जूते पहनकर यमुना जी का आचमन करना मेरी गलती-गुरु शरणानन्द
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मथुरा। जूते पहनकर यमुना जी का आचमन करना मेरी गलती थी जिसका मुझे खेद है। यह बात काष्णर््िा आश्रम रमणरेती महावन के महामंडलेश्वर गुरु शरणानन्द महाराज ने कही है। महाराज जी ने कहा कि यदि किसी इन्सान से भूल चूक में भी कोई गलती हो जाय तो उसे तुरन्त खुद ब खुद स्वीकार कर लेना चाहिए। जिससे गलती का प्रायश्चित हो जाता है।
उल्लेखनीय है कि विगत दिवस स्वदेश में एक समाचार सचित्र प्रकाशित किया गया था जिसका शीर्षक था महाराज जी आप धन्य हैं तथा इस समाचार के साथ जो फोटो था उसमें महाराज जी जूते पहनकर यमुना जी का आचमन करते दिखाई दे रहे हैं।
गुरु शरणानन्द महाराज की उक्त स्वीकारोक्ति उन्हें महान बनाती है तथा अब यह सिद्ध हो गया है कि वे सच्चे संत हैं। इस संन्दर्भ में समाजसेवी कार्ष्णि प्रमोद गर्ग कसेरे ने जानकारी देते हुए बताया कि जब मैं महावन स्थित महाराज जी के आश्रम गया तब उक्त समाचार की चर्चा हुई। महाराज जी ने बगैर कोई किन्तु-परन्तु किये अपनी गलती स्वीकारी जो जाने-अनजाने की भूल चूक में हो गई थी।
प्रमोद गर्ग जो मथुरा में अग्रिम श्रेणी के समाजसेवियों में माने जाते हैं, ने बताया कि महाराज जी ने समाचार को पढ़कर बजाय क्रोधित होने के एकदम सरल रूप में लिया तथा अपने हाथ से स्वयं प्रसाद देकर लिखने वाले संवाददाता यानी विजय कुमार गुप्ता को आशीर्वाद स्वरूप घर देकर आने को कहा। गत रात्रि जब प्रमोद जी मुझे प्रसाद देने आये और सारी घटना बताई तो न सिर्फ मैं दंग रह गया बल्कि महाराज जी का स्नेह और आशीर्वाद पाकर अभिभूत हो उठा और अन्तरात्मा से निकल उठा कि महाराज जी आप वाकई में धन्य हैं। इस घटना से मुझे बिच्छू और साधुवाली कहावत याद आ गई जिसमें बिच्छू के डंक की परवाह किए बगैर साधु उसकी भलाई हेतु बचाने में लगा रहता है।
गुरु शरणानन्द जी के बारे में संत शैलजाकांत बताते हैं कि भूख से तड़पती गायों की सेवा के लिए उन्होंने जो भूसा बैंक की स्थापना की है, उसमें महाराज जी ने अपनी ओर से 12 लाख रुपये की सेवा की है, जो जिले के अन्य दानदाताओं में सबसे बड़ी है। शैलजाकांत जी कहते हैं कि महाराज जी की यह सेवा मेरे ऊपर व्यक्तिगत अहसान है। ऐसे संत शरणानन्द जी को मेरा भी कोटि-कोटि प्रणाम।
स्वदेश मथुरा
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