वट सावित्री व्रत 2025 आज: सालों बाद बन रहा ये दुर्लभ संयोग, जानिए शुभ मुहूर्त, पूजन विधि और कथा

सालों बाद बन रहा ये दुर्लभ संयोग, जानिए शुभ मुहूर्त, पूजन विधि और कथा
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आज यानी सोमवार को ज्येष्ठ मास की अमावस्या तिथि है। इस दिन वट सावित्री पर्व मनाया जा रहा है। सोमवती अमावस्या होने के कारण इसका महत्व और भी अधिक हो गया है। सनातन धर्म में मान्यता है कि इस दिन व्रत रखने से दांपत्य जीवन में खुशिया आती हैं। इस दिन महिलाएं अपने पति की लंबी उम्र के लिए वट वृक्ष की पूजा करती हैं। इसे करवा चौथ के समान ही माना जाता है।

वट सावित्री व्रत का शुभ मुहूर्त

ज्येष्ठ मास के कृष्ण पक्ष की अमावस्या तिथि आज यानी 26 मई को सुबह 12 बजकर 11 मिनट से शुरू हो गई है जबकि इसका समापन 27 मई को सुबह 8 बजकर 31 मिनट पर होगा। ऐसे में व्रत आज रखा जाएगा। अभिजीत मुहूर्त जो कि सुबह 11 बजकर 54 मिनट से दोपहर 12 बजकर 42 मिनट तक रहेगा। इस बीच पूजा करना बेहद शुभ माना जाता है।

बन रहा ये दुलर्भ संयोग

वट सावित्री व्रत में इस बार भरणी भक्षत्र, शोभन योग और अतिगण्ड योग बन रहा है। इस बार आज के दिन ही सोमवती अमावस्या भी है, जिससे वट सावित्री का व्रत और भी महत्वपूर्ण हो जाता है। सोमवती समावस्या के दिन चंद्रमा अपनी उच्च राशि वृषभ में संचार करता है जो कि शुभ संकेत है।

पूजा विधि

  • सबसे पहले वट वृक्ष के पास सावित्री, सत्यवान और यमराज की प्रतिमा या फोटो रख लें।
  • अब वट के जड़ में जल डालकर पवित्र कर दें फिर फूल- धूप और मिठाई से पूजा करें।
  • कच्चा सूत(सफेद धागा) लेकर वट के तने में लपेटते हुए सात बार परिक्रमा करें।
  • फिर हाथ में भीगा चना या चावल लेकर कथा सुनें।
  • अंत में भीगा चना, वस्त्र और कुछ पैसे देकर सास से आशीर्वाद लें।

सावित्री व्रत कथा

पौराणिक कथा के अनुसार भद्रदेश नामक राज्य में अश्वपत राजा के घर सावित्री का जन्म होता है। उसकी शादी वनवासी राजा द्युमत्सेन के पुत्र सत्यवान से हो जाती है। सत्यवान एक दिन जंगल से लकड़िया काटकर सावित्री के गोद में लेट गए। तभी यमराज उसे लेने आए, तब सावित्री चिंतित होकर यमराज के पीछे - पीछे जाने लगी और अपनी पति को वापस जिंदा करने की माँग करने लगी। यमराज ने समझाया कि ये नियम के विरूध्द है। हालांकि सावित्री के बुध्दिमानी और दृढ़ संकल्प को देखने हुए तीन वरदान दिए। सावित्री ने पहले वरदान में ससुर का राज्य मांगा फिर सास ससुर की रोशनी और अंत में अपने लिए सौ पुत्र की माँग कर दी। यमराज को समझ आ गया कि पुत्र तो बिना पति के संभव नहीं है और उन्होंने सत्यवान को जीवित कर दिया।

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