अंतर्राष्ट्रीय योग दिवस: दादा ने जगाई जल योग की अलख, पोते को बना गए ‘बाल जलयोगी’...

दादा ने जगाई जल योग की अलख, पोते को बना गए ‘बाल जलयोगी’...
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अमन शुक्ला, सतना। दुनिया में अनगिनत लोग आते हैं और चले जाते हैं, लेकिन कुछ लोग ऐसे भी होते हैं जो अपने पीछे परंपरा, साधना और प्रेरणा की एक ऐसी विरासत छोड़ जाते हैं, जो आने वाली पीढ़ियों को दिशा देती है। ऐसा ही नाम है स्व. लक्ष्मी यादव का, जिन्होंने सतना शहर में जल योग की शुरुआत की थी। इन्हें यहां लोग ‘भाई’ के नाम से जानते थे।

जल के भीतर योग की साधना को जीवन का मिशन बनाने वाले स्व. यादव अब हमारे बीच नहीं हैं, लेकिन उन्होंने इस दुर्लभ परंपरा की विरासत अपने 7 वर्षीय पोते आर्य यादव के हाथों में सौंप दी है। आज आर्य न सिर्फ जल के भीतर योग करता है, बल्कि बाल जलयोगी के रूप में पहचान बना चुका है।

दादा की परंपरा, पोते की प्रेरणा

स्व. लक्ष्मी यादव ने मात्र 14 वर्ष की उम्र से जल योग की साधना प्रारंभ की थी। वे करीब 6 फीट गहरे पानी में भी सहजता से कठिन योगासन कर लिया करते थे। उनका कहना था कि ‘जल में किया गया योग मन और शरीर दोनों को शांति और संतुलन देता है।’

उनकी इसी विरासत को आत्मसात करते हुए पोता आर्य अब जल योग को परंपरा बना रहा है। केवल तीन वर्ष की उम्र से आर्य ने जलासन सीख लिए हैं, जिनमें जलासन, शवासन और प्राणायाम शामिल हैं। आर्य न केवल स्वयं साधना कर रहा है, बल्कि अपने साथियों को भी इसके लाभ समझाकर प्रेरित कर रहा है।

पानी में तिरंगा थामे योगासन

आर्य ने हाल ही में जल में योगासन की एक मुद्रा में बैठकर हाथ में तिरंगा लहराया। यह दृश्य जिसने भी देखा, देखते रह गया। तिरंगे के साथ योग करते हुए उसकी यह छवि देशभक्ति और अध्यात्म का अद्भुत संगम है। आर्य का यह योग केवल अभ्यास नहीं, बल्कि भावनात्मक प्रेरणा भी है।


योग की नई पीढ़ी का जन्म

आर्य की इस साधना ने यह सिद्ध कर दिया कि परंपराएं यदि सही हाथों में सौंपी जाएं, तो वे युगों तक जीवित रहती हैं। दादा ने जिस आग को जलाया था, वह अब बालक आर्य की भीतरी ऊर्जा बनकर जल रही है। आज जब दुनिया आधुनिकता की दौड़ में जड़ों से कट रही है, ऐसे में बालक आर्य का यह साधना न केवल एक विरासत को जीवित रखे हुए है, यह आने वाली पीढ़ियों के लिए एक शानदार संदेश भी है।

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