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अयोध्या में केवल ‘आंदोलन’ नहीं, लोक और समाज के स्वप्न को पूरा कर रहे थे ‘कारसेवक’

मधुकर चतुर्वेदी

श्रीमद्जगतगुरु रामानुजाचार्य स्वामी श्री वासुदेवाचार्य विद्या भास्कर’ जी
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फाइल फोटो - श्रीमद्जगतगुरु रामानुजाचार्य 'स्वामी श्री वासुदेवाचार्य विद्या भास्कर’ जी

अयोध्या। इतिहास आज स्वयं किसी देवता के वेश में अयोध्याजी में उपस्थित है। अयोध्याजी में प्रभू श्रीरामलला छत्र-चमर से शोभयामान होकर अपने निज मंदिर में प्रवेश कर चुके हैं। सनातनी आस्था के शिखरों के साथ ‘श्रीरामलला’ का भव्य मंदिर बनकर तैयार हो गया है। तलवार के बल पर जिन लुटरों ने अयोध्याजी के वैभव को समाप्त करने का प्रयास किया, वह वैभव पांच सौ वर्षो बाद अयोध्या जी का सिंहद्वार बन खड़ा हो गया है। रामजन्मस्थान पर श्रीरामलला का मंदिर लोक और समाज का स्पप्न था और इस स्पप्न को पूरा करने के लिए लाखों भारतीयों ने अपना बलिदान दिया। इन बलिदानियों में कुछ तो प्रभू के निजधाम साकेत में बैठकर ‘पुण्यावाचन’ कर रहे होंगे, कुछ ऐसे भाग्यशाली हैं, जिन्होंने अयोध्या आंदोलन में सक्रिय रहकर अपने जीवन तक को दांव पर लगा दिया और आज पुनः श्रीरामलला के अयोध्या वैभव को अपनी आंखों से निहार रहे हैं। अयोध्या आंदोलन के ऐसे ही एक मील के पत्थर हैं ‘कौशलेश सदन’ अयोध्या जी के ‘श्रीमद्जगतगुरु रामानुजाचार्य स्वामी श्री वासुदेवाचार्य विद्या भास्कर’ जी। स्वामी जी ने ना केवल अयोध्या आंदोलन में लड़े बल्कि, उसे जीए भी। उनका योगदान अयोध्या की हर करवट में मौजूद है और आज वह वर्तमान अयोध्या के वैभव के साक्षी भी बन रहे हैं, ठीक ‘गीता’ के कर्मयोग की तरह ‘‘स यत्प्रमाणं कुरूते लोकस्तदनुवर्तते’।

अशोक सिंघल जी के कहने पर अयोध्या आंदोलन से जुड़े स्वामी जी

स्वामी विद्या भास्कर जी ने बताया कि वह 1 सितंबर 1985 को तब के विश्व हिंदू परिषद के महामंत्री अशोक सिंघल के कहने पर अयोध्या आंदोलन से जुड़े। अशोक सिंघल में उनकी बहुत आत्मीयता थी। अशोक जी ने उन्हें केंद्रीय मार्गदर्शक मंडल में रखा और बाद में रामजन्मभूमि मुक्ति यज्ञ समिति में उपाध्यक्ष बनाया। तब महंत अवैद्यनाथ जी अध्यक्ष थे। नृत्यगोपाल दास जी, रामचंद्र परमहंसदास जी भी उपाध्यक्ष थे। रामजन्मभूमि पुर्नरूद्धार समिति और मंदिर निर्माण समिति से भी जुड़े।

मारने वाले थक गए, पर कारसेवकों के कदम नहीं रूके

स्वामी जी बताते हैं कि 30 अक्टूबर 1990 का दिन अयोध्या आंदोलन की किताब का वह हिस्सा है, जिसमें राम के नाम पर बलिदान देने वालों में होड़ लगी हुई थी। पुलिस की गोलियां और लाठियां कम पड़ी लेकिन, कारसेवकों के कदम नहीं रूके। 30 अक्टूबर को कारसेवा, जेलभरो आंदोलन में भयंकर गोलीकांड़ हुआ। 30 अक्टूबर के तड़के ढ़ाई बजे से ही कारसेवक सरयू के तट पर जमा होना शुरू हो गए थे। स्वामी बताते हैं कि बक्सर का पुलपार करते 10 हजार कारसेवकों के जत्थे के साथ वह भी अयोध्या पहुंचे। रामदयाल जी अशोक सिंघल को साथ लेकर पहुंचे। अशोक जी पंजाबी वाला साफा बांधकर स्कूटर से पहुंचे। समर बहादुर जी भी साथ थे। मंदिर परिसर में गुंबद पर चढ़े कारसेवकों पर, मानव भवन तिराहे पर, सरयू पुल पर और हनुमान गढ़ी के सामने गली पर गोलियां चलीं और कारसेवकों को मारा गया। दिगंबर अखाड़े की ओर रामंचद्र परमहंस जी की गली में सबसे अधिक कारसेवक मारे गए। इस गोलीकांड के बाद यह तथ्य भी सामने आया कि मुलायम सिंह ने हिंदुओं के अलावा कुछ लोगों को पुलिस की वर्दी बांटी, जिससे बड़ी संख्या में कारसेवक मारे गए, यह बहुत भारी षडयंत्र था।


पुलिस ने गिरफ्तार किया और इलाहाबाद छोड़ा

स्वामी जी ने बताया कि 30 अक्टूबर की घटना के एक वर्ष पूर्व अयोध्याजी में महिला कारसेवकों ने एक सत्याग्रह निकाला। श्री संप्रदाय का होने के कारण मुझे इस सत्याग्रह का नेतृत्व करने को बोला गया। उस समय हमारे साथ चिन्मायनंद जी और शिवा सरस्वती जी भी थीं। पुलिस ने हमें गिरफ्तार किया। पुलिस हमें और चिन्मयानंद जी को एक ही एंबेसडर से इलाहाबाद ले आयी। हमने पुलिस से कहा कि हमें जेल ले चलो लेकिन, पुलिस ने बोला हमें आपको इलाहाबाद में छोड़ने का आदेश है। पुलिस ने हमें दारागंज स्थित संस्कृत महाविद्यालय में छोड़ दिया और चिन्मयानंद जी सिविल लाइंस स्थित अपने शिष्य के यहां चले गए। उस समय समाचार पत्रों में स्वामी विद्याभास्कर की जगह शंकराचार्य स्वामी वासुदेवानंद छप गया। शंकराचार्य वासुदेवानंद जी ने प्रसन्न होकर कहा कि ‘लड़े सिपाही और नाम सरदार का होए’..।

अशोक जी का संकेत पाकर मैं रंगमहल की छत पर कूदा और रामलला को उठा लाया

स्वामी जी ने बताया कि 6 दिसंबर 1992 में ढांचा विध्वंस के समय वह अशोक सिंघल के साथ थे। अपार भीड़ थी। ढांचे से कुछ दूरी पर एक कमरे की छत पर मंच बना था। वह कमरा आज भी सुरक्षित है। वहीं पर भानुप्रताप शुक्ल, आडवाणी, साध्वी ऋतंभरा, विजयाराजे सिंधिया, मुरली मनोहर जोशी, विनय कटियार आदि उपस्थित थे। ढांचे का एक हिस्सा ध्वस्त हो चुका था, तभी किसी ने आकर बोला कि सेना कब्जा करने आ रही है। अशोक जी ने कहा, यह तो बड़ी समस्या होगी, ढांचे में भगवान को सुरक्षित विराजमान कराना जरूरी है। अशोक जी का संकेत पाकर मैं एक भवन से दूसरे भवन में कूदते हुए ‘रंगमहल’ की छत पर कूदा। रंग महल के महंत जी ने कहा क्या...जगद्गुरूजी कारसेवा कर रहे हैं....हमने महंत जी से कहा...आप भी कारसेवा में आइए। हमने महंत जी से कहा जल्दी मंदिर खोलकर रामलला दीजिए। रामलला को लेकर हम राघवदास पुजारी और शंभूनाथ जी के साथ ढांचे में गए और रामलला विराजमान कर दिए।

राजमाता विजयाराजे सिंधिया ने साड़ी के पल्लू से पोंछा मुंह

स्वामी जी ने बताया कि ढांचे में श्रीरामलला को विराजमान कराते समय ऊपर से मीरबांकी का पत्थर गिरा और हम मिट्टी-चूने में सन गए। शंभूनाथ जी ने कहा..स्वामी जी दब गए...हमने कहा....जी शंभूनाथ जी...हम जिंदा हैं....चलो जल्दी बाहर निकलो। मंच के पास पहुंचे। मुझे मिट्टी और चूने में सना देख राजमाता ने अपने साड़ी के पल्लू से मेरा चेहरा साफ किया...हमने राजमाता से कहा कि आप जल्द ही चंदन भी लगाएंगी। राजमाता की आंखों में आंसू भर आए और कहा कि क्या वह दिन देखने के लिए मैं जिंदा रह पाउंगी। तभी एक कारसेवक ढांचे में रखी रामलला की एक मूर्ति ले आया। अशोक जी बोले...मूर्ति क्यों ले आए...हमने अशोक जी कहा...अब तो ढांचा पूरा गिरकर ही रहेगा।

ढांचा गिरने बाद जमीन को किया समतल, विराजमान कराए रामलला

स्वामी जी ने बताया कि ढांचा गिरने के बाद आचार्य धर्मेंद्र ने कहा कि स्वामी जी जमीन को समतल करना है, सब्बल आदि चाहिए। मैं कुछ कारसेवकों के साथ दिगंबर अखाड़े में महंत परमहंस जी के पास पहुंचा और कहा महंत जी सब्बल चाहिए। महंत जी बोले क्या...‘नवा मुसलमान प्याजे...प्याजे खाए’...। जाओ तुम लोग, सब हो गया...सो जाओ। हम महंत जी प्रणाम करके धर्मदास जी के पास आ गए और सब्बल आदि की व्यवस्था की। फिर जमीन को रात में समतल किया और रामलला को विराजमान कर वापस आ गए।

कारसेवकों की सेवा के लिए उठ गए थे हजारों हाथ

स्वामी जी ने बताया कि आंदोलन के समय अयोध्या समेत 100 किमी के क्षेत्र तक में गांव-गांव में कारसेवकों के लिए स्थानीय लोग भोजन आदि की चिंता करते थे। रोज भंडारे होते थे। स्वयं हमारे आश्रम ‘कौशलेश सदन’ में रोजना 25 हजार लोगों के भोजन की व्यवस्था होती है। पीवी नरसिंह राव के गांव से आए कारसेवक कौशलेश सदन में ही भोजन करते थे। हमारे यहां कुंभ के बर्तन, जिसमें एक बार में एक क्विंटल दाल बनती है, वह सभी निकाल दिए। बाबा सत्यनारायण मौर्य यह सब देखकर प्रसन्न होते थे।

बाला सहाब देवरस जी ने कहा था-25 साल कसकर मेहनत करनी पड़ेगी

अयोध्या आंदोलन को धार देने के लिए स्वामी विद्याभास्कर जी ने 500 से अधिक सभाओं को संबोधित किया। स्वामी जी ने बताया कि गांव-गांव शिलापूजन के लिए जाते थे। अयोध्या के अलावा पंजाब के फिरोजपुर, कर्नाटक के बादलकोट, बिहार में सबसे अधिक सभाएं कीं। श्याम जी गुप्त भी साथ जाते थे। उस समय एक हर साधु का एक ही ध्येय वाक्य था-‘विश्व की कोई भी ताकत अयोध्या में राम मंदिर बनने से रोक नहीं सकती’। स्वामी जी बताते हैं कि रामटेकरी, नागपुर में एकात्म यात्रा में जब संबोधन दे रहे थे, तभी बारिश हुई लेकिन, बारिश में भी स्वयंसेवक बैठे रहे। बाला सहाब देवरस जी भी थे। हमने कहा कि राम ने प्रतिज्ञा ली थी कि सिंघासन पर बाद में बैठूंगा, पहले भारत से आतंकवाद को समाप्त करूंगा। उस समय भारत में घुसपैंठ का सरगना रावण था। उसने दक्षिण के राजा बालि से दोस्ती की और भारत में खर-दूषन सहित 14 हजार राक्षसों की घुसपैठ करायी। श्रीराम ने रावण के वध से पहले उसके भेजे राक्षसों का वध कर भारत भूमि को सुरक्षित बनाया। आज भी भारत में कुछ सफेदपोश मानवाधिकार के नाम पर आतंकवादियों की वकालत करते हैं। यह सुनकर बालासहाब देवरस जी अभिभूत हो गए। उन्होंने तब कहा था कि आने वाले 25 वर्षो तक ‘राम’ के लिए कसकर मेहनत करनी पड़ेगी।

अयोध्या आंदोलन के उत्साह को भविष्य के लिए बचाकर रखना जरूरी है

स्वामी जी ने बताया कि अयोध्या आंदोलन को लेकर बच्चों, माताओं, संतों और आमलोगों ने इतना उत्साह था कि जिसका वर्णन करना भी बहुत मुुश्किल है। ‘बच्चा-बच्चा राम का, जन्मभूमि के काम का’। माताओं में जोश इतना था कि देशभर में नारा गूंज उठा कि ‘हम भारत की नारी हैं, खून नहीं चिंगारी हैं, ‘नगर-नगर से डगर-डगर से चली शिलाराम की’, ‘बलिदानों की होड़ लगेगी, वहीं बनेगा मंदिर फिर से श्रीराम का’ आदि नारों से देश गुंजायमान हो उठा। स्वामी ने कहा कि अयोध्या आंदोलन के इस उत्साह को भविष्य के लिए बचाकर रखना बहुत जरूरी है।

अयोध्या आंदोलन के लिए दिए थे ‘मुर्हुत’

अयोध्या आंदोलन के हर चरण के लिए अशोक जी वैदिक मान्यताओं का ध्यान रखते थे। स्वामी विद्याभास्कर जी ने बताया कि अशोक जी के कहने पर उन्होंने दो मुर्हुत दिए थे। पहला 9 नवंबर 1989 को कामेश्वर चैपाल द्वारा किया गया शिलापूजन कार्यक्रम और दूसरा कारसेवा कब प्रारंभ होगी, इसका मुर्हुत भी निकालकर अशोक जी को दिया।

22 जनवरी का प्राण-प्रतिष्ठा का शास्त्रोक्त सुंदर मुहुर्त है

स्वामी विद्याभास्कर जी ने कहा कि 22 जनवरी को रामलला की प्राण-प्रतिष्ठा का सुंदर मुर्हुत है। आज कुछ लोग 22 जनवरी के मुर्हुत पर प्रलाप कर रहे हैं, उनकी स्थित ठीक वैसे ही है, जैसे ‘खिययानी बिल्ली खंभा नोचे’। इस आंदोलन में लाखों रामभक्तों का बलिदान हुआ। भाजपा की चार सरकारें भी गिरीं। जिन लोगों ने काले अध्याय लिखे, उनके लिए यह अवसर था कि वह अपने पापों को धो लेते। अयोध्या आते और श्रीराम जी दर्शन करते। अब तो वह अवसर भी चला गया।

अयोध्याजी का राम मंदिर राष्ट्रमंदिर है

स्वामी विद्याभास्कर जी ने कहा कि राम मंदिर राष्ट्रमंदिर है। यह मंदिर समस्त मानवीय बिंदुओं से संयुक्त है। भगवान राम राष्ट्र के प्राण, ऊर्जा, पुण्य, मापदंड और संस्कृति है। श्रीराम विश्व के मार्गदर्शक, मानवीय जाति के आदर्श हैं। आदर्श किसे कहते हैं? दर्पण को। दर्पण हमारे श्रंगार में सामग्री तो नहीं देता। श्रंगार हम खुद करते हैं, पर दर्पण देखकर हम संतुष्ट होते हैं कि हम जैसा बनना चाहते हैं, ऐसे बने हैं या नहीं। इसलिए हम भगवान रामरूपी दर्पण के सामने जाकर अपनी मानवता का निर्धारण कर सकते हैं। भगवान राम संवाद में विश्वास करते हैं। सीता हरण के बाद श्रीराम ने हनुमान और अंगद के माध्यम से रावण से संवाद स्थापित किया। राम पारिवारिक सम्बंधों के आदर्श हैं। इच्छवाकु वंश ने संपूर्ण पृश्वी पर राज्य किया, इसलिए राम संूपर्ण पृश्वी के हैं और भारत पूरी पृश्वी का मार्गदर्शक है।

अग्नि रूपी नरेंद्र मोदी के कार्य को वायु रूपी योगी आगे बढ़ा रहे हैं

स्वामी जी ने कहा कि राम के लिए हमारे प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने तपस्या की है। हमने नासिक में उनकी साधना देखी भी है। ‘प्राणापानौ समौ कृत्वा नासाभ्यन्तरचारिणौ’। प्राण और अपान राम के राज्य में समान हो चुके थे, यह योग का सम्बंध है। ‘प्राण मोदी हैं, तो अपान योगी हैं’। जैसे अग्नि जलती है और वायु का झोंका लगते ही वह अग्नि दो गुना बढ़ जाती है। ठीक इसी प्रकार अग्नि रूपी ‘नरेंद्र मोदी’ के कार्य को वायु रूपी योगी ‘आदित्यनाथ’ कई गुना बढ़ा रहे हैं।

Updated : 24 Jan 2024 11:55 AM GMT
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