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फिल्मी व भोजपुरी गीतो की तर्ज पर गढ़े जा रहे है चुनावी स्लोगन

फिल्मी व भोजपुरी गीतो की तर्ज पर गढ़े जा रहे है चुनावी स्लोगन
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अयोध्या। चुनावों में पहले नारों की बड़ी भूमिका रही है। एक जमाना था जब एक नारे से पूरे चुनाव की फिजा बादल जाती थी। पार्टियां बैज , बैनर और स्टीकरो पर नारे छपवा कर लोगों मे बांटती थी। जो चर्चा का विषय बन जाती थी । बच्चे व जवान भिन्न भिन्न पार्टियों के बैज अपने शर्ट व कुर्तो पर लगाते थे। कुछ चुनावी नारे ऐसे थे जिनके सहारे कभी सत्ता की सीढ़ियां चढ़ने की कोशिश की गई थी। लेकिन आज समय बदल गया है न वह दमदार नारे रहे न ही बैज व स्टीकर जो घर घर पहुंचाए जाते थे । कुछ नारों ऐसे थे जो नेता से लेकर जनता के बीच काफी चर्चित रहे ।

कांग्रेस के नारे -

इस समय इनके बगैर यहां कोई चुनावी चर्चा पूरी नहीं होती थी। बात शुरू करते है। कांग्रेस के शासन काल की जो आपातकाल और नसबंदी अभियान के खिलाफ ये नारा काफी चर्चित हुआ।

"जमीन गई चकबंदी में, मकान गया हदबंदी में, द्वार खड़ी औरत चिल्लाए, मेरा मरद गया नसबंदी में।

जात पर न पात पर, इंदिरा जी की बात पर, मुहर लगाना हाथ पर।

जब तक सूरज चांद रहेगा, इंदिरा तेरा नाम रहेगा- 1984 में इंदिरा गांधी की हत्या के बाद कांग्रेस द्वारा दिया गया।

नारा ,जली झोपड़ी भागे बैल, यह देखो दीपक का खेल

कांग्रेस के खिलाफ नारे -

साठ के दशक में जनसंघ और कांग्रेस में नारों के जरिये खूब नोंकझोंक होती थी। जनसंघ का चुनाव चिह्न दीपक था जबकि कांग्रेस का चुनाव चिन्ह दो बैलों की जोड़ी थी।इस दीपक में तेल नहीं, सरकार बनाना खेल नहीं । जनसंघ के 'जली झोपड़ी भागे बैल यह देखो दीपक का खेल' नारे के जवाब में कांग्रेस का ये जवाबी नारा था, नसबंदी के तीन दलाल- इंदिरा, संजय, बंसीलाल।

1977 में इंदिरा के खिलाफ नारा, आकाश से नेहरू करें पुकार, मत कर बेटी अत्याचार- आपातकाल के खिलाफ दिया गया एक नारा। इसके बाद राजा नहीं फकीर है, देश की तकदीर है । वर्ष 1989 के चुनावों में वीपी सिंह को लेकर बना यह नारा काफी चर्चित रहा। देश की जनता भूखी है यह आजादी झूठी है।

- आजादी के बाद कम्यूनिस्ट नेताओं द्वारा दिया गया नारा। धन और धरती बंट के रहेगी, भूखी जनता चुप न रहेगी

-समाजवादियों और साम्यवादियों की ओर से 1960 के दशक में दिया गया नारा। देखो इंदिरा का ये खेल, खा गई राशन, पी गई तेल

– इंदिरा के गरीबी हटाओ नारे का उनके राजनीतिक विरोधियों ने इस नारे से जवाब दिया था। जगजीवन राम की आई आंधी, उड़ जाएगी इंदिरा गांधी

भाजपा-जनसंघ के नारे

- आपातकाल के दौरान एक नारा। इसके बाद सौगंध राम की खाते हैं हम मंदिर वहीं बनाएंगे। ये तो पहली झांकी है, काशी मथुरा बाकी है। रामलला हम आएंगे, मंदिर वहीं बनाएंगे .

सबको देखा बारी-बारी, अबकी बार अटल बिहारी – 1996 में भाजपा द्वारा दिया गया नारा।

अटल बिहारी बोल रहा है, इंदिरा शासन डोल रहा है। – भारतीय जनसंघ के दौर में उसका एक नारा।

अटल, आडवाणी, कमल निशान, मांग रहा है हिंदुस्तान – भाजपा द्वारा उसके शुरुआती दिनों में दिया गया नारा।

हर हाथ को काम, हर खेत को पानी, हर घर में दीपक, जनसंघ की निशानी


बसपा के नारे -

ठाकुर , बाभन, बनिया चोर, बाकी सब हैं डीएसफोर। तिलक ताराजू और तलवार, इनको मारो जूते चार – कांशीराम द्वारा दिए गए नारे।मिले मुलायम कांशीराम, हवा हो गए जयश्रीराम- 1993 में जब यूपी में सपा और बसपा ने मिलकर विधानसभा चुनाव लड़ा था तो भाजपा को टार्गेट करता हुआ ये नारा काफी चर्चित रहा । चलेगा हाथी उड़ेगी धूल, ना रहेगा हाथ, ना रहेगा फूल – बसपा का एक नारा। हाथी नहीं गणेश है, ब्रह्मा-विष्णु महेश है। चढ़ गुंडन की छाती पर मुहर लगेगी हाथी पर– बसपा द्वारा दिया गया एक नारा ।

सपा के नारे-

1989 के चुनाव मे नारा दिया था –जिसका नाम मुलायम है उसका जलवा कायम है। उसके बाद अखिलेश युग आया जिसमे इसी नारे को संशोधित किया।अखिलेश का जलवा कायम है जिसका बाप मुलायम है। अखिलेश भैया ,विकास का पहिया। उत्तर प्रदेश में चुनावी प्रचार चरम पर है। हर दिन आपको यहां पर नए-नए जुमले सुनने को मिल जाएंगे जो प्रचार वाहन है उससे फिल्मी या भोजपुरी गीतो की तर्ज पर प्रचार किया जा रहा है। समय बदला इस समय नेता फेसबुक , ट्यूटर सहित अन्य सोशल नेटवर्किंग के जरिए मतदाताओ को रिझा रहे है।

Updated : 23 Feb 2022 1:52 PM GMT
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स्वदेश डेस्क

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