Home > राज्य > उत्तरप्रदेश > लखनऊ > उप्र में पहले चरण की सीटों पर कमजोर है इंडी गठबंधन का रिकार्ड, कई पर नहीं खुला सपा का खाता

उप्र में पहले चरण की सीटों पर कमजोर है इंडी गठबंधन का रिकार्ड, कई पर नहीं खुला सपा का खाता

उप्र में पहले चरण की सीटों पर कमजोर है इंडी गठबंधन का रिकार्ड, कई पर नहीं खुला सपा का खाता
X

लखनऊ। उप्र में पहले चरण के चुनाव की वोटिंग 19 अप्रैल को होगी। प्रथम चरण में पश्चिमी उत्तर प्रदेश की सहारनपुर, कैराना, मुजफ्फरनगर, बिजनौर, नगीना, मुरादाबाद, रामपुर, पीलीभीत के वोटर अपना प्रतिनिधि चुनेंगे। इन सीटों पर इंडी गठबंधन का पुराना रिकार्ड देखा जाए तो वो काफी कमजोर दिखाई देता है। कई सीटों पर इंडी गठबंधन 30 साल पहले जीता था,तो कहीं पर उसका कभी खाता ही नहीं खुला। एकाध सीट ऐसी है,जहां उसका प्रदर्शन औसत रहा। -

2024 में सपा-कांग्रेस का गठबंधन

इंडी गठबंधन में सपा-कांग्रेस शामिल हैं। पहले चरण की आठ में सात सपा और एकमात्र सहारनपुर सीट कांग्रेस के खाते में हैं। सपा 63 और कांग्रेस 17 सीटों पर चुनाव लड़ रही है। उल्लेखनीय है कि, 2019 के आम चुनाव में सपा-बसपा-रालोद का गठबंधन था।

सहारनपुर सीट कांग्रेस ने 40 साल पहले जीती थी

सहारनपुर सीट से कांग्रेस प्रत्याशी के तौर पर इमरान मसूद मैदान में हैं। सहारनपुर सीट के संसदीय इतिहास को देखें तो कांग्रेस प्रत्याशी यशपाल सिंह ने 1984 में अंतिम बार यहां से जीत दर्ज कराई थी। उसके बाद से कांग्रेस यहां से लगातार पिछड़ती रही। 2014 के आम चुनाव में कांग्रेस प्रत्याशी दूसरे और 2019 के चुनाव में तीसरे स्थान पर रहा। 2004 और 2009 में कांग्रेस यहां चौथे स्थान पर रही थी। 2014 में ये सीट भाजपा ने बसपा को हराकर जीती थी। 2019 में बसपा प्रत्याशी ने भाजपा को हराया था। भाजपा दूसरे नंबर पर थी।

सपा ने 28 साल पहले जीती कैराना सीट

कैराना सीट इंडी गठबंधन में सपा के खाते में है। सपा ने यहां से इकरा हसन को मैदान में उतारा है। इस सीट का संसदीय इतिहास देखें तो इस सीट पर सपा पर 1996 में सपा प्रत्याशी मुनव्वर हुसैन ने जीत दर्ज की थी। इसके बाद से यहां दोबारा साइकिल दौड़ नहीं पाई। इसके बाद हुए चुनाव में यहां भाजपा, बसपा और रालोद ने जीत दर्ज कराई।

मुजफ्फरनगर सीट पर सपा सिर्फ एक बार जीती

जाट लैंड की अहम सीट मुजफ्फरनगर में सपा ने 2004 में पहली बार जीत दर्ज कराई थी। सपा ने यह सीट सिर्फ एक बार ही जीती है। कांग्रेस यहां अंतिम बार 1999 में जीती थी। 2014 और 2019 में भाजपा ने यहां से लगातार जीत दर्ज की। इस बार भाजपा-रालोद गठबंधन में होने से इस सीट पर एनडीए प्रत्याशी मजबूत स्थिति में है।

बिजनौर में सपा 1998 में जीती थी

बिजनौर सीट सपा ने अंतिम बार 1998 में जीती थी। उसके बाद इस सीट पर उसका सूखा लगातार जारी है। सपा के गठबंधन की सहयोगी कांग्रेस की प्रत्याशी मीरा कुमार 1985 के उपचुनाव में यहां जीत दर्ज कराई थी। उसके बाद से कांग्रेस का यहां खाता नहीं खुला।

नगीना में एक बार जीती सपा

यूपी की 17 आरक्षित लोकसभा सीटों में से एक नगीना लोकसभा क्षेत्र सबसे अहम माना जाता है। 2008 में परिसीमन आयोग की सिफारिश पर इसे बिजनौर से अलग करके अलग लोकसभा क्षेत्र बनाया गया। 2009 में नगीना लोकसभा सीट पहली बार अस्तित्व में आई थी। 2009 में सपा के यशवीर सिंह यहां से जीते थे। 2014 में भाजपा और 2019 में यहां बसपा जीती थी।

मुरादाबाद में 2019 में जीती थी सपा

2019 के आम चुनाव में सपा ने ये सीट जीती थी। इस बार सपा ने पिछले विजेता एसटी हसन का टिकट काट दिया है। सपा ने 24 मार्च को मुरादाबाद से एसटी हसन को टिकट दिया। 26 को उन्होंने पर्चा भरा। हालांकि इसके अगले ही दिन अखिलेश यादव ने रुचि वीरा को सिंबल देकर नामांकन करवा दिया। कहा गया कि आजम खान के दबाव में सपा ने रुचि वीरा को अपना उम्मीदवार बनाया। टिकट कटने और अंतिम समय तक उम्मीदवार फाइनल न होने से सपा नेताओं और कार्यकर्ताओं में नाराजगी है, जिसका असर सपा के नतीजों पर पड़ना तय माना जा रहा है। कांग्रेस प्रत्याशी क्रिकेटर मोहम्मद अजहरुद्दीन ने 2009 में यहां जीत हासिल की थी।

रामपुर पर प्रत्याशी बदलने से बदला चुनाव का माहौल

रामपुर लोकसभा सीट 2019 में सपा ने जीती थी। हालांकि 2022 के हुए उपचुनाव में भाजपा ने सपा के गढ़ में जीत दर्ज कराई। सपा आजम खान के गढ़ रामपुर अपना प्रत्याशी एक बार में फाइनल नहीं कर पाई। यहां से टिकट फाइनल करने के लिए सपा अध्यक्ष अखिलेश यादव ने सीतापुर जेल जाकर आजम खान से मुलाकात भी की थी। पहले आया कि रामपुर से आजम के करीबी असीम राजा को टिकट दिया जाएगा और उन्होंने एक नामांकन पत्र भी खरीद लिया था। लेकिन बाद में दिल्ली पार्लियामेंट स्ट्रीट जामा मस्जिद इमाम मौलाना मोहिबुल्लाह नदवी को टिकट दिया गया। नदवी को लेकर स्थानीय नेताओं और आजम समर्थकों में गुस्सा और नाराजगी है, जिसका खामियाजा सपा को उठाना पड़ सकता है। भाजपा पूरे दमखम से दोबारा यहां केसरिया ध्वज फहराने की तैयारी में है। कांग्रेस यहां आखिरी बार 1999 के चुनाव में जीती थी।

पीलीभीत में कभी सपा का खाता नहीं खुला

पीलीभीत संसदीय सीट पर अब तक एक बार भी सपा ने जीत दर्ज नहीं की है। 2014 और 2019 के चुनाव में सपा प्रत्याशी दूसरे नंबर पर रहे। दोनों चुनाव में उसे भाजपा प्रत्याशी से हार का सामना करना पड़ा। ये सीट भाजपा का गढ़ मानी जाती है। कांग्रेस ने अंतिम बार यहां 1984 का चुनाव जीता था।

Updated : 13 April 2024 12:04 PM GMT
Tags:    
author-thhumb

स्वदेश डेस्क

वेब डेस्क


Next Story
Top