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उग्र नारीवाद के इस दौर में मैंने अपनी बेटियों को स्त्री-पुरुष के बारे में क्या सिखाया

कौशल डोडा

उग्र नारीवाद के इस दौर में मैंने अपनी बेटियों को स्त्री-पुरुष के बारे में क्या सिखाया
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credit : pr daily 

स्वदेश विशेष। आज मैंने नारीवाद के बारे में बोलने का फैसला किया तो उसके पीछे कई वजहें हैं। उग्र राष्ट्रवाद और नारीवाद हमेशा से ही बहस का विषय रहे हैं और हर कोई अपने नजरिये से इनकी अलग-अलग परिभाषा मानता है। मेरी नजर में नारीवाद का अर्थ महिलाओं को वरीयता देना और पुरुषों को नीचा दिखाना नहीं है; यह समानता की और दोनों के लिए बिल्कुल एक जैसे मूल्य तय करने की बात है।

आज के दौर में जब नारीवाद और उग्र राष्ट्रवाद के बारे में विचार उबल रहे हैं तो मैं बिल्कुल अलग नजरिये से नारीवाद की बात कर रहा हूं, दो पुत्रियों के पिता और वर्षों से समाज की सेवा कर रही स्त्री के गौरवान्वित पति के नजरिये से। कई बार मैंने लोगों को धीमी आवाज में यह कहते सुना है कि अगर मैं आधुनिक पिता हूं या समझदार और प्रगतिशील पति हूं तो शायद मैं नारीवादी हूं। यदि पुत्र नहीं बल्कि दो पुत्रियां होने पर भी बतौर पिता खुश रहना या अपनी पत्नी को उसके उपनाम के बजाय अपना उपनाम लगाने के लिए विवश नहीं करना या दुनिया में लड़कियों के लिए तय हदें लांघने में अपनी बेटियों की मदद करना या हर किसी को स्त्री-पुरुष के चश्मे से नहीं देखना ही नारीवाद है तो मुझे नारीवादी होने पर गर्व है और मैं इससे इनकार नहीं कर सकता।

दो अद्भुत पुत्रियों का जिम्मेदार और प्रसन्न पिता होकर मैं हमेशा उन्हें जीवन अपने दम पर जीने, अपने अस्तित्व का सम्मान करने, उन्हें कोई काम करने में अक्षम बताने वाले लोगों से दूर रहने, जुनून और सपनों को हमेशा धन से ज्यादा अहमियत देने और पूरे आत्मविश्वास तथा आनंद के साथ जीवन जीने की सीख देता हूं।

अपनी पुत्रियों को अच्छी महिला बनने की सीख देने के बजाय मैं उनके साथ पुरुषों के बारे में बात करना और उन्हें जीवन की ऐसी सीख देना तथा ऐसे तरीके सिखाना पसंद करता हूं, जिनसे वे अपने बल पर जी सकें और खुद अपनी सुरक्षा का ख्याल रखते हुए अकेले यात्रा कर सकें।

मैं अपनी पुत्रियों को प्यारी राजकुमारियों और गुड्डे-गुड़ियों के संसार से आगे की दुनिया देखने और खंगालने के लिए प्रोत्साहित करता हूं और जब मैं उन्हें बात करते सुनता हूं तो मुझे संतोष होता है कि वे सही दिशा में जा रही हैं।

मुझे लगता है कि माता-पिता होने के नाते हमें अपनी पुत्रियों को सशक्त बनने और पुरुष अपराधियों (यदि कोई हो) से होने वाले खतरों को समझने लायक बनने देना चाहिए। हमें अपने बच्चों को उनकी अनूठी पहचान के साथ स्वयं अपनी पसंद का पुरुष या स्त्री बनने देना चाहिए। हमें उनको ऐसी दुनिया में बड़े होने देना चाहिए, जहां स्त्री-पुरुष का भेद नहीं हो।

अपनी पुत्रियों को सुरक्षित रखने के लिए हम चाहे कितनी भी मजबूत दीवार बना दें, अनिश्चितता भरी इस दुनिया में बढ़ते स्त्री-पुरुष असमानता, बलात्कार और अत्याचार के बीच पौरुष या पुरुष होना नकारात्मक ही माना जाता है। इस बनावटी धारणा को मिटाया जाना चाहिए और एक नई दुनिया बनाई जानी चाहिए, जहां पुरुष और महिला मनुष्य माने जाएं और मानवता स्त्री और पुरुष के खांचे में नहीं बल्कि अपने विशुद्धतम रूप में रहे।

मैं इतना ही चाहता हूं कि मेरी पुत्रियां लगातार बदलती इस दुनिया में पूरी ताकत से आगे बढ़ें, अपनी पूरी क्षमता भर सफल हों, मनचाहा काम करने से कभी न रुकें, खूबसूरत शामों और रातों का आनंद लें और ऐसी यादें संजोएं, जो जीवन भर उनके साथ रहें।


Updated : 6 March 2021 8:46 AM GMT
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स्वदेश डेस्क

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