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हिन्दुत्व के आगे सीपीएम क्यों हुई नतमस्तक

हैरानी की बात ये है कि सीताराम येचुरी खुद को धार्मिक आयोजनों से हमेशा दूर रखते रहे हैं। कई बार वे अपने आप को नास्तिक भी बता चुके हैं।

हिन्दुत्व के आगे सीपीएम क्यों हुई नतमस्तक
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- पप्पू गोस्वामी

वामपंथ की राजनीति में धर्म को सदैव ही अफीम का दर्जा दिया गया है। भारत में भी वामपंथी खुद को धार्मिक आयोजनों से हमेशा दूर रखने की कोशिश करते रहे हैं। ऐसे में दो खबरें चौकाने वाले आयी हैं। पहली खबर तो केरल में लेफ्ट फ्रंट की सरकार द्वारा रामायण पारायण कराने की आयी। इसके कुछ ही दिन बाद सीपीएम के महासचिव सीताराम येचुरी की दो तस्वीरें सोशल मीडिया पर वायरल हुईं। इनमें से एक तस्वीर में येचुरी अपने सिर पर कलश उठाए हुए हैं, तो दूसरी तस्वीर में उनके सिर पर पूजा के फूल दिख रहे हैं। ये दोनों ही तस्वीरें हैदराबाद में आयोजित बोनालू उत्सव की हैं।

हैरानी की बात ये है कि सीताराम येचुरी खुद को धार्मिक आयोजनों से हमेशा दूर रखते रहे हैं। कई बार वे अपने आप को नास्तिक भी बता चुके हैं। सार्वजनिक मंचों पर भी कई बार उन्होंने कहा है कि किसी भी राजनीतिज्ञ को धार्मिक आयोजनों में शामिल नहीं होना चाहिए। येचुरी हमेशा ही कहते रहे हैं कि राजनीतिज्ञ धार्मिक आयोजन में भाग लेकर मतदाताओं को प्रभावित करने की कोशिश करते हैं और मतदाता अपनी धार्मिक भावना की वजह से उस राजनीतिज्ञ का समर्थन करने लगता है। लेकिन ऐसा कहने वाले येचुरी ही अगर सिर पर कलश लेकर अपनी तस्वीर खींचवाते हैं या बोनालू उत्सव में शिरकत करते हैं, तो इसका क्या अर्थ निकाला जाना चाहिए।

सच्चाई तो यह है कि भारत में राजनीति का ऊंट कब किस करवट बैठ जाये, इस बारे में कुछ भी नहीं कहा जा सकता है। वामपंथी पार्टियां केंद्र की नरेंद्र मोदी सरकार पर हमेशा ही धर्म की राजनीति करने का आरोप लगाकर निशाना साधती रही हैं। 2014 के पहले भी बीजेपी पर उसके विरोधियों द्वारा धर्म की राजनीति करने का आरोप लगाया जाता रहा है। ये अलग की बात है कि अन्य दलों के नेता भी चुनावी मौकों पर मंदिरों-मस्जिदों में अपना सर नवाते रहे हैं। लेकिन वामपंथी नेता अमूमन ऐसा करने से बचते रहे हैं। अपवाद के रूप में बंगाल में दुर्गा पूजा की बात की जा सकती है, जहां वामपंथी नेता दुर्गा पूजा पंडालों में जाया करते थे। लेकिन वहां वामपंथी नेताओं का तर्क हुआ करता था कि दुर्गा पूजा उनके लिए धार्मिक आस्था का प्रतीक न होकर उनकी सांस्कृतिक पहचान की प्रतीक है, इसीलिए वे इन पूजा पंडालों में जाते हैं।

लेकिन अब केरल की लेफ्ट फ्रंट सरकार द्वारा रामायण पारायण कराने की बात और सीताराम येचुरी के कलश यात्रा में भाग लेने की बात राजनीति में आये नये परिवर्तन का संकेत दे रही हैं। येचुरी की ये तस्वीर ऐसे मौके पर जारी हुई है, जब कुछ महीनों बाद ही चार राज्यों के विधानसभा के चुनाव और उसके कुछ महीने बाद लोकसभा के चुनाव होने वाले हैं। सीताराम येचुरी सीपीएम के सर्वेसर्वा हैं और 2019 के चुनाव के मद्देनजर पार्टी की रणनीति और उसकी गतिविधियां बहुत हद तक उनके ही निर्णय और दिशा निर्देश पर निर्भर रहने वाली हैं। ऐसे में एक धार्मिक उत्सव में न केवल भाग लेना, बल्कि कलश यात्रा में शिरकत भी करना, उनकी पार्टी की विचारधारा पर प्रश्नचिन्ह खड़ा करता है। इसके साथ ही यह कई नए समीकरण बनने के भी संकेत देता है।

हैदराबाद और सिकंदराबाद के कुछ हिस्सों में अल्लादा मसम (जुलाई और अगस्त) के दौरान बोनालू उत्सव मनाया जाता है। इस उत्सव को आसादा यात्रा उत्सव के रूप में भी जाना जाता है। यह उत्सव वहां की धार्मिक परंपरा का एक हिस्सा है और हिंदू धर्मावलंबी इस उत्सव में पूरे जोशोखरोश के साथ हिस्सा लेते हैं। माना जा रहा है कि इस उत्सव में भाग लेकर सीताराम येचुरी ने अपनी धार्मिक भावनाओं का इजहार करने की कोशिश की है।

दरअसल, कुछ सालों से इस बात को महसूस किया जाने लगा है की धर्मनिरपेक्षता के नाम पर जिस तरह से सेक्युलर होने का दावा करने वाली पार्टियां हिंदू धर्म परंपरा की उपेक्षा और आलोचना करती रही हैं, उसके कारण जनमत उनके खिलाफ होते जा रहा है। 2014 के लोकसभा चुनाव में बीजेपी की जबरदस्त जीत और उसके बाद कई राज्यों में बीजेपी की सरकार बनने से भी ऐसी पार्टियां सतर्क हुई हैं। यही वजह है कि गुजरात के विधानसभा चुनाव केकांग्रेस को मजबूरन अपना हिंदूवादी चेहरा दिखाना पड़ा था। पार्टी के स्टार प्रचारक राहुल गांधी चुनाव प्रचार के दौरान लगातार अपनी हिंदूवादी छवि दिखाने की कोशिश करते रहे।

बीजेपी से डर का आलम ये है कि जिन राज्यों में बीजेपी काफी कमजोर मानी जाती है, वहां भी पिछले वामपंथी या बीजेपी विरोधी पार्टियां हिन्दुवाद का चोला ओढ़ने लगी हैं। क्योंकि इन राज्यों में भी कुछ सालों में बीजेपी के वोट प्रतिशत में काफी बढ़ोतरी हुई है। केरल में यद्यपि बीजेपी को कभी भी बड़ी चुनावी सफलता नहीं मिल सकी है, लेकिन उसके वोट प्रतिशत में लगातार बढ़ोतरी हो रही है। माना जा रहा है कि अगले चुनाव में बीजेपी केरल में भी कुछ सीटों पर सफलता पाने में कामयाब हो सकती है। यही हाल पश्चिम बंगाल में भी है। बीजेपी का दावा है कि अगले लोकसभा चुनाव में वह राज्य की 22 सीटों पर जीत हासिल कर सकती है। बीजेपी को इतनी सीटें मिलेंगी या नहीं, ये अलग बात है। लेकिन जिस तरह से उसके वोट प्रतिशत में बढ़ोतरी हुई है, उसके आधार पर यह निश्चित रूप से कहा जा सकता है कि अगले चुनाव में बीजेपी इन राज्यों में अपनी सशक्त उपस्थिति दर्ज करायेगी।

माना जा रहा है कि इसी वजह से केरल की लेफ्ट फ्रंट सरकार ने पहले रामायण पारायण कराने का ऐलान किया था, लेकिन बाद में इस मुद्दे पर सहमति नहीं बन पाने और पोलित ब्यूरो से अनुमति नहीं मिल पाने के कारण इस कार्यक्रम को स्थगित कर दिया गया। लेकिन अब सोशल मीडिया पर वायरल हुई सीताराम येचुरी की कलश यात्रा की तस्वीर अपने आप में काफी कुछ स्पष्ट करती है और इस बात का संकेत देती है कि वोट की राजनीति की वजह से धर्म को अफीम का दर्जा देने वाली लेफ्ट पार्टियों को भी अब धर्म का सहारा लेने में कोई संकोच नहीं है। ये अपने आप में भारत की राजनीति में एक बड़े बदलाव का संकेत भी है।

Updated : 21 July 2018 3:37 PM GMT
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Swadesh Digital

स्वदेश वेब डेस्क www.swadeshnews.in


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