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गऊ माता की जय हो, गऊ हत्या बंद करो, गाय पालेंगे नहीं और दूध पियेंगे भैंस का

नाग देवता की मूर्ति को तो पूजेंगे और नाग देवता साक्षात प्रकट होंगे तो देखते ही मार डालेंगे

गऊ माता की जय हो, गऊ हत्या बंद करो, गाय पालेंगे नहीं और दूध पियेंगे भैंस का
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विजय कुमार गुप्ता


मथुरा। हम लोग गौमाता की जय-जयकार करेंगे, गौहत्या बंद करो के नारे लगाएंगे लेकिन गौमाता को पालेंगे नहीं और दूध भी गाय का नहीं भैंस का पीना पसंद करेंगे।

इसी प्रकार मंदिरों में बनीं नाग देवता की मूर्ति की पूजा करेंगे और जब नाग देवता साक्षात प्रकट होकर दर्शन देंगे तो लाठी और ईंट पत्थरों से उन्हें मार डालेंगे अथवा किसी लकड़ी से उठाकर दूर फिकवादेंगे बड़ी अजीब विडंबना है यह। समझ में नहीं आता कि हम लोग अपने स्वार्थ में इस कदर अंधे हो चुके हैं कि जिस बात को हम अपना लाभ समझ रहे हैं वह लाभ नहीं हानि है और हानि भी ऐसी भयंकर कि जन्म जन्मांतर तक हमारा पीछा नहीं छोड़ेगी।

हम लोग अपने घर में स्कूटर मोटरसाइकिल और कारें तो रख सकते हैं किंतु एक गाय को नहीं पाल सकते क्योंकि उसको पालना एक बहुत बड़ा झंझट का सौदा होता है। चलो माना कि हर आदमी गाय नहीं पाल सकता क्योंकि किसी की क्या परिस्थिति है यह वही जानता है लेकिन जो लोग पालने की स्थिति में हैं वे भी नहीं पालते और जो पाल रहे हैं उनकी संख्या भी धीरे-धीरे कम होती जा रही है। इस कार्य में हमारी सरकारों का भी बहुत बड़ा योगदान है वह यह कि शहरों में गाय भैंसों का पालना प्रतिबंधित है।

सही मायने में देखा जाए तो सरकारों को यह नियम बनाना चाहिए कि प्रत्येक परिवार को गाय पालनीं चाहिए और जो विशेष परिस्थितियों में गाय नहीं पाल सकते हों उनसे गौसेवा टैक्स लेकर उस पैसे को गौमाता की सेवार्थ लगाना चाहिए। कहने का मतलब है कि जैसे भी हो गौपालन को बढ़ावा देना चाहिए। जो लोग गौमाता को पालकर उसकी सेवा करें उन्हें तरह-तरह से प्रोत्साहित करना चाहिए। सब कुछ सरकारों पर ही छोड़ने से काम नहीं चलेगा। हम सभी को भी अपना कर्तव्य निभाना चाहिए। अक्सर देखा जाता है कि ज्यादातर लोग गाय का दूध कम पसंद करते हैं भैंस का दूध उन्हें अधिक प्रिय होता है क्योंकि भैंस का दूध गाढ़ा होता है और उसमें घी की मात्रा अधिक होती है। पीने में भी उन्हें वह अधिक स्वादिष्ट लगता है और मलाई भी मोटी पड़ती है।

ऐसी सोच वाले लोगों की बुद्धि पर तरस आता है। लगता है कि भैंस का दूध पी पी कर उनकी बुद्धि भी भैंस जैसी हो गई है। ये महा बुद्धिमान लोग यह नहीं देखते कि गाय के दूध में गुणवत्ता कितनीं होती है। वह दूध कम औषधि अधिक होता है। उसमें स्वर्ण तत्व पाये जाते हैं। गाय का दूध पीने वालों की बुद्धि तीव्र होती है तथा शरीर भी फुर्तीला होता है। गाय का दूध तो क्या उसका गोबर और मूत्र भी अति उपयोगी होता है। प्रतिदिन गोमूत्र का सेवन करने वाले कभी बीमार नहीं पड़ते। भैंस का दूध पीने वालों की स्थिति भैंस जैसी हो जाती है। जो लोग भैंस के दूध को प्राथमिकता देते हैं वे ही लोग श्राद्धों में या घर में कोई मर जाता है तब गऊ ग्रास क्यों निकालते हैं? उन्हें भैंस ग्रास निकालकर भैंसों को ही खिलाना चाहिए। इससे उनके मृतक परिजनों को अधिक शांति व तृप्ति मिलेगी। मरने से पहले माता-पिता से गऊ दान की जगह भैंस दान करना चाहिए ताकि उन मृतकों को सीधा बैकुंठ प्राप्त हो।

सरकार ने गौहत्या प्रतिबंधित करके तथा गौवंश को नास्तिक विचारधारा वाले प्रदेशों में कटने हेतु जाने से रोक कर तो सराहनीय कार्य किया है किंतु हम दिखावटी गौभक्तों की उदासीनता से गौमाताओं की जो दुर्गति हो रही है वह बड़ी शर्मनाक है। गौमातायें गौशालाओं में, सड़कों पर कितनी दुखी हैं तथा कैसे तड़प-तड़प कर मर रहीं है। उनकी आह हम लोगों को छोड़ेगी नहीं। सभी गौशालाओं में गौवंश की सच्ची सेवा नहीं हो रही है। बहुतों ने तो गौशालाओं को अपना व्यवसाय बना लिया है और गौसेवा के नाम पर स्वयं सेवा कर रहे हैं।

इसी प्रकार नाग देवताओं को हमारे धर्म शास्त्रों में पूजनीय कहा गया है। उनकी अकारण निर्मम हत्या भी हमारे ऊपर बहुत बड़ा कलंक है। जो लोग नागों को देखते ही उन्हें मार डालते हैं। वे नर पिशाच के समान है। अगले जन्म में उन्हें कालसर्प दोष लगता है।

जीव जंतु पशु पक्षी प्रेमी मनोज तौमर कहते हैं कि नाग अकारण किसी को नहीं डसता। जब तक उसे छेड़ा न जाय वरना वह अपने रास्ते सीधा निकल जाता है। श्री तौमर बताते हैं कि हमारे गांव में खेतों की मैंड़ व पगडंडियों पर बच्चे अक्सर सो जाते हैं और एक नहीं अनेक बार छोटे बड़े सर्प उनके ऊपर से गुजरते देखे गए किंतु कभी भी किसी सर्प ने बच्चों को हानि नहीं पहुंचाई। उनका कथन है कि कुछ ऐसे भी किस्से सामने आए हैं कि पूर्वज लोग अपने वंशजों से मोहवश उनके इर्द गिर्द किसी न किसी रूप में विचरते रहते हैं। इनमें सर्पों के किस्से अक्सर सुनने में आते हैं। सर्प किसी को डसेगा तो मार छेड़ करने पर डसेगा या फिर इस जन्म का अथवा पूर्व जन्म का बदला लेने के लिए डसेगा।

ऐसे किस्से तो अक्सर अखबारों में पढ़ने को मिलते हैं कि नाग ने नागिन की हत्या का बदला लिया या नागिन ने नाग की हत्या का बदला लिया। चाहे नाग हो अथवा कोई अन्य प्राणी हो। हमें किसी की हत्या नहीं करनी चाहिए। सभी को अपनी जिंदगी जीने का अधिकार है। आज चारों ओर जो त्राहिमाम त्राहिमाम हो रही है। उसके पीछे निरीह प्राणियों की निर्मम हत्याओं की वजह मुख्य है। इसलिए हम सभी को अहिंसक होना चाहिए।

Updated : 20 Aug 2020 4:59 PM GMT
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स्वदेश मथुरा

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