रहता था कि कब किस गली से पुलिस आ जाए और किस को पकड़ ले जाए।

जब जेलर ने की थी अंदर मरवाने की साजिश: शुक्ला

पूर्व शिक्षा मंत्री रविन्द्र शुक्ला ने बताया कि आपातकाल के समय वह काफी दिनों तक पुलिस से छिपकर मीसाबंदियों के लिए कार्य और उस समय की युवा टीम का नेतृत्व भी करते रहे। लेकिन एक दिन पुलिस ने उनको गिरफ्तार कर जेल भेज दिया। आज के पूर्व शिक्षा मंत्री उस समय मात्र 18 वर्ष के थे और 6 महीने जेल में बंद रहे थे। 18 वर्ष के युवा ने जेल के अंदर बंद लगभग 103 मीसाबंदियों में से कुछ वरिष्ठजनों से मुलाकात की और बाहर हो रहे प्रदर्शन की विस्तृत जानकारी दी। श्री शुक्ला बताते हैं कि एक दिन जेलर भदौरिया ने साजिश के तहत हमारे युवा साथियों को मरवाने के लिए खतरनाक अपराधियों की सेल खुलवा दी। लेकिन उस समय के झांसी शहर के नामी गिरामी 'भूराÓ ने दरवाजे के बाहर खड़े होकर अपराधियों को चेतावनी दे दी थी कि इन बच्चों के हाथ नहीं लगना चाहिए। श्री शुक्ला उस समय का एक और वाकया सुनाते समय थोड़ा भावुक होते हुए कहा कि एक दिन चिरगांव का हमारा दोस्त विनोद गुप्ता को जेल में सिपाहियों ने पीटा और विनोद के सिर में बहुत चोट आई। हालांकि उसके बाद वह चार सिपाही निलंबित कर दिए गए।

पत्रकारिता का गला घोंटा गया: नेपाली

वरिष्ठ पत्रकार व लोकतंत्र सेनानी मोहन नेपाली ने बताया कि आपातकाल लोकतंत्र का काला अध्याय था। सन् 1975 में तत्कालीन केन्द्र सरकार ने देशवासियों पर आपातकाल को थोप दिया था। जे पी की अगुवाई में देश में युवाओं ने सरकार के खिलाफ आवाज बुलंद कर लोकतंत्र की रक्षा की थी। झांसी में विपक्षी राजनेताओं, सामाजिक कार्यकर्ताओं को जिन्होंने आपातकाल का विरोध किया, उन्हें जेल में ठूंस दिया गया। आपातका के विरोध में जगह-जगह गिरफतारियां की गई। लोगों के यहां छापे की कार्यवाही की गई। लोग दहशत के माहौल में उन दिनों रहे। पत्रकारिता का गला घोंटा गया।

प्रजातन्त्र का गला घोंटने वाला कृत्य: गौतम

पूर्व नगर पालिका अध्यक्ष धन्नूलाल गौतम ने बताया कि देश के प्रजातन्त्र का गला घोंटने वाला कृत्य 25 जून 1975 की रात्रि में तत्कालीन जबरिया बनी प्रधानमंत्री श्रीमती इन्दिरा गांधी ने रात में उस काले कानून की (आपातकाल) घोषणा कर हजारों देशभक्त नेताओं और कार्य कर्ताओं को जेल में बन्द कर दिया गया था। उस समय मैं राष्ट्रीय स्वयं सेवक में एक कार्यकर्ता के नाते सक्रिय भूमिका निभाते हुऐ शाखा आदि लगाने में सलंग्न रहता था। साथ ही डॉक्टर के नाते एक ग्रामीण क्षेत्र में अपनी जीविका चला रहा था। जब 6 माह तक बंदी हमारे वरिष्ठ नेताओं में राजेन्द्र अग्निहोत्री, कैलाश नारायण, श्रृंगश्रृषि बापूराव सरदेसाई, बांकेबिहारी श्रीवास्तव जो जून में ही जेल भेज दिये गये थे। उनकी कोई सुनवाई नहीं हो रही थी तब संघ के हमारे प्रचारक पुरूषोत्तम सिंह जी ने हमें गुप्त रूप से मिलकर आन्दोलन करने का आव्हान किया। मैंने उस समय भूमिगत होकर जगह-जगह बदलकर अपना समय बिताया। फिर 10 दिसम्बर 1975 को यह तय किया गया कि हमें आन्दोलन कर गिरफ्तारी देनी है। हम 10 लोगों का समूह बनाकर जिसमें 6 व्यक्ति चिरगांव के, 4 व्यक्ति झांसी के और मुझे सहित कचहरी में आपातकाल के विरूद्ध तथा 'इन्द्रा गांधी मुर्दाबादÓ के नारे लगाते हुए 'भारत माता की जय बोलोÓ बोलते हुए थाना नबावाद में गिरफ्तार हुए। श्रीमती इन्दरा गांधी ने जो आपातकाल लगाकर देश को जेलखाना बना दिया था। आम नागरिकों के सभी कानूनी तथा प्रजातांत्रिक अधिकार छीन लिये थे उस कांग्रेस शासन को जनता भूली नहीं है। 19 माह तक राष्ट्र भक्तों को जेलों में डालकर हजारों परिवारों को कष्ट में डाला था। अन्त में सत्य की विजय हुई और आपातकाल समाप्त हुआ और इन्दिरा गांधी को अपने पद से हटना पड़ा।

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