Jageshwarnath Temple: मध्य प्रदेश में स्थित है 13वां ज्योतिर्लिंग, जहां स्वयं प्रकट हुए थे भगवान भोलेनाथ, पुराणों में भी मिलता का जिक्र

मध्य प्रदेश में स्थित है 13वां ज्योतिर्लिंग, जहां स्वयं प्रकट हुए थे भगवान भोलेनाथ, पुराणों में भी मिलता का जिक्र
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जागेश्वर नाथ का उल्लेख शिव महापुराण और स्कंद पुराण में मिलता है। यहां गुरु पूर्णिमा से ही भक्तों की भीड़ उमड़ने लगती है।

भगवान भोलेनाथ का प्रिय महीना सावन शुरु होने वाला है। सावन में शिव मंदिरों में भीड़ बढ़ जाती है। ऐसे में हम मध्य प्रदेश के एक ऐसे मंदिर के बारे में बताने जा रहे हैं, जहां गुरु पूर्णिमा से ही भक्तों की भीड़ उमड़ने लगती है। लोगों की आस्था इस मंदिर से इतनी ज्यादा है कि इसे 13वें ज्योतिर्लिंग की संज्ञा भी प्राप्त है। कहा जाता है कि मंदिर में विराजमान भगवान शिव यहां खुद प्रकट हुए थे। मध्य प्रदेश के दमोह में बने इस मंदिर का उल्लेख पुराणों में भी मिलता है।

बांदकपुर के जागेश्वर नाथ भगवान का मंदिर

मध्य प्रदेश के बुंदेलखंड क्षेत्र के दमोह जिले में एक बांदकपुर नामक स्थान है, जहां जागेश्वर नाथ भगवान का मंदिर स्थित है। जबलपुर से ये 133 किलोमीटर दूर है। दमोह जिले से महज 14 किलोमीटर दूर इस मंदिर में आप सड़क के द्वारा भी जा सकते हैं। हालांकि हालांकि बांदकपुर में एक रेल स्टेशन है, पैसेंजर ट्रेनों के अलावा कुछ एक्सप्रेस ट्रेन भी रुकती है।

1772 में प्रकट हुआ था शिवलिंग

जागेश्वरनाथ धाम मंदिर का इतिहास काफी पुराना बताया जाता है। कहते हैं कि यहां के विशाल जंगली क्षेत्र में शिवलिंग स्वयं प्रकट हुआ था। यही कारण है कि इसे स्वयंभू (प्राकृतिक रूप से उत्पन्न) कहा जाता है। हालांकि यहां के मंदिर का निर्माण साल 1711 में दीवान बालाजी राव चाँदोरकर ने कराया था।

पुराणों में मिलता है उल्लेख

स्थानीय पुरोहितों और धर्मग्रंथों के अध्ययनकर्ताओं के अनुसार, जागेश्वर नाथ का उल्लेख शिव महापुराण और स्कंद पुराण में भी मिलता है। इन ग्रंथों में वर्णित है कि एक समय जब संसार में पाप और अधर्म का बोलबाला था, तब भगवान शिव ने स्वयं इस स्थल पर प्रकट होकर अपने तेज से पृथ्वी को पावन किया। यह स्थल तब से शिवभक्तों के लिए एक तपस्थली के रूप में प्रसिद्ध हो गया। जगतगुरु शंकराचार्य ने भी अपने टीका में बांदकपुर धाम का उल्लेख किया है। कहा जाता है कि जब भगवान राम माता सीता की खोज करते हुए दंडकारण्य की ओर जा रहे थे, तब उन्होंने यहीं पर भगवान भोलेनाथ की पूजा अर्चना की थी।

माता पार्वती की भी है मंदिर

जागेश्वरनाथ मंदिर से महज 31 मीटर की दूरी पर सामने माता पार्वती का मंदिर है, जिसकी प्राण-प्रतिष्ठा सन 1844 ई में हुई थी। मंदिर के गर्भस्थल स्थल में जागेश्वर नाथ महादेवजी के सामने माता पार्वती की मूर्ति इस प्रकार से विराजमान है कि माता सीता की दृष्टि सीधा जागेश्वरनाथ जी महादेव पर पड़ती है। माता सीता कि यह मूर्ति प्रसिध्द संगमरमर की बनी हुई है।

चमत्कारी जल कुंड

मंदिर के समीप ही एक प्राचीन जलकुंड है, जिसे इमरती कहते हैं। इसी जलकुंड का पवित्र जल भगवान भोलेनाथ को चढ़ाया जाता है । कहा जाता है कि इस कुंड का पानी आज तक खाली नहीं हुआ। यहां परिसर में रामजानकी मंदिर, मारूति नंदन मंदिर, नर्मदा, लक्ष्मी नारायण मंदिर, पश्चिम में राधा कृष्ण मंदिर भी है।

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