इजराइल ने ईरान पर क्यों किया इतना भीषण हमला?: परमाणु ठिकानों पर 'ऑपरेशन राइजिंग लायन', मिडिल ईस्ट में युद्ध जैसे हालात

मध्य पूर्व एक बार फिर युद्ध की दहलीज़ पर खड़ा है। इज़राइल ने शुक्रवार को ईरान के परमाणु और सैन्य ठिकानों पर एकतरफा हमला कर 'ऑपरेशन राइजिंग लायन' की शुरुआत की। यह हमला ऐसे समय में हुआ है जब वैश्विक मंच पर ईरान के परमाणु कार्यक्रम को लेकर चिंता लगातार गहराती जा रही थी।
इज़राइली प्रधानमंत्री बिन्यामिन नेतन्याहू ने खुद इस सैन्य अभियान की पुष्टि की और कहा कि यह ऑपरेशन तब तक जारी रहेगा जब तक ईरान के परमाणु खतरे को पूरी तरह खत्म नहीं कर दिया जाता। दूसरी ओर, ईरान ने इस हमले को 'जायनिस्ट आक्रोश' करार देते हुए बदला लेने की चेतावनी दी है।
क्यों किया गया हमला?
प्रधानमंत्री नेतन्याहू के अनुसार, पिछले कुछ महीनों में ईरान ने यूरेनियम संवर्धन की रफ्तार को इस स्तर तक बढ़ा दिया है कि वह बहुत कम समय में परमाणु हथियार बना सकता है। उन्होंने कहा, “अगर ईरान को रोका नहीं गया, तो वह कुछ महीनों या एक साल से भी कम समय में परमाणु बम बना सकता है, यह इजराइल के अस्तित्व के लिए सीधा खतरा है।”
Moments ago, Israel launched Operation “Rising Lion”, a targeted military operation to roll back the Iranian threat to Israel's very survival.
— Benjamin Netanyahu - בנימין נתניהו (@netanyahu) June 13, 2025
This operation will continue for as many days as it takes to remove this threat.
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Statement by Prime Minister Benjamin Netanyahu: pic.twitter.com/XgUTy90g1S
इसी खतरे के जवाब में इज़राइल ने शुक्रवार सुबह 'ऑपरेशन राइजिंग लायन' के तहत ईरान के दक्षिण में स्थित नतांज शहर में प्रमुख परमाणु संवर्धन केंद्रों पर हमला किया।
हमले की जद में कौन-कौन आया?
ईरान के सरकारी मीडिया के मुताबिक, इज़राइली मिसाइलों ने केवल सैन्य ठिकानों को ही नहीं, बल्कि तेहरान और अन्य शहरों के रिहायशी इलाकों को भी निशाना बनाया। इस हमले में बच्चों समेत कई नागरिकों की मौत की खबर है। ईरानी सेना की ताकत माने जाने वाले रिवॉल्यूशनरी गार्ड के हेडक्वार्टर पर भी हमला किया गया, जिसमें चीफ हुसैन सलामी के मारे जाने की पुष्टि की जा रही है।
इसके अलावा, दो वरिष्ठ परमाणु वैज्ञानिक, फिरेदून अब्बासी और मोहम्मद मेहदी तेहरानची, भी इस हमले में मारे गए हैं। फिरेदून अब्बासी पर 2010 में भी जानलेवा हमला हुआ था जिसमें वह बच गए थे।
ईरान की चेतावनी: "सज़ा मिलेगी"
ईरान के सर्वोच्च नेता अयातुल्लाह अली ख़ामेनेई ने इस हमले की तीखी आलोचना की और कहा, “ज़ायनिस्ट सरकार को इसकी कड़ी सज़ा भुगतनी होगी। हमारी सेना उन्हें जवाब दिए बिना नहीं छोड़ेगी।”
ईरानी सेना के प्रवक्ता अबोलफजल शेकारची ने भी स्पष्ट शब्दों में कहा, “इज़राइल और अमेरिका दोनों को इसकी भारी कीमत चुकानी होगी।”
अमेरिका ने पल्ला झाड़ा, लेकिन समर्थन किया
इसराइली हमले के बाद अमेरिका की प्रतिक्रिया भी सामने आई। विदेश मंत्री मार्को रुबियो ने कहा कि अमेरिका इस हमले में शामिल नहीं है और उसकी प्राथमिकता मिडिल ईस्ट में तैनात अमेरिकी सैनिकों की सुरक्षा है। हालांकि, उन्होंने इज़राइल की कार्रवाई का समर्थन करते हुए कहा कि “यह आत्मरक्षा में किया गया जरूरी कदम है।”
राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने अभी तक इस मुद्दे पर कोई औपचारिक बयान नहीं दिया है, लेकिन अमेरिका की भूमिका पर सस्पेंस बना हुआ है।
हमले की पहले से थी आहट
विश्लेषकों के अनुसार, यह हमला अचानक नहीं हुआ है। वॉल स्ट्रीट जर्नल और बीबीसी की रिपोर्टों में पहले से यह संभावना जताई जा रही थी कि अगर ईरान परमाणु समझौते को लेकर अमेरिकी प्रस्तावों को नकारता है, तो इज़राइल हमला कर सकता है।
नेशनल सिक्योरिटी काउंसिल के पूर्व अधिकारी जावेद अली ने भी कहा था कि अमेरिका द्वारा इराक में दूतावास आंशिक रूप से खाली करना इसी ओर संकेत करता है कि हमला लगभग तय था।
इज़राइल द्वारा घोषित ऑपरेशन अभी जारी है और नेतन्याहू ने स्पष्ट कर दिया है कि ये हमले तब तक चलते रहेंगे जब तक परमाणु खतरा समाप्त नहीं होता। इस बीच, ईरान ने भी जबावी कार्रवाही करना शुरू कर दिया है।
हमले के बाद ईरान ने भी इजरायल पर 300 से अधिक ड्रोन दागे, हालांकि इससे इजरायल को अब कोई नुकसान नहीं पहुंचा है।
