पर्यटकों को लुभाएंगे टूरिस्ट विलेज बनें 35 सीमावर्ती गांव: बलरामपुर, बहराइच, खीरी सहित 7 जिलों में सजेगा पर्यटन का मेला..

लखनऊ। पर्यटन विभाग ने फैसला लिया है कि वह राज्य के बॉर्डर (सीमा) पर बसे गांवों को भी पर्यटन के नक्शे पर लाएगी। इसके लिए सात सीमावर्ती जिलों के 35 गांवों को 'टूरिस्ट विलेज' के रूप में संवारा जाएगा। इससे इन गांवों में लोगों को रोजगार मिलेगा और देश-विदेश से आने वाले लोग यहां की लोक संस्कृति, रहन-सहन, परंपराएं, कपड़े, खाने और प्राकृतिक सुंदरता को देख सकेंगे।
पर्यटन एवं संस्कृति मंत्री जयवीर सिंह ने बताया कि महाराजगंज, सिद्धार्थनगर, श्रावस्ती, बलरामपुर, बहराइच, लखीमपुर खीरी और पीलीभीत जिलों के चयनित गांवों में ग्रामीण पर्यटन को बढ़ावा देने के लिए विशेष प्रबंध किए जा रहे हैं। हर गांव में 10-10 होमस्टे यूनिट तैयार किए जाएंगे, जहां पर्यटक ग्रामीण परिवेश में रहकर स्थानीय संस्कृति को जी सकेंगे।
इन गांवों का किया गया है शामिल : जयवीर सिंह ने बताया कि सिद्धार्थनगर के दुल्हासुमाली, बजहा, खुनुवां, कोटिया, घरुआर, बलरामपुर के इमलिया कोडर, चंदनपुर, नरिहवा, पहाड़ापुर, बेलभरिया, लखीमपुर के बनकटी छिदिया पूरब मजरा हिम्मतनगर, पिपरौला, पुरैना, सिगंहिया, बहराइच के बद्रिया, आंम्बा कारीकोट फकीरपुरी, विशुनापुर, श्रावस्ती के लालपुर कुसमहवां, मोतीपुर कला, कटकुईयां, मेढकिया, बेलहरी, पीलीभीत के नौजल्हा नकटहा, गभिया सहराई, ढ़किया, महाराजपुर, मटैइया लालपुर महराजगंज के भेड़िहारी, इटहिया, गिरहिया, तरैनी एवं चण्डीथान आदि गांवों का चयन किया गया।
पर्यटकों के सामने पेश की जाएंगी विभिन्न कलाएं : जयवीर सिंह ने बताया कि इस योजना में स्थानीय युवाओं को स्टोरी टेलिंग का प्रशिक्षण दिया जाएगा, जिससे वे गांव की कहानियों, किवदंतियों और ऐतिहासिक महत्व को पर्यटकों के सामने दिलचस्प तरीके से पेश कर सकें। वहीं, स्वयं सहायता समूहों की महिलाओं को पारंपरिक व्यंजन बनाने का प्रशिक्षण दिया जाएगा, ताकि पर्यटक गांव की रसोई से जुड़े स्वाद का भी आनंद ले सकें।
आत्मनिर्भरता बनाएगी यह योजना : योजना के तहत थारू जनजाति के सुंदर हस्तशिल्प उत्पादों को स्थानीय बाज़ारों और ऑनलाइन प्लेटफ़ॉर्म्स से जोड़ा जाएगा, जिससे इन पारंपरिक कलाओं को न केवल पहचान मिलेगी, बल्कि स्थानीय कारीगरों की आय भी बढ़ेगी। पर्यटन मंत्री ने बताया कि ‘टूरिस्ट विलेज’ योजना सिर्फ पर्यटन नहीं, बल्कि आत्मनिर्भरता, महिला सशक्तिकरण और सांस्कृतिक संरक्षण की दिशा में एक बड़ा कदम है। इससे सीमावर्ती गांवों में विकास की रोशनी पहुंचेगी और वहां की विरासत को नया जीवन मिलेगा।
