बेंगलुरु भगदड़: जीत का जश्न मौत के मातम में बदलने के सबक

Bengaluru Stampede
गिरीश उपाध्याय: रॉयल चैलेंजर्स बेंगलुरु की पहली आईपीएल ट्रॉफी ने पूरे कर्नाटक को जश्न में डुबो दिया। यह जीत 18 साल के लंबे इंतजार के बाद आई थी, और स्वाभाविक था कि लोग इसे यादगार बनाना चाहते थे लेकिन अफसोस, यह जश्न इतिहास में गौरव की नहीं, गम की तस्वीर के रूप में दर्ज हो गया। चिन्नास्वामी स्टेडियम के बाहर भगदड़ में 11 लोगों की मौत और दर्जनों की गंभीर चोटें इस बात की गवाही हैं कि प्रशासन की लापरवाही कितनी भयानक कीमत वसूलती है।
यह बात मंगलवार की रात अहमदाबाद में ही साफ हो गई थी कि विराट कोहली के विराट प्रदर्शन से रॉयल चैलेंजर्स की ऐतिहासिक जीत के बाद बेंगलुरु में लाखों की भीड़ उमड़ेगी। लेकिन आयोजक और सरकार दोनों ने इस पर ध्यान नहीं दिया। प्रशासनिक अमला और पुलिस व्यवस्था पूरी तरह नाकाम साबित हुई। और अगर सुरक्षा को लेकर सरकार गंभीर थी, तो फिर आयोजन स्थल पर ऐसी अराजकता क्यों फैली? क्या पुलिस बल पर्याप्त था? क्या आपातकालीन चिकित्सा सेवाएं मौके पर मौजूद थीं? घटनास्थल बता रहा है कि ऐसा कुछ नहीं था।
मुख्यमंत्री सिद्धारमैया का यह कहना कि “कोई इतनी भीड़ की उम्मीद नहीं कर रहा था” अस्वीकार्य है। एक मुख्यमंत्री की जिम्मेदारी सिर्फ बयान देना नहीं होती, बल्कि हालात को भांपकर समय रहते ठोस कदम उठाना होता है। अगर सरकार को अंदेशा था और खुले वाहन में निकलने वाले विजय जुलूस को रद्द कर दिया गया था, तो फिर चिन्नास्वामी स्टेडियम में कार्यक्रम की अनुमति क्यों दी गई? यह विरोधाभास ही बताता है कि प्रशासन ने खतरे को समझा जरूर, पर संभालने की तैयारी नहीं की।
घटना को लेकर आरोप-प्रत्यारोप की रस्म अदायगी शुरू हो गई है। सरकार ‘जांच’ की बात कर रही है। लेकिन क्या कोई भी जांच उन परिवारों को न्याय दिला सकेगी जिन्होंने अपनों को इस भीड़ की क्रूरता में खो दिया? इस हादसे ने यह भी उजागर किया है कि हमारे देश में भीड़ प्रबंधन आज भी केवल ‘कागजी रणनीति’ तक सीमित है। चाहे वह धार्मिक आयोजन हो, राजनीतिक रैली हो या खेल से जुड़ा उत्सव, जहां भी भीड़ उमड़ती है, वहां प्रशासन हाथ मलते हुए पीछे रह जाता है।
यह घटना प्रशासनिक संवेदनहीनता की पराकाष्ठा है। सवाल यह नहीं कि कितने लोग मरे, सवाल यह है कि उनकी मौत टाली जा सकती थी, अगर सरकार और पुलिस समय रहते जाग जाती। सवाल यह भी है कि क्या किसी की जवाबदेही तय की जाएगी? या हर बार की तरह कागजी जांच और अफसोस की रस्म के बाद यह मामला भी भुला दिया जाएगा?
रॉयल चैलेंजर्स ने अपनी पहली ट्रॉफी जरूर जीत ली, लेकिन कर्नाटक सरकार भीड़ नियंत्रण और नागरिक सुरक्षा की परीक्षा में फेल हो गई। अब वक्त है कि हम इस तरह की घटनाओं को ‘दुर्घटना’ कहकर टालना बंद करें। सरकारें ‘सुरक्षा’ को सिर्फ औपचारिकता नहीं, प्राथमिकता मानें।
एक विजेता टीम के सम्मान में जश्न से ज्यादा जरूरी है नागरिकों की जान की रक्षा। वरना फिर किसी जीत पर कोई मातम होगा और फिर फाइल में दफना देने के लिए कोई जांच करवा ली जाएगी। वैसे एक बात लोगों को भी समझनी होगी कि ऐसे हादसों का शिकार होने से कैसे बचना है। जहां जान साफ साफ जोखिम में नजर आ रही हो वहां जुनून में आकर हम मौत को न्योता दें यह कहां की समझदारी है?