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कोरोना का कहरः-मांसाहारियों के वोट ज्यादा जरूरी या लोगों की जिंदगी


विजय कुमार गुप्ता

मथुरा। समूची दुनिया कोरोना के कहर से हाहाकार कर रही है और हर कोई अपने निहित स्वार्थों से ऊपर उठकर इस महामारी से निजात पाना चाहता है, किंन्तु लगता है सभी राजनैतिक दलों और सरकारों का लक्ष्य कोरोना के कहर से भी ऊपर मांसाहारीयों के वोट हैं। लोगों की जिन्दगी का नंबर बाद में आता है।

बड़े हैरत की बात है कि समाचार पत्रों के विज्ञापनों अथवा टीवी पर दिए जा रहे बयानों में कोई भी बड़ा राजनेता यह नहीं कह रहा है कि कोरोना से बचाव के लिए सबसे पहले शाकाहार अपनाएं।

करोड़ों रुपऐ विज्ञापनों में खर्च किए जा रहे हैं। पूरे-पूरे पेज के ढेरों विज्ञापनों से समाचार पत्र रंगे पड़े हैं। उन विज्ञापनों में कोरोना से बचाव के लिए दुनिया भर की रामायण तो लिखी है कि यह करो, यह मत करो। बार-बार साबुन से हाथ धोना आदि-आदि। लेकिन कहीं भी शाकाहार अपनाने की अपील नहीं है जिसके पीछे मांसाहारियों के वोट ना खिसक जाए यह सोच है। ऐसा लोग अनुमान लगा रहे हैं।

सर्व विदित है कि यह महामारी भयंकर मांसाहारी देश चीन से आई है और उसकी जड़ में चमगादड़ और सांप हैं, जिनका सेवन करने से भी चीनी राक्षस नहीं चूकते। किंतु अब जब उनकी जान पर बीतने लगी तो उन्होंने भी मांसाहार त्यागना शुरू कर दिया है। इसके विषाणु मांसाहारियों में जल्दी फैलते हैं, यह दिखाई भी दे रहा है। चाहे भारत सरकार हो अथवा देश के विभिन्न प्रदेशों की सरकारों के प्रसार प्रचार हो, कहीं भी शाकाहार अपनाने की एक भी लाइन नहीं है जो आश्चर्यजनक बात है। इस सबके पीछे वोट की राजनीति स्पष्ट झलकती है। सभी राजनैतिक पार्टियों की सोच है कि यदि हम शाकाहार की बात करेंगे तो मांसाहारियों के वोट प्रभावित होंगे।

दूसरी ओर कोरोना से भयभीत होकर स्वः प्रेरणा से लोग मांसाहार को छोड़ते जा रहे हैं। यही कारण है कि मांस मछली तथा अंडों की कीमतें अब जमीन पर आ गई हैं और खरीददारों के टोटे पड़ गये हैं किंतु हमारी सरकारों और उनको नियंत्रित करने वाले राजनैतिक दलों को भी तो अपना कर्तव्य निभाना चाहिए। उनका पहला धर्म लोगों की जान बचाना है। वोट तो बहुत बाद की चीजें हैं। जब लोग ही नहीं रहेंगे तो वोट कौन देगा।

एक और शर्मनाक बात यह है कि मछुआरों (मछली मारों) को किसान का दर्जा दे दिया गया है। क्या मछुआरे किसान हो सकते हैं? फिर तो मुर्गी और सूअर पालक भी कहेंगे हमें भी किसान का दर्जा दो। किसान को धरतीपुत्र कहा जाता है। किसान को भगवान का दूसरा रूप भी माना जाता है। वह अन्न उपजाता है और संपूर्ण मानव जाति और विभिन्न प्रकार के पशु, पक्षी, जीव-जंतु उससे अपना पेट भरते हैं। क्या हत्या करने वालों या मांसाहार को बढ़ावा देने वालों को किसान का दर्जा दिया जाना उचित है?

भले ही हमारे प्रदेश में गौ हत्या प्रतिबंधित है किंतु देश के कुछ अन्य प्रदेशों में गौहत्या जारी है। बड़े शर्म की बात है कि हमारे देश से गौमांस का निर्यात दिन प्रतिदिन बढ़ता ही जा रहा है। यदि कोरोना को भगाना है तो गौमाता तथा अन्य सभी प्राणियों की हत्या बंद करने की दिशा में हम सभी को आगे बढ़ना होगा तथा ईमानदारी के साथ शाकाहार को अपनाना व उसके लिए जनता को प्रेरित करना होगा, तभी हमारा देश व संपूर्ण मानवता सुखी व सुरक्षित रहेगी।

सभी मांसाहार छोड़ेंगे तो खाने के लाले पड़ जाएंगे

सभी लोग मांसाहार छोड़ देंगे तो देश में शाकाहारी वस्तुओं की भारी किल्लत हो जाएगी और खाने के लाले पड़ जायेंगे। अनाज, दालें, साग सब्जी इत्यादि की कीमतें आसमान पर पहुंच जाएंगी और गरीब का हाल बेहाल हो जाएगा।

यह बात भारतीय जनता पार्टी के एक कद्दावर नेता जो पूर्व मंत्री होने के साथ-साथ वर्तमान में उच्च पद पर भी विराजमान हैं, ने इस संवाददाता से फोन पर हुई एक अनौपचारिक बातचीत के दौरान उस समय कही जब संवाददाता ने उनसे यह कहा कि आपकी सरकारें कोरोना से बचाव हेतु शाकाहार अपनाने की बात पर मौन क्यों साधे हुए हैं? जबकि सच्चाई यह है कि शाकाहार अपनाना कोरोना से बचाव में सहायक होगा। उनसे पूछा कि कहीं इसकी जड़ में मांसाहारियों के वोट न खिसक जाएं यह सोच तो नहीं है?

इस पर उनका कथन था कि इसका कारण वोट नहीं बल्कि संविधान है। संविधान में सभी को यह अधिकार है कि वह अपनी मनमर्जी का खाना खा सकते हैं। चाहे शाकाहारी हो अथवा मांसाहारी, फिर हम उन्हें कैसे रोक सकते हैं। साथ ही उन्होंने यह भी कहा कि अब तो लोग स्वतः ही मांसाहार त्याग रहे हैं, फिर सरकारी अपील की क्या जरूरत है।

जब हमने उन नेताजी जो हमारे मित्र भी हैं, से यह कहा कि वाह जी वाह यह भी खूब रही, संविधान का अधिकार तो आपको खूब याद है किन्तु मानवता के संविधान का कोई ख्याल नहीं। इन निरीह प्राणियों की हत्या कर उन्हें खा जाना कौन सी संवैधानियत है। इनके लिए भी ईश्वर ने अलौकिक संविधान बनाया है कि तुम भी अपनी जिंदगी जियो और इन्हें भी जीने दो, उसका आपको तनिक भी ख्याल नहीं जबकि हम तो मांसाहारियों की जिन्दगी का ख्याल रखते हुए कोरोना से बचाव हेतु यह बात कह रहे हैं। खैर वे अपनी बात पर डटे रहे और बात आई गई हो गई।

दूसरे दिन संवाददाता ने उनसे कहा कि कल वाली आपकी बातों को मैं अखबार में छाप दे रहा हूँ। बस इतना कहते ही वो एकदम पलटी मार गए और बोले कि नहीं भाई, हम तो विशुद्ध शाकाहारी हैं। प्याज तक नहीं खाते। हमने तो आपके पास कोरोना से बचाव वाली अपील की एक वीडियो भी भेजी है जिसमें शाकाहार अपनाने की अपील भी शामिल है। मांसाहार तो एकदम गलत है। हम सभी को शाकाहारी होना चाहिए आदि-आदि। धन्य हो नेताजी।

शाकाहार और मांसाहार का अंतर

एक थाली शाकाहार की और एक थाली मांसाहार की ले लो। दोनों थालियों को अलग अलग डिब्बे में बंद करके रख दो, फिर एक-दो दिन बाद उन डिब्बों को खोल कर देखो शाकाहार वाली थाली में केवल हल्की सी फफूदन ही आएगी और मांसाहार वाली थाली से बड़ी भयंकर सड़न और ऐसी दुर्गन्ध आएगी कि आप वहां खड़े भी नहीं रह सकते।

जब हम खाना खाते हैं तब पेट के अन्दर यह खाना कई-कई दिन तक छोटे-छोटे कणों के रूप में आंतों के अंदर बना रहता है। क्या यह दुर्गन्ध और सड़न हमारे पेट के अन्दर बीमारियां नहीं फैलाती होगी? फिर भी लोग नहीं समझते।

Updated : 26 March 2020 3:38 PM GMT
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स्वदेश मथुरा

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