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स्वदेश में प्रकाशित खबर का असर, अवध विश्वविद्यालय के दागी कुलपति से राजभवन ने लिया इस्तीफा

रज्जू भइया राज्य विश्वविद्यालय, प्रयागराज के कुलपति प्रो. अखिलेश कुमार सिंह बने कार्यवाहक कुलपति

स्वदेश में प्रकाशित खबर का असर, अवध विश्वविद्यालय के दागी कुलपति से राजभवन ने लिया इस्तीफा
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अयोध्या। रामनगरी के डॉ. राम मनोहर लोहिया अवध विश्वविद्यालय में हुई शिक्षक भर्तियों में अनियमितता, महाविद्यालय प्रबंधकों से वसूली, निर्माण कार्यों में लूट, दीपोत्सव के नाम पर वसूली जैसे आरोपों से घिरे दागी कुलपति प्रो. रवि शंकर सिंह पटेल से राजभवन ने इस्तीफा मांग लिया है। प्रो. राजेंद्र सिंह (रज्जू भैया) राज्य विश्वविद्यालय के कुलपति प्रो. अखिलेश कुमार सिंह को कार्यवाहक कुलपति नियुक्त किया गया है। उन्होंने तत्काल प्रभाव से पदभार भी ग्रहण कर लिया है।

स्वदेश समाचार पत्र ने प्रमुखता के साथ समय-समय पर अवध विश्वविद्यालय के दागी कुलपति प्रो. रवि शंकर सिंह पटेल के काले कारनामों को उजागर किया। दागी कुलपति से इस्तीफा लिए जाने के पीछे स्वदेश में छपी खबरें प्रामाणिक दस्तावेज के रूप में उपयोग की गईं है। राजभवन से कुलपति से तो इस्तीफा ले लिया, लेकिन अभी मामले का मास्टरमाइंड और कुलपति के उनके ओएसडी शैलेंद्र सिंह पर कार्रवाई होना बाकी है। इस ओएसडी की नियुक्ति विश्वविद्यालय के अंबेडकर चेयर में भी की गई है। राम नगरी के शिक्षा मंदिर डॉ. राममनोहर लोहिया अवध विश्वविद्यालय में अवैध नियुक्तियां, लूट, भ्रष्टाचार, दीपोत्सव के नाम पर वसूली, फीस बढ़ोतरी के खिलाफ न्यायालय गए महाविद्यालय के प्रबंधकों का उत्पीड़न जैसे तमाम गंभीर मुद्दों पर शिकायत कुलाधिपति आनंदीबेन पटेल और मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ से हुई थी। राजभवन ने बुधवार को कुलपति प्रो. शंकर सिंह पटेल से इस्तीफा ले लिया गया और चार्ज रज्जू भैया राज्य विश्वविद्यालय, प्रयागराज के कुलपति प्रो. अखिलेश कुमार सिंह को दे दिया गया है।

विश्वविद्यालय को बर्बाद कर दिया -

पूर्व कार्य परिषद सदस्य ओमप्रकाश सिंह, साकेत महाविद्यालय के शिक्षक डॉ. जन्मेजय तिवारी, भाजपा के जिलया मीडिया प्रभारी डॉ. रजनीश सिंह का कहना है कि यह लड़ाई अभी समाप्त नहीं हुई है। पिछले 2 वर्षों में विश्वविद्यालय को बर्बाद कर दिया गया है। सभी प्रकरण की उच्च स्तरीय जांच हो और दोषी पाए जाने वाले लोगों के खिलाफ एफआईआर दर्ज कर जेल भेजा जाए। इसके साथ ही फर्जी तरीके से नियुक्ति पर शिक्षकों और अन्य स्टाफ से वेतन की वसूली राजस्व की भांति की जाए। स्थानीय लोगों ने कुलपति की शिकायत राज्यपाल/कुलाधिपति आनंदीबेन पटेल, उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ एवं केंद्रीय शिक्षा मंत्री धर्मेन्द्र प्रधान से की है। इसमें भाजपा के जिला मीडिया प्रभारी डॉ. रजनीश सिंह, एडवोकेट नाथ बख्श सिंह सहित कई अन्य लोग भी शामिल हैं।

यूजीसी के मानकों की अनदेखी

गौरतलब हो कि मार्च, 2022 में डॉ. राममनोहर लोहिया अवध विश्वविद्यालय में संपन्न हुई प्राध्यापकों की चयन-प्रक्रिया में यूजीसी के मानकों की अनदेखी कर गम्भीर अनियमितता हुई है। विज्ञापन से लेकर अंतिम चयन तक की पूरी प्रक्रिया में मनमानी नियुक्तियों के लिए जिस तरह अर्हता के नियमों को बदला गया, तथ्यों को छिपाया गया, नियुक्ति की प्रक्रिया एवं परिणामों को प्रभावित किया गया, सत्ता एवं लाभार्थियों के बीच के अन्तर को समाप्त किया गया, उससे परीक्षा की शुचिता तार-तार हुई। अयोध्या के जनमानस में इस घटना को लेकर बेहद रोष है, क्योंकि इसने शासन की भ्रष्टाचार एवं कदाचार के प्रति असहिष्णुता की नीति को संदिग्ध बना दिया है।

अधिकारियों के निकट सम्बन्धी परीक्षा में शामिल -

कुलाधिपति आनंदीबेन पटेल के निर्देशानुसार जारी शासनादेश के अनुक्रम में सहायक प्रोफेसर के पदों पर स्क्रीनिंग परीक्षा संपन्न कराने की जिम्मेदारी संबंधित विश्वविद्यालय के परीक्षा-नियंत्रक की थी। परीक्षा-नियंत्रक उमानाथ सिंह के भाई अनिल कुमार सिंह (अनुक्रमांक 2022002014) अंबेडकर चेयर के अभ्यर्थी थे। इसी क्रम में कुलपति प्रो. रवि शंकर सिंह की पुत्रवधू सविता चंदेल (चयनित) गणित एवं सांख्यिकी की अभ्यर्थी थीं। विश्वविद्यालय की आंतरिक गुणवत्ता सुनिश्चयन प्रकोष्ठ की संयोजक प्रो. नीलम पाठक की रिश्तेदार गरिमा मिश्रा (अनुक्रमांक 2022002089 प्रतीक्षा सूची) भी अंबेडकर चेयर विभाग में अभ्यर्थी थीं। कुलपति के ओएसडी डॉ. शैलेंद्र सिंह स्वयं भी अंबेडकर चेयर और साथ ही प्रौढ़ शिक्षा विभाग में अभ्यर्थी थे। प्रश्न यह है कि इन परिस्थितियों में विश्वविद्यालय के किस अधिकारी ने संबंधित स्क्रीनिंग परीक्षा संपन्न करवाई? क्या शासन को इस सम्बन्ध में विश्वास में लिया गया था कि विश्वविद्यालय के उपर्युक्त जिम्मेदार अधिकारियों के निकट सम्बन्धी इस परीक्षा में सम्मिलित हो रहे हैं। इसलिए उनमें से कोई भी इसके संयोजन की अर्हता नहीं रखता था।

एजेंसी के सीधे संपर्क में कुलपति

विश्वस्त सूत्रों से यह भी पता चला है कि परीक्षा कराने वाली एजेंसी के सीधे संपर्क में कुलपति के निजी सहायक ओएसडी डॉ. शैलेंद्र सिंह थे और मॉडरेशन के लिए प्रश्नपत्र भी उन्होंने संबंधित एजेंसी से प्राप्त कर लिए थे, जबकि स्वयं ही दो-दो विभागों में अभ्यर्थी होने के कारण उनको इस पूरी प्रक्रिया से बाहर रखा जाना चाहिए था। बाद में समस्त मेल/पत्र व्यवहार का कार्य आईक्यूएसी निदेशक प्रो. नीलम पाठक के नाम पर किया गया जिससे इन सभी कारनामों को छिपाया जा सके। कुलपति, उनके ओएसडी, परीक्षा नियंत्रक और आईक्यूएसी निदेशक की मिलीभगत से परीक्षा की शुचिता को पूरी तरह से समाप्त कर दिया गया।

पेपर लिक का आरोप -

यह भी पुष्ट खबर है कि इतिहास, संस्कृत एवं पुरातत्व विभाग में चयनित अभ्यर्थी डॉ. प्रीति सिंह एवं रवि प्रकाश चौधरी को पूर्व में ही प्रश्न पत्र उपलब्ध करा दिए गए थे, जिनसे पैसे का लेन-देन बनारस के रहने वाले चन्दन चौधरी के माध्यम से हुआ था। इसके अतिरिक्त अन्य पदों पर भी जो नियुक्तियां हुई हैं उनमें चयनित अभ्यर्थियों के बीच स्क्रीनिंग परीक्षा के अंकों में जो आश्चर्यजनक समानता है, उससे इस तथ्य की स्वतः ही पुष्टि होती है। एसोसिएट प्रोफेसर पद पर नियुक्त डॉ. महिमा चौरसिया, डॉ. अवध नारायण एवं डॉ. प्रद्युम्न नारायण द्विवेदी द्वारा पूर्व में की गई सेवाएं विश्वविद्यालय अनुदान आयोग अधिनियम 2018 की धारा 10.2 के तहत जोड़ने के योग्य नहीं थे। इसके बावजूद विश्वविद्यालय प्रशासन ने नियमों के विपरीत जाते हुए उनकी पूर्व की सेवाओं को जोड़कर उन्हें अनुचित ढंग से एसोसिएट प्रोफेसर पद प्रदान करने का कार्य किया है।

डॉ. अवध नारायण जिन्होंने अंबेडकर चेयर एवं प्रौढ़ एवं सतत शिक्षा दोनों विभागों में असिस्टेंट प्रोफेसर पद के लिए आवेदन किया था, अर्हता-परीक्षा उत्तीर्ण न कर सकने के कारण साक्षात्कार के लिए नहीं बुलाए जा सके। परंतु इन्हीं अवध नारायण का चयन इसी समय इतिहास संस्कृति एवं पुरातत्व विभाग के एसोसिएट प्रोफेसर पद पर हुआ, जिसमें वह एकल अभ्यर्थी के रूप में सम्मिलित हुए थे। ध्यातव्य है कि इतिहास, संस्कृति एवं पुरातत्व विभाग में एसोसिएट पद पर हुए इस साक्षात्कार में कोई भी अन्य अभ्यर्थी सम्मिलित नहीं हुआ था। यह किसी भी विज्ञापित पद पर आवेदन की न्यूनतम कोरम संख्या के नियमों की सरासर अनदेखी है।

पर्यावरण विज्ञान विभाग में 799 अंक के एपीआई धारक डॉ. अनूप सिंह तथा 473 अंक एपीआई प्राप्त करने वाली डॉ. संगीता यादव का चयन न करके वरीयता-क्रम में सबसे नीचे 152 अंक एपीआई वाली अभ्यर्थी डॉ. महिमा चौरसिया का चयन किया गया है। इसी प्रकार अन्य विषयों में भी साक्षात्कार के लिए बुलाए गए अधिकतर अभ्यर्थी यूजीसी मानक 2018 के प्रावधानों की अनुरूपता में साक्षात्कार के लिए अर्ह नहीं थे परंतु मानकों की अनदेखी कर उन्हें आमंत्रित और चयनित किया गया।

डॉ. शैलेन्द्र सिंह को विश्वविद्यालय के कुलपति प्रो. रविशंकर सिंह पटेल अपने साथ वाराणसी से कार्यभार-ग्रहण के समय लेकर आये थे। यहां आते ही तत्काल उन्हें अपना ओएसडी बना लिया था। उनका चयन अम्बेडकर चेयर एवं प्रौढ़ एवं सतत शिक्षा विभाग में दो अकादमिक पदों पर हुआ है। उन्होंने भूगोल विषय में परास्नातक एवं पीएचडी की उपाधि प्राप्त की है। अंबेडकर चेयर जिसे उन्होंने ज्वाइन किया है और प्रौढ़ एवं सतत शिक्षा विभाग जिसमें वह प्रतीक्षा-सूची में है, उनमें से वह किसी भी विभाग में सेवा की योग्यता धारित नही करते हैं। वास्तव में उनकी नियुक्ति के लिए पहली बार अम्बेडकर चेयर में नियुक्ति के लिए अर्हता के नियमों को बदलकर अर्थशास्त्र, समाजशास्त्र एवं राजनीति विज्ञान विषयों में स्नातक उपाधि के साथ-साथ समाज-भूगोल एवं जनसंख्या विज्ञान जैसे नए विषयों को भी जोड़ दिया गया।

यह भी ध्यातव्य है कि डॉ. शैलेन्द्र सिंह की अर्हता इन विषयों में भी स्नातक या परास्नातक की नहीं है। समाज-भूगोल का स्नातक/परास्नातक स्तर पर अध्ययन उन्होंने महज एक प्रश्नपत्र के रूप में किया है, स्वतंत्र उपाधि के रूप में नहीं। वह नियुक्ति के वर्तमान पद पर चयन की अर्हता नहीं रखते हैं। विश्वविद्यालय द्वारा जारी विज्ञापन में रोस्टर निर्धारण के लिए उत्तर प्रदेश आरक्षण अधिनियम 1994 का अनुपालन नहीं किया गया है। रोस्टर रिक्तियों पर न लगा कर समस्त स्वीकृत पदों पर लगाया गया है तथा मनमाने ढंग से अपने उद्देश्यों को प्राप्त करने के लिए विभागों के नाम भी सुविधानुसार हिंदी तो कभी अंग्रेजी वर्णमाला क्रम के अनुसार ले लिये गए हैं।

Updated : 2 Jun 2022 12:20 PM GMT
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स्वदेश डेस्क

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