तानसेन की समाधि पर धार्मिक गतिविधियों की अनुमति नहीं: हाईकोर्ट ने कहा - "सांस्कृतिक विरासत का संरक्षण सर्वोपरि"

ग्वालियर। मध्यप्रदेश हाईकोर्ट ने ग्वालियर स्थित सूफी संत हज़रत शेख़ मोहम्मद गौस और संगीत सम्राट तानसेन की मजार परिसर में धार्मिक या सांस्कृतिक गतिविधियों की अनुमति देने से इनकार कर दिया है। कोर्ट ने इसे राष्ट्रीय महत्व की धरोहर बताते हुए कहा कि स्मारक की मौलिकता और गरिमा बनाए रखना आवश्यक है।
न्यायमूर्ति आनंद पाठक और न्यायमूर्ति हिर्देश की खंडपीठ ने हाल ही में एक याचिका को खारिज करते हुए कहा कि ऐसी गतिविधियां परिसर को क्षति पहुंचा सकती हैं, जो ‘राष्ट्रीय क्षति’ के समान होगी।
क्या था मामला
यह याचिका सैयद सबला हसन ने दायर की थी, जिन्होंने खुद को शेख़ मोहम्मद गौस का सज्जादा नशीन (उत्तराधिकारी) बताते हुए दावा किया कि पिछले 400 वर्षों से वहां धार्मिक आयोजन होते रहे हैं। 1962 में भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण (ASI) द्वारा इसे संरक्षित घोषित कर सभी गतिविधियों पर रोक लगा दी गई थी।
कोर्ट की टिप्पणी
कोर्ट ने कहा कि यह स्मारक केवल धार्मिक स्थल नहीं, बल्कि ऐतिहासिक और सांस्कृतिक धरोहर है। संविधानिक मूल्यों को प्राथमिकता देते हुए इसे मूल स्वरूप में सुरक्षित रखना ज़रूरी है। निजी परंपराओं के आधार पर किसी को छूट नहीं दी जा सकती।
तानसेन की विरासत
कोर्ट ने स्मारक में स्थित तानसेन की समाधि का विशेष उल्लेख करते हुए कहा कि वे अकबर के नवरत्नों में शामिल थे और ध्रुपद शैली के महान साधक माने जाते हैं। इस धरोहर का संरक्षण पूरे देश की जिम्मेदारी है।
एएसआई और प्रशासन को निर्देश
कोर्ट ने भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण और जिला प्रशासन को स्मारक की ऐतिहासिकता, संरचना और गरिमा के संरक्षण में कोई कोताही न बरतने के निर्देश दिए हैं। अदालत ने स्पष्ट किया कि संरक्षण कानून लागू होने के बाद किसी भी धार्मिक या पारंपरिक आयोजन की अनुमति नहीं दी जा सकती। यह धरोहर पूरे देश की साझा संपत्ति है और इसका संरक्षण सर्वोच्च प्राथमिकता होनी चाहिए।
