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काकोरी काण्ड : क्रान्तिकारियों ने जर्मनी की पिस्तौल का किया था प्रयोग

काकोरी काण्ड : क्रान्तिकारियों ने जर्मनी की पिस्तौल का किया था प्रयोग
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लखनऊ। क्रान्तिकारियों ने 09 अगस्त 1925 के काकोरी काण्ड को अंजाम देने के लिए जर्मनी की पिस्तौलों का प्रयोग किया था। इन पिस्तौलों की खासियत यह थी कि बट में कुन्दा लगा लेने से वह छोटी आटोमेटिक रायफल की तरह लगती थीं और सामने वाले के मन में भय पैदा कर देता था। इन पिस्तौलों की मारक क्षमता भी अधिक होती थी उन दिनों ये पिस्तौल आज की एके-47 रायफल की तरह चर्चित हुआ करती थी। लखनऊ से पहले काकोरी रेलवे स्टेशन पर रुक कर जैसे ही ट्रेन आगे बढी, क्रान्तिकारियों ने चेन खींचकर उसे रोक लिया और गार्ड के डिब्बे से सरकारी खजाने का बक्सा नीचे गिरा दिया। पहले तो उसे खोलने की कोशिश की गयी लेकिन जब वह नहीं खुला तो अशफाक उल्ला खां ने अपनी पिस्तौल मन्मथनाथ गुप्त को पकड़ा दी और हथौड़ा लेकर बक्सा तोड़ने में जुट गए। इसमें राम प्रसाद बिस्मिल थे। इस घटना के बाद अंग्रेज अधिकारी बौखला गये थे। अंग्रेजों को पहली बार क्रान्तिकारियों ने खुली चुनौती दी थी।

काकोरी शहीद स्मारक विकास एवं संरक्षण समिति के सदस्य उदय खत्री ने काकोरी काण्ड का जिक्र करते हुए कहा कि बताया कि क्रान्तिकारियों द्वारा चलाए जा रहे आजादी के आन्दोलन को गति देने के लिये धन की आवश्यकता के कारण राम प्रसाद बिस्मिल ने अंग्रेजी सरकार का खजाना लूटने की योजना बनायी थी। इस योजनानुसार दल के ही एक प्रमुख सदस्य राजेन्द्रनाथ लाहिड़ी ने 09 अगस्त 1925 को लखनऊ जिले के काकोरी रेलवे स्टेशन से छूटी आठ डाउन सहारनपुर-लखनऊ पैसेन्जर ट्रेन को चेन खींचकर रोका और क्रान्तिकारी पण्डित राम प्रसाद बिस्मिल के नेतृत्व में अशफाक उल्ला खाँ, चन्द्रशेखर आजाद व 06 अन्य सहयोगियों की मदद से समूची ट्रेन पर धावा बोलते हुए सरकारी खजाना लूट लिया। बाद में अंग्रेजी हुकूमत ने उनकी पार्टी हिन्दुस्तान रिपब्लिकन ऐसोसिएशन के कुल 40 क्रान्तिकारियों पर सम्राट के विरुद्ध सशस्त्र युद्ध छेड़ने, सरकारी खजाना लूटने व मुसाफिरों की हत्या करने का मुकदमा चलाया, जिसमें राजेन्द्रनाथ लाहिड़ी, पण्डित राम प्रसाद बिस्मिल, अशफाक उल्ला खाँ तथा ठाकुर रोशन सिंह को मृत्यु-दण्ड (फांसी की सजा) सुनायी गयी। इस मुकदमें में 16 अन्य क्रान्तिकारियों को कम से कम 04 वर्ष की सजा से लेकर अधिकतम काला पानी (आजीवन कारावास) तक का दण्ड दिया गया था।

क्रान्तिकारियों की गिरफ्तारी और मुकदमा

काकोरी काण्ड के बाद पुलिस ने इस षड्यन्त्र में शामिल किसी भी व्यक्ति को गिरफ्तार करवाने के लिये इनाम की घोषणा कर दी। इसका परिणाम यह हुआ कि पुलिस को घटनास्थल पर मिली चादर में लगे धोबी के निशान से इस बात का पता चल गया कि चादर शाहजहाँपुर के किसी व्यक्ति की है। शाहजहाँपुर के धोबियों से पूछने पर मालूम हुआ कि चादर बनारसीलाल की है। बिस्मिल के साझीदार बनारसीलाल से मिलकर पुलिस ने इस डकैती का सारा भेद प्राप्त कर लिया। पुलिस को उससे यह भी पता चल गया कि 09 अगस्त 1925 को शाहजहाँपुर से राम प्रसाद बिस्मिल की पार्टी के कौन-कौन लोग शहर से बाहर गये थे और वे कब-कब वापस आये? जब खुफिया तौर से इस बात की पूरी पुष्टि हो गई कि राम प्रसाद बिस्मिल, जो हिन्दुस्तान प्रजातन्त्र संघ (एचआरए) के नेता थे, उस दिन शहर में नहीं थे तो 26 सितम्बर 1925 की रात में बिस्मिल के साथ पूरे देश से 40 लोगों को गिरफ्तार कर लिया गया था।

Updated : 9 Aug 2018 2:42 PM GMT
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Swadesh Digital

स्वदेश वेब डेस्क www.swadeshnews.in


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