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कोरोना महामारी नहीं ईश्वरीय ब्रह्मास्त्र है

सत्संग में बैठने वाले को नर्क और नर्तकी का नृत्य देखने वाले को स्वर्ग

कोरोना महामारी नहीं ईश्वरीय ब्रह्मास्त्र है
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फोटो कैप्शन-सत्संग करता साधु और नृत्य करतीं नर्तकियां।


मनोज तौमर

मथुरा। कोरोना महामारी नहीं है, यह तो ईश्वरीय ब्रह्मास्त्र है। मनुष्य ने पृथ्वी पर इतने अधिक अन्याय और अत्याचार कर रखे हैं कि पृथ्वी माता भी दुख से कराह उठी है इसीलिए संसार को संचालित करने वाले परमपिता परमेश्वर ने अपना ब्रह्मास्त्र छोड़ा है इंसानों को सबक सिखाने के लिए।

यह अन्याय और अत्याचार मनुष्य इंसानों से ज्यादा पशु पक्षी जीव जंतु आदि निरीह एवं बेगुनाह प्राणियों पर कर रहे हैं। इसीलिये इन निरीह प्राणियों की आह मनुष्य जाति पर लगी है और कोरोना रूपी यह ब्रह्मास्त्र मनुष्य जाति का विध्वंस करके ही दम लेगा जिसमें मांस मदिरा आदि अभक्ष वस्तुओं का सेवन तथा पापों को करने वालों का विनाश ज्यादा होगा। पूरी पृथ्वी पर ऐसे ही लोगों पर कोरोना का कहर ज्यादा बरप रहा है।

कुछ नाम मात्र के लोग जो मांस मदिरा का सेवन नहीं करते तथा पापों से दूर रहते हैं। वे भी इस महामारी की चपेट में आ रहे हैं लेकिन सच्चाई यह है कि उनके जाने अनजाने में हुए इस जन्म के या पिछले जन्मों के पापों का हिसाब किताब भी चुकता हो रहा होगा। कभी-कभी मन में आता है कि कुछ बेगुनाह और सीधे सच्चे लोग भी कोरोना का शिकार क्यों बन रहे हैं? किंतु वास्तविकता से हम अनभिज्ञ हैं। भले ही हम गलत काम नहीं कर रहे हों किंतु मन में गलत विचार आना भी अपराध के समान है। इसीलिए कहते हैं कि मन चंगा तो कठौती में गंगा। सिनेमा का एक गाना भी है 'मन ही देवता मन ही ईश्वर मन से बड़ा न कोय'। यदि हम किसी बहन बेटी को बुरी नजर से देखते हैं तो वह भी अपराध है और उसका दंड ऊपर की अदालत में हमारे खाते में जुड़ जाता है। भले ही हमने उस बहन बेटी के साथ कोई छेड़छाड़ न की हो किसी के बारे में बुरा सोचना भी अपराध है। इसका भी दंड हमें भुगतना पड़ता है।

इस संदर्भ में एक कल्पित किस्सा उदाहरण के लिए बताना जरूरी है। दो मित्र गंगा जी स्नान करने जा रहे थे। रास्ते में एक स्थान पर नौटंकी चल रही थी जिसमें नर्तकियों का नाच गाना चल रहा था। एक मित्र बोला कि रात होने को आ रही है। चलो यहां पर बैठकर नृत्य का आनंद लें और सुबह गंगा जी स्नान को निकल पड़ेंगे किंतु दूसरे मित्र ने कहा कि नहीं भाई हम लोग गंगा जी स्नान को जा रहे हैं और रास्ते में नर्तकियों का नृत्य देखें यह उचित नहीं। उसने कहा कि पास में ही एक महात्मा का सत्संग और भगवान का संकीर्तन चल रहा है, मैं तो वहीं सत्संग में बैठूंगा।

फिर दोनों में बात यह तय हो गई कि जो नृत्य देखना चाहे वह नृत्य देखें और जो संकीर्तन में जाना चाहे वह वहां जाय। हुआ भी ऐसा ही एक भजन कीर्तन और सत्संग में बैठ गया और दूसरा नर्तकियों के नृत्य का आनंद लेने चला गया। कुछ समय पश्चात जो सत्संग में बैठा था वहां उसका मन उछटने लगा और वह सोचने लगा कि मैं भी उसके साथ चला जाता तो अच्छा रहता, सुन्दरियों का नृत्य देखता तो बड़ा आनंद आता। भला ऐसा मौका फिर कहां मिलेगा? मतलब यह कि उसका मन पूरे समय भगवान के कथा कीर्तन और सत्संग में न लगकर नर्तकियों के ठुमको में झूमता रहा।

इसी प्रकार दूसरा जो नौटंकी में बैठा था उसका हाल यह कि वह बजाय नृत्य का आनंद लेने के यही सोचता रहा कि मैंने यह क्या किया? मुझे भी भगवान के संकीर्तन में जाना चाहिए था उसका मन सत्संग में विचरण करता रहा और भगवान की लीलाओं का स्मरण करते हुए सोचता रहा कि इन नर्तकियों के नाच गाने को देखने के बजाय भगवत भक्ति होती तो ज्यादा अच्छा रहता। मतलब पूरे समय उसका मन भगवान के ध्यान में रमा रहा।

संयोग से दोनों का निधन एक साथ हो गया और दोनों भगवान के यहां पहुंचे भगवान ने जो कथा कीर्तन में बैठा था, उसे नर्क की सजा सुनाई तथा जो नर्तकियों का नृत्य को देखने गया, उसे स्वर्ग भेजने का आदेश दिया। इस पर कथा में बैठने वाले ने भगवान से कहा कि प्रभु यह अन्याय क्यों? मैं सत्संग और कथा कीर्तन में गया तो मुझे नर्क और यह नर्तकियों का नृत्य देख रहा था इसे स्वर्ग। इस पर भगवान ने कहा कि तू भले ही सत्संग में बैठा था, पर तेरा मन तो नर्तकियों के ठुमकों का आनंद ले रहा था और इसका मन बजाय नर्तकियों के नृत्य के मुझ में रमा रहा। इसीलिए तुझे नर्क और इसे स्वर्ग दिया गया है। इसलिए हम सभी को मन की पवित्रता और मर्यादा का विशेष ध्यान रखना चाहिए ताकि पापों की गठरी का बोझ न बड़े।

Updated : 28 Aug 2020 5:51 AM GMT
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स्वदेश मथुरा

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