Home > स्वदेश विशेष > योगी आदित्यनाथ होने के मायने

योगी आदित्यनाथ होने के मायने

प्रणय विक्रम सिंह

योगी आदित्यनाथ होने के मायने
X

उत्तर प्रदेश अपने उत्कर्ष यात्रा की रवानी पर है। यहां आस्था, अस्मिता उद्यमिता और अर्थव्यवस्था पूर्ण आवृत्ति में विकसित हो रही हैं। ईज ऑफ लिविंग से ईज ऑफ डूइंग बिजनेस तक के राष्ट्रीय सूचकांक में यूपी का परचम बुलंद है। आलम यह है कभी बीमारू प्रदेश में गिना जाने वाला उत्तर प्रदेश आज राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय निवेशकों के लिए 'ड्रीम डेस्टिनेशन' बन गया है।

दीगर है कि सदियों से प्यासे बुंदेलखंड का 'कंठ' अब सूखा नहीं है, पूर्वांचल की चिर-प्रतीक्षित विकास की 'साध' भी अब फलीभूत हो रही है, अवध की आकांक्षा को नए आयाम मिले हैं तो हरित प्रदेश के स्वप्नों को हौसलों की उड़ान मिली है।

लेखक : प्रणय विक्रम सिंह

लेकिन प्रश्न उठता है कि कभी अराजकता, भ्रष्टाचार, कमजोर राजनीतिक इच्छाशक्ति और अपराध का विशाल केंद्र रहा उत्तर प्रदेश एकाएक 'उम्मीदों' का प्रदेश कैसे बन गया है?

दरअसल यह 'कायाकल्प' नेतृत्व की शक्ति और उसकी महत्ता को रेखांकित करता है। जब उत्तर प्रदेश के सियासी आसमान पर सनातन का 'आदित्य' चमका और UP की बागडोर एक YOGI ने संभाली, तभी से प्रदेश के तिमिर हरने लगे। यूपी के लिए अति उपयोगी सिद्ध हो रहे ऐसे 'योगी' आदित्यनाथ का आज जन्मदिन है।

वे 'आदित्य' नाथ, जिन्होंने प्रदेश की राजनीति में सात दशकों के स्थापित सियासी तानेबाने को तोड़ कर विकास, विश्वास और प्रयास की नई इबारत लिखी। जिन्होंने एक ओर राजनीति को रामराज्य के मायने समझाए, तो दूसरी ओर अपराध की लंकाओं को ध्वस्त कर कानून के इकबाल को बुलंदी अता की। विकास को अंत्योदय के दर्शन में ढाला, वहीं खादी और खाकी को जनता की खिदमत का पाठ पढ़ाया। नौकरशाही को नर में नारायण देखने का दृष्टिकोण दिया।

कोरोना महामारी की विभीषिका साक्षी है कि ऐसे 'आदित्य' के प्रांजल आलोक की समदर्शी आभा में ही असहाय मानवता को सहारा मिला था।

विदेह की भांति अनासक्त और 'तेरा तुझको अर्पण, क्या लागे मेरा' भाव को चरितार्थ करते योगी ने लोकतंत्र को नई गरिमा प्रदान की है।

अब देखिए न, योगी सरकार के आर्थिक बजट से लेकर उनकी लोक कल्याणकारी नीतियों तक में किसी भी प्रकार का कोई भेदभाव नहीं दिखाई पड़ता है। इंसेफेलाइटिस की अंतहीन वेदना हो या कालाजार का क्लेश, प्राकृतिक आपदा की व्यथा हो या कुष्ठ रोग की परित्यक्त पीड़ा, योगी की नीतियां कब भेदभाव मूलक हुई हैं! हां, शायद योगी आदित्यनाथ ही ऐसे विरले मुख्यमंत्री होंगे, जिन्होंने प्राणी मात्र से प्रेम के सिद्धांत को जीते हुए बेजुबान जानवरों के लिए "भूसा बैंक" तैयार करवाया, जिसके परिणाम स्वरूप कोरोना कहर के दरम्यान भी पशुओं को प्रचुर मात्रा में भूसा प्राप्त होता रहा।

योगी आदित्यनाथ की उपलब्धियों की विराटता को आकड़ों की बैसाखी की आवश्कता नहीं है। बस ऐसे समझ सकते हैं कि जो 'विकास' आजादी से लेकर साल 2017 तक कुछ खास परिवारों, समुदायों और घरानों की चौखट तक सीमित था, वह श्रमिक भरण पोषण योजना, कन्या सुमंगला योजना, BC सखी योजना, उत्तर प्रदेश कौशल विकास मिशन, आयुष्मान भारत, मुख्यमंत्री जन आरोग्य योजना, 'स्वच्छ भारत मिशन', सौभाग्य योजना, प्रधानमंत्री आवास योजना, अभ्युदय योजना, ओडीओपी, किसान सम्मान निधि, प्रधानमंत्री गरीब कल्याण अन्न योजना जैसी अनेक लोक कल्याणकारी योजनाओं के रूप में निर्धन, शोषित, वंचित, महिला, किसान, नौजवान, श्रमिक, उपेक्षित, उपहासित, वनवासी, गिरिवासी तक बिना किसी भेदभाव के पहुंच कर 'अंत्योदय से राष्ट्रोदय' के संकल्प को साकार कर रहा है।

ध्यातव्य है, 56 जिलों में निर्माणाधीन मेडिकल कॉलेज, DBT के माध्यम से 5 लाख करोड़ से अधिक की धनराशि प्रदेश के नौजवानों, गरीबों, महिलाओं व किसानों को मिलना, लगभग 45 लाख गरीबों को पक्के आवास, क्या ये सब कल्याणकारी कार्य वर्ष 2017 के पूर्व नहीं हो सकते थे? आखिर वनटांगिया समुदाय को मुख्यधारा में आने के लिए इतनी प्रतीक्षा क्यों करनी पड़ी? इन सवालों के जवाब हमें योगी आदित्यनाथ होने के मायने समझाते हैं। ऐसे ही नहीं 'आत्मनिर्भर उत्तर प्रदेश' का स्वप्न आकार ले रहा है, उसके पीछे पलायन की पीड़ा से मुक्ति का अंतर्नाद और आत्म सम्मान का सिंहनाद है। यह स्वप्न तो पूर्ववर्ती सरकारें भी देख सकती थीं। क्यों प्रदेश को दशकों तक योगी की प्रतीक्षा करनी पड़ी? इसका उत्तर तो दुनिया के सबसे लोकप्रिय राजनेता प्रधानमंत्री मोदी ने 'UP+YOGI=UPYOGI' सूत्र के माध्यम से दुनिया को एक अरसा पहले ही दे दिया था।

दशकों से उपेक्षित पड़े भारतीय आस्था के प्राचीनतम केंद्रों को योगी के नेतृत्व में 'नया जीवन' मिला है। श्रीराम जन्मस्थान पर भव्य-दिव्य मंदिर का निर्माण, श्री काशी विश्वनाथ धाम कॉरिडोर को उसकी प्रतिष्ठा के अनुरूप भव्यता, अयोध्या में दीपोत्सव, बरसाना में रंगोत्सव आदि की, क्या पूर्ववर्ती सरकारों में कल्पना भी की जा सकती थी?

धार्मिक पर्यटन के रूप में आस्था को अर्थव्यवस्था से जोड़ने का कार्य एक योगी के ही राज में संभव था। आज अयोध्या, काशी, मथुरा, चित्रकूट समेत अनेक केंद्र अंतरराष्ट्रीय सुविधाओं के साथ पर्यटन के विश्व मानचित्र पर दमक रहे हैं।

योजनाएं दर्जनों हैं और लाभार्थीं असंख्य, लेकिन निर्माण तो सतत चलने वाली प्रक्रिया है। बिना रुके, बिना थके, बिना डिगे प्रगति के पथ पर प्रदेश को कदमताल कराते रहना विकास की बुनियादी कसौटी है।

उत्तर प्रदेश भाग्यशाली है कि उसके पास राम और राष्ट्र का साधक योगी जी हैं। जो कहते हैं कि 'राम काज किन्हें बिनु, मोहि कहां विश्राम' और राम काज क्या है? हर 'अहिल्या' को सहारा देना, हर 'शबरी' की प्रतीक्षा को सार्थकता प्रदान करना, हर 'केवट' को सम्मान देना, हर 'सुग्रीव' का बल बनना, हर 'रावण' के विरूद्ध संघर्ष करना, ऐसी नीतियों की स्थापना करना जो, दैहिक दैविक भौतिक तापा। राम राज नहिं काहुहि ब्यापा॥ सब नर करहिं परस्पर प्रीती। चलहिं स्वधर्म निरत श्रुति नीती॥ भाव को सामान्य जीवन में चरितार्थ कर सकें।

सहकार, समन्वय, सहजीवन, सह-अस्तित्व की भावना से दीप्त योगी और राजयोगी के समुच्चय मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ इसी रामराज के निर्माण-पथ के पथिक हैं। कामना है कि वे स्वस्थ रहें, सुरक्षित रहें, समर्थ रहें, दीर्घायु रहें, ताकि उनकी यह 'निर्माण' यात्रा जारी रहे और मानवता विभूषित और दानवता दण्डित होती रहे।

(लेखक वरिष्ठ पत्रकार हैं)

Updated : 5 Jun 2022 12:11 PM GMT
Tags:    
author-thhumb

Swadesh News

Swadesh Digital contributor help bring you the latest article around you


Next Story
Top