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कोरोना ने पूरी दुनिया के बजा दिए बारह

कोरोना ने पूरी दुनिया के बजा दिए बारह
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रिपोर्टः- विजय कुमार गुप्ता

मथुरा। कोरोना ने पूरी दुनिया के बारह बजा कर रख दिए। एक ऐसा सूक्ष्म वायरस जो दिखाई भी नहीं दे रहा है और इतना शक्तिशाली जिससे दुनिया के सबसे ताकतवर देश भी थर्रा उठे हैं, क्योंकि इसका सर्वाधिक हमला उन्हीं के ऊपर हुआ है।

ऐसा लग रहा है कि कोरोना इन ताकतवर देशों से मूछों पर ताव देकर ललकारते हुए कह रहा है कि बोलो तुम ज्यादा ताकतवर हो या मैं? और ये बेचारे उससे हाथ मिलाना भूल हाथ जोड़कर कह रहे हैं कि कोरोना भैया- तुम ही ताकतवर हो। बहुत हो गया, अब तो हमारे ऊपर दया करो और वापिस चले जाओ। दुनिया भर के सभी देश कह रहे हैं कि कोरोना जी आपने तो हमारे ऐसे बारह बजा दिए कि इतने दिन हो गये फिर भी अभी तक हमारी घड़ी की सुई बारह से आगे खिसक ही नहीं रही।

हालांकि यह संकट की घड़ी हास-परिहास कि नहीं लेकिन जिन्दगी में हास्य का उतना ही महत्व है, जितना सब्जी में नमक का। एक तो लोग वैसे ही कोरोना और उससे उत्पन्न लाॅकडाउन से त्रस्त हैं तथा घरों में कैद होकर तनाव की जिन्दगी जी रहे हैं। ऐसी स्थिति में हास्य उनके लिए तो टाॅनिक का काम करेगा। इस सच्चाई को कोई नकार नहीं सकता।

बात बारह बजे की बार-बार आती है। अक्सर लोगों को जिज्ञासा रहती है कि आखिर बारह बजे वाला मुहावरा कहाँ से उपजा जिससे सर्वाधिक पीड़ित गुरु गोविंद सिंह जी के अनुयायी सरदार लोग ही हैं, जो स्वाभिमानी होने के साथ-साथ बहादुर और देशभक्त भी होते हैं। स्वाभिमानी शब्द इसलिए लिखा है कि मैंने आज तक किसी भी सरदार को भीख मांगते हुए नहीं देखा। गुरु गोविंद सिंह जी वो थे जिन्होंने मुसलमान बनना नहीं स्वीकारा, भले ही क्रूर मुस्लिम शासकों ने उनके दोनों बेटों को जिन्दा ही दीवार में चिनवा दिया, ऐसे महापुरुष के चरणों में शत शत नमन।

बताते हैं कि बारह बजे वाला मुहावरा सरदारों से ही शुरू हुआ क्योंकि यह लोग केश रखते हैं और उन्हें ऊपर की ओर बांध लेते हैं जिससे सिर में गर्माई बनी रहती है और ऊपर से पगड़ी पहनते हैं तो और भी गर्मी चढ़ती है। उससे भी ज्यादा गर्मी का प्रकोप तब होता है, जब दोपहर होती है यानी टीकाटीक दुपहरी जब बारह का समय होता है। उस समय सिर और माथे में टेम्प्रेचर अधिक बढ़ जाने से यह लोग थोड़े विचलित से होते हैं और स्वभाव में थोड़ा अजीबोगरीब सा परिवर्तन दिखाई देता है। हो सकता है यह चिड़चिड़ापन का दूसरा रूप हो। इनका यह स्वरूप बारह बजे के बाद भी पूरी तरह समाप्त नहीं होता क्योंकि फिर तो गर्मी का यह वायरस अपनी जगह बना लेता है और स्वभाव में घुल मिल जाता है।

सरदार खुशवंत सिंह तो अपने ऊपर ही चुटकुले बना डालते थे, बाकी सरदारों को छोड़ने का तो सवाल ही नहीं। उनके व्यंगात्मक लेख अखबारों में जब छपते थे तो उसमें एक कार्टून होता था जिसमें खुशवंत सिंह लिख रहे होते थे और सामने शराब की बोतल रखी रहती थी।

एक चुटकुले में वे लिखते हैं कि एक बार में कोलकाता गया। स्टेशन से गंतव्य के लिए जो टैक्सी पकड़ी उसका ड्राइवर सरदार था। बातचीत के दौरान आपस में दोनों सरदारों की आत्मीयता हो गई। ड्राइवर सरदार ने खुशवंत सिंह से कहा कि पा जी अगर मैं बिरला जी की जगह होता तो और भी मालदार होता। खुशवंत सिंह लिखते हैं कि मैंने बिस्मय से पूछा कि वह कैसे? तो ड्राइवर सरदार ने उत्तर दिया कि सारे कारखाने और उद्योग तो रहते ही ऊपर से गड्डी और चलाता।

अब चुटकुलों की चली बात पर मैं भी एक बनिया की चालाकी भरा चुटकुला बताता हूं। चूंकि मैं खुद भी तो बनिया हूँ। एक बनिया अपनी दुकान पर बैठा था, उसी समय एक रंगदार आया और बनिया से सामान उधार मांगने लगा। बनिया ने मना कर दिया। क्योंकि उसे पता था कि यह पैसे बाद में मिलेंगे नहीं। फिर क्या था, रंगदार ने उसे गाली देना शुरू कर दिया। जैसे-जैसे रंगदार उसे गाली बकता, वैसे-वैसे वह चंट बनिया उससे दुगुनी बड़ी गाली रंगदार के लिए एक कागज पर लिखता जाता। वह कहता तेरी, बनिया लिख देता तेरे बाप की और तेरे पूरे खानदान की।

खैर जब रंगदार बक-बकाकर वहां से चला गया, तब बनिया के पड़ोसी लोग आए और बोले कि अरे बनिया तूने उसकी इतनी गाली सुनली और चूं तक नहीं की, बढ़ा डरपोक है। बनिया बोला कि कौन कहता है कि मैं चुपचाप सुनता रहा, मैंने भी तो ईट का जवाब पत्थर से दिया। वह बोले कि हमने तो नहीं सुना कुछ भी, इस पर चालक बनिया ने कागज को दिखाकर कहा कि देखो यह क्या है? उसकी गाली तो हवा में उड़ गई और मेरे पास तो लिखित में सबूत है।

भले ही चुटकुले सभी पर बनते हों लेकिन यह सर्वविदित है कि इससे पीड़ित सर्वाधिक सरदार ही हैं। यह बेचारे इतने दुखी हैं कि इन्होंने सुप्रीम कोर्ट तक का दरवाजा खटखटा लिया, पर कोई लाभ नहीं मिला। सुप्रीम कोर्ट ने भी अपने हाथ खड़े कर दिए और कहा कि हमारी पूरी सहानुभूति आप लोगों के साथ है लेकिन हम भी मजबूर हैं आप लोगों के ऊपर हो रही चुटकुले बाजी पर अंकुश लगाने में। इसमें हम कुछ नहीं कर सकते। मेरा सरदार भाइयों से आग्रह है कि वे इन चुटकुलेबाजियों में ध्यान न दें और पूरी तरह नजरंदाज करते हुए लुफ्त लें। इस का आनंद ही कुछ और होगा जैसे खुशवंत सिंह लिया करते थे।

मोदी मंत्रः- दीपक जलाओ कोरोना भगाओ

मोदी जी ने दीपक जलाकर कोरोना भगाने का जो मंत्र दिया है वह निश्चित रूप से कारगर होगा। पिछले दिनों घंटा घड़ियाल और शंख आदि बजाये गये। इन बातों के पीछे वैज्ञानिक तथ्य है भले ही कुछ अकलमंद या अकल बंद लोग इन बातों का उपहास कर रहे हैं तथा अंधविश्वास आदि बताकर कुतर्क कर रहे हैं, लेकिन अक्लमंदों का कथन है कि हजारों वर्षों से चली आ रही हमारे वेद पुराण और शास्त्रों की बातें केवल ढकोसले बाजी नहीं है।

घंटे, घड़ियाल और शंख आदि बजाने के पीछे महत्वपूर्ण बात यह है कि जब इनकी ध्वनि वातावरण में गूंजती है तो उसके आसपास के सूक्ष्म विषाणु स्वत ही नष्ट हो जाते हैं। साथ ही इस ध्वनि से वायुमंडल में स्वतः ही एक अलौकिक आनंद की अनुभूति होती है।

इसी प्रकार दीप प्रज्वलन भी हमारे धर्म शास्त्रों में अत्यंत उपयोगी बताया गया है। त्यौहार हो या और कोई मरने जीने का समय, हर मौके पर दीप प्रज्वलन जरूरी होता है। इसके पीछे न सिर्फ धार्मिक अपितु वैज्ञानिक तर्क भी हैं। दीपक का जलना अंधेरे को रोशन करना तो है ही साथ ही देहरी पर दीपक जलाना हर प्रकार की अला-बला से बचाता है।

मोदी जी ने तो कल कहा था कि देहरी पर दीपक जलाना लेकिन उससे कुछ दिन पूर्व जब लाॅकडाउन शुरू हुआ था, तब गली-गली मौहल्ले-मौहल्ले में महिलाओं ने अपने-अपने घरों की देहरी पर दीपक जलाकर किसी भी अनिष्ट की संभावना से बचाने की प्रार्थनाएं की थी। ऐसा मानना है कि हम लोगों के आराध्य और पितृ आत्माएं हमारी रक्षा करती हैं।

कुछ लोगों को तो धर्म और आध्यात्म का मखौल उड़ाना तथा बात-बात में अंधविश्वास कहना जैसे उनका शौक बन गया है। सच में कहा जाए तो सबसे ज्यादा अंधविश्वासी यह लोग ही हैं। इनसे पूछा जाए कि तुम्हारे पिता का क्या नाम है? झट से बताएंगे कि हमारे पिता का नाम फलां फलां हैं। जब उनसे यह पूछा जाए कि क्या तुमने अपने पिता के डीएनए से अपने डीएनए का मिलान कराने की जांच कराई है। इसका उनके पास कोई जवाब नहीं होगा। क्या यह सुनी सुनाई बातों पर विश्वास करने वाले अंधविश्वास को बढ़ावा नहीं दे रहे?

Updated : 4 April 2020 4:19 PM GMT
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स्वदेश मथुरा

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