भारत की भूमि सेवा की भूमि है, यहां की पहचान है सेवा और त्याग: श्री गुरु गोरखनाथ स्वास्थ्य सेवा यात्रा 5.0 के कार्यकर्ता सम्मान समारोह में बोले दत्तात्रेय होसबाले…

लखनऊ। श्री गुरु गोरखनाथ स्वास्थ्य सेवा यात्रा 5.0 के कार्यकर्ता सम्मान समारोह में स्वयंसेवक संघ के सरकार्यवाह दत्तात्रेय होसबाले ने 'मानव सेवा-माधव सेवा, जनसेवा-जनार्दन सेवा' के मूलमंत्र का अर्थ बताया। उन्होंने कहा कि यह बड़े ही सौभाग्य की बात है कि वर्ष 2019 से सुदूर क्षेत्रों में रहने वाली जनजातियों की सेवा की जा रही है। ऐसे सभी सदस्य जो गुरु गोरखनाथ स्वास्थ्य सेवा यात्रा के माध्यम से जनसेवा का महान कार्य कर रहे हैं, वे वंदनीय हैं।
'सम्मान कार्यक्रम नहीं, कृतज्ञता का कार्यक्रम है' : सरकार्यवाह दत्तात्रेय होसबोले के साथ सीएम योगी ने भगवान श्री धन्वंतरि, भारत माता, गुरु गोरखनाथ और स्वामी विवेकानंद के चित्रों पर पुष्प अर्पित कर कार्यक्रम की शुरुआत की। इसके पश्चात माननीय सरकार्यवाह जी ने कहा कि भारत की संस्कृति, ज्ञान, सभ्यता, इतिहास आदि पर गर्व किया जाता है।
अगर भारत की भूमि सेवा की भूमि है। यहां की पहचान सेवा और त्याग है। प्रार्थना करने वाले मुख से कहीं अधिक महत्वपूर्ण सेवा करने वाले हाथ होते हैं। इस सेवा कार्य में जुटे डॉक्टर्स ऐसे ही अभिनंदनीय कार्य को साकार कर रहे हैं। उन्होंने अपने संबोधन में कहा कि विकास की मुख्यधारा से पिछड़े लोगों के प्रति कृतज्ञता दिखाएं।
इन डॉक्टर्स से प्रेरणा लेते हुए सभी सबको कुछ न कुछ सेवा का संकल्प लेना चाहिये। उन्होंने कहा कि अभावग्रस्त क्षेत्रों में जाकर सेवा करना वंदनीय कार्य है। अत: यह सम्मान कार्यक्रम नहीं, कृतज्ञता का कार्यक्रम कहा जाना चाहिये।
'सेवा के लिये युवा मेडिकोज हो रहे प्रोत्साहित' : उन्होंने कहा कि वंचित लोगों के लिये संवेदना और संकल्प के साथ उसको साकार करने का वाले ही 'मानव सेवा-माधव सेवा' के मंत्र को जीवंत कर रहे हैं। साथ ही उन्होंने बताया कि सामाजिक संस्थानों और सरकार एवं शासन के संयुक्त प्रयास के कारण ही इस सेवा के लाभार्थियों की संख्या हर वर्ष बढ़ती गयी।
चिकित्सा के क्षेत्र में लोगों के दुख-दर्द को दूर करने वाले ऐसे डॉक्टरों को नमन है। नेशनल मेडिकोज ऑर्गेनाइजेशन (एनएमओ) अपने कार्यों से डॉक्टर और चिकित्सा के विद्यार्थियों को जनसेवी बना रहा है। सरकार्यवाह ने महाराष्ट्र के मराठवाड़ा क्षेत्र में बने डॉ हेडगेवार अस्पताल का वर्णन करते हुए कहा कि वहां सेवा देने वाले डॉक्टर बाहर की दुनिया में अपनी योग्यता के अनुरूप ज्यादा रुपया कमा सकते हैं लेकिन वे जनसेवा करने के लिये बहुत ही कम वेतन में उस अस्पताल में पीड़ितों का उपचार कर रहे हैं। यही नहीं वे युवा मेडिकोज को सेवा कार्य के लिये प्रोत्साहित करने का कार्य भी कर रहे हैं।
'नेत्र कुंभ से की हजारों की सेवा' : उन्होंने सेवा की भावना का वर्णन करते हुए कहा कि सेवा की भावना में कोई दीवार नहीं होती। कोई भेद नहीं होता। कोरोना के समय में दूर-दूर से गरीब-मजदूर पैदल ही चले आ रहे थे। वे परेशान होने पर भी अपना विशिष्ट एवं मर्यादित व्यवहार नहीं भूले। समाज ने भी उनके प्रति कृतज्ञता प्रकट करते हुए जगह-जगह उन सबकी सेवा की।
उन्हें भोजन और आश्रय दिया। यही कारण है कि उस समय जहां कई देशों में भोजन के लिये दंगे हुये लेकिन भारत अछूता रहा। उन्होंने कहा कि प्रयागराज के महाकुंभ में भी सेवा की दृष्टि से नेत्र कुंभ का लगाकर हजारों लोगों की आंखों की जांच की गई थी।
उन्हें दवा और चश्मा दिया गया था। ऐसे विचार तभी आते हैं जब समाज के प्रति अपनापन का भाव जागृत होता है। उन्होंने अंत में कहा कि ऐसी ही सेवा भावना समाज के विभिन्न क्षेत्रों में जागृत हो। बस यही कामना है।
