आजादी के लिए लड़ता बलूचिस्तान: नेहरू की इस एक गलती की वजह से भारत के हाथ से निकला बलूचिस्तान…

नेहरू की इस एक गलती की वजह से भारत के हाथ से निकला बलूचिस्तान…
X

बलूचिस्तान एक ऐसा इलाका है, जो लंबे समय से पाकिस्तान के कब्जे में है, लेकिन यहां के लोगों की पाकिस्तान से कभी नहीं बनी। हाल ही में 10 मार्च को बलूचिस्तान में एक बड़ा घटनाक्रम सामने आया, जब बलूच लिबरेशन आर्मी (BLA) ने जाफर एक्सप्रेस ट्रेन को हाईजैक कर लिया। इस घटना ने बलूचिस्तान के पुराने संघर्ष और इतिहास को फिर से चर्चा में ला दिया है।

कैसे जाफर एक्सप्रेस ट्रेन हुई हाईजैक?

- 10 मार्च को बलूच लिबरेशन आर्मी (BLA) के लड़ाकों ने क्वेटा से पेशावर जा रही जाफर एक्सप्रेस ट्रेन पर हमला किया।

- आतंकियों ने पहले रेलवे ट्रैक पर बम धमाका किया, जिससे ट्रेन रुक गई।

- इसके बाद उन्होंने ट्रेन को एक सुरंग के अंदर रोक लिया और कई पाकिस्तानी सैनिकों को मार डाला।

- हमलावरों ने करीब 400 यात्रियों को बंधक बना लिया।

- BLA का कहना है कि वे बलूचिस्तान की आजादी के लिए लड़ रहे हैं और पाकिस्तान सरकार से अपने लोगों को रिहा करने की मांग कर रहे हैं।


यह घटना पाकिस्तान के लिए एक बड़ा झटका साबित हो रही है, क्योंकि इससे पाकिस्‍तान सुरक्षा व्यवस्था पर सवाल खड़े हो गए हैं।

लेकिन सवाल यही उठता है आखिर क्‍यों बलूचिस्‍तान पाकिस्‍तान के साथ ऐसा कर रहा है, और इस सवाल का जबाव छिपा है बलूचिस्तान के इतिहास में।

बलूचिस्तान का इतिहास बताता है कि यह इलाका कभी भी पाकिस्तान का हिस्सा नहीं था। जब भारत और पाकिस्तान का बंटवारा हुआ, तब बलूचिस्तान को भी अपनी आजादी मिली थी। लेकिन पाकिस्तान ने 1948 में इसे जबरन अपने नियंत्रण में ले लिया।

यही नहीं, बलूचिस्तान के राजा ने भारत में शामिल होने का प्रस्ताव भी दिया था, लेकिन पंडित जवाहरलाल नेहरू ने इसे ठुकरा दिया। इसी तरह, ग्वादर को भी भारत में शामिल करने का प्रस्ताव आया था, लेकिन वह भी भारत के हाथ से निकल गया।

बलूचिस्तान की आजादी और पाकिस्तान का कब्जा

1947 में जब भारत और पाकिस्तान का बंटवारा हुआ, तब बलूचिस्तान एक स्वतंत्र रियासत थी। वहां के शासक खान ऑफ कलात ने 11 अगस्त 1947 को बलूचिस्तान को एक स्वतंत्र राष्ट्र घोषित भी कर दिया था।

लेकिन, कुछ इतिहासकारों के अनुसार, बलूचिस्तान के राजा ने भारत में शामिल होने की इच्छा जताई थी। उन्होंने पंडित नेहरू को एक पत्र लिखा था, जिसमें भारत में शामिल होने की बात कही गई थी। लेकिन नेहरू ने इस प्रस्ताव को ठुकरा दिया।

इसके बाद, 27 मार्च 1948 को ऑल इंडिया रेडियो पर यह घोषणा हुई कि भारत बलूचिस्तान की कोई मदद नहीं करेगा। 28 मार्च 1948 को पाकिस्तान ने सेना भेजकर बलूचिस्तान पर जबरन कब्जा कर लिया। इस पर खान अब्दुल गफ्फार खान ने नाराजगी जताई थी और महात्मा गांधी से कहा था, "आपने हमें भेड़ियों के सामने फेंक दिया।"

अगर भारत ने बलूचिस्तान को स्वीकार कर लिया होता, तो आज यह इलाका पाकिस्तान के नियंत्रण में नहीं होता।

ग्वादर: जिसे भारत ले सकता था, लेकिन नेहरू ने मना कर दिया


- बलूचिस्तान का एक महत्वपूर्ण हिस्सा ग्वादर है, जो आज एक व्यापक रणनीतिक बंदरगाह बन चुका है।

- भारत को ग्वादर खरीदने का प्रस्ताव मिला था!

- 1950 के दशक में ओमान के सुल्तान ने भारत को ग्वादर खरीदने का प्रस्ताव दिया था।

- ग्वादर रणनीतिक रूप से महत्वपूर्ण था, लेकिन नेहरू ने इसे खरीदने से इनकार कर दिया।

- नेहरू के सलाहकारों ने कहा कि ग्वादर पाकिस्तान के बीच में पड़ता है, इसलिए इसे भारत में रखना मुश्किल होगा।

- बाद में, 1958 में पाकिस्तान ने ग्वादर को 3 मिलियन पाउंड में ओमान से खरीद लिया।

ग्वादर में आज की नाराजगी क्यों?

- ग्वादर में चाइना-पाकिस्तान इकोनॉमिक कॉरिडोर (CPEC) नामक एक बड़ा प्रोजेक्ट चल रहा है।

- चीन यहां पर सड़कें, रेलवे और बंदरगाह बना रहा है।

- लेकिन स्थानीय लोग इस प्रोजेक्ट से खुश नहीं हैं।

- मछुआरों की रोजी-रोटी छिन रही है और बाहर से आए लोगों को नौकरियां दी जा रही हैं।

- ग्वादर के लोग इस प्रोजेक्ट के खिलाफ कई बार प्रदर्शन कर चुके हैं।

CPEC: चीन का पाकिस्तान में बढ़ता दखल और भारत को चिंता क्यों?

- चाइना-पाकिस्तान इकोनॉमिक कॉरिडोर (CPEC) चीन का एक बड़ा प्रोजेक्ट है, जिससे भारत को दो बड़ी चिंताएं हैं:

- CPEC पाकिस्तान के कब्जे वाले कश्मीर (PoK) से गुजरता है, जिसे भारत अपना हिस्सा मानता है।

- ग्वादर में चीन अपनी सैन्य गतिविधियां बढ़ा सकता है, जिससे भारत की सुरक्षा को खतरा हो सकता है।

- भारत के लिए चिंता का विषय यह है कि इस प्रोजेक्‍ट के बाद चीन हिंद महासागर में भारत को घेरने के लिए ग्वादर का इस्तेमाल कर सकता है।

बलूचिस्तान का पाकिस्तान से टकराव क्यों जारी है?

बलूचिस्तान पाकिस्तान के लिए हमेशा से एक अशांत क्षेत्र रहा है। 1948 में जब पाकिस्तान ने बलूचिस्तान पर कब्जा किया, तभी से यहां आजादी की लड़ाई चल रही है। 1958-59, 1973-77 और 2004 से अब तक कई बार बड़े विद्रोह हो चुके हैं। बलूच लोगों का कहना है कि उनके संसाधनों का पाकिस्तान गलत तरीके से दोहन कर रहा है, लेकिन उन्हें कोई लाभ नहीं मिल रहा।

बलूच लोगों की शिकायतें:

- बलूचिस्तान में गैस, तेल और खनिज भंडार हैं, लेकिन बलूच लोगों को इनका कोई लाभ नहीं मिलता।

- बलूच नेताओं और कार्यकर्ताओं को पाकिस्तानी सेना जबरदस्ती गायब कर रही है।

- बलूच लोगों को सेना के अत्याचारों का सामना करना पड़ रहा है।

- बलूच लिबरेशन आर्मी (BLA) इसी नाराजगी के कारण पाकिस्तान सरकार के खिलाफ हथियार उठा चुकी है।

बलूचिस्तान का संघर्ष सिर्फ आज का नहीं है, बल्कि यह 1948 से ही पाकिस्तान के खिलाफ लड़ रहा है। पाकिस्तान बलूचिस्तान को अपनी रणनीतिक और आर्थिक जरूरतों के लिए इस्तेमाल करता रहा है। अगर भारत ने 1947-48 में बलूचिस्तान का प्रस्ताव स्वीकार कर लिया होता, तो आज तस्वीर कुछ और होती। ग्वादर का हाथ से निकल जाना भी भारत की एक रणनीतिक गलती साबित हुई।

Tags

Next Story