भगवान तो दीन-हीनों के दिल में बसते है: महेशानंद सरस्वती

कल्याणं करोति में नि:शुल्क नेत्र चिकित्सा शिविर का हुआ समापन
मथुरा। भगवान मन्दिर में नहीं वह तो दीन-हीन जनों के हृदय में विराजते है लेकिन दीन-हीनों की उपेक्षा करके जो व्यक्ति भगवान को प्रसन्न करने की कोशिश करता है। वह व्यर्थ है। जो मनुष्य दीन-हीनों को भगवान के रूप में देखता है वही सेवा कर सकता है। यह विचार स्वामी कल्याणं करोति द्वारा आयोजित नि:शुल्क नेत्र चिकित्सा शिविर के समापन समारोह में महेशानन्द सरस्वती ने व्यक्त किए।
श्रीजी बाबा सरस्वती विद्या मंदिर के प्रधानाचार्य डा. अजय शर्मा ने कहा कि समाज सेवा सबसे बड़ी सेवा है और समाज ही सबसे बड़ा देवता है। इसलिए हर व्यक्ति को एक दूसरे के प्रति सहयोग करना चाहिए।
समाजसेवी रामनिवास सर्राफ ने कहा कि नेत्र ज्योति प्रदान करना पुनीत कार्य है तुलसीदास जी ने कहा है कि परहित सरस धर्म नहीं भाई, पर पीड़ा सम नही अधिमाई। दीन-हीन की सेवा से बढक़र कोई बड़ा कार्य नहीं तथा दूसरों को दु:ख देने से बड़ा कोई अर्धम नहीं है। नरेन्द्र सिंह एडवोकेट ने कहा कि जिनकी नेत्र की रोशनी असमय बुझ रही है। इनकों नेत्र ज्योति प्रदान करना, जो अपने पैरों पर चल नहीं सकते उन्हें उनके पैरों पर चलाने योग्य बनाना अन्य चिकित्सकीय सेवा प्रदान कर कल्याणं करोति मानवता की बहुत बड़ी सेवा कर रही है। कार्यक्रम का संचालन राजेश दीक्षित ने किया।
महासचिव सुनील कुमार शर्मा ने कहा कि संतजनों की कृपा से ही यह सेवा कार्य सम्भव हो पा रहा है। शिविर में दूर दराज के अंचलों से आये 478 नेत्र रोगियों ने पंजीकरण कराकर परीक्षण कराया जिसमें से 145 नेत्र रोगियों के ऑपरेशन सम्पन्न किये गये। शिविर में ऑपरेशन के योग्य पाये गये नेत्र रोगियों को पलंग बिस्तर दवा चश्मा, भोजन की व्यवस्था पूर्णत: नि:शुल्क रूप से की गई। इस अवसर पर हरवंश खण्डेलवाल, नरेश चौधरी, बलवेन्द्र सिंह, प्रवीन भारद्वाज, रामसनेही, आरके वर्मा आदि की उपस्थित उल्लेखनीय थी।
