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दिल्ली दंगों का सच और साक्ष्यों पर वेबिनार में हुई चर्चा, देखें वीडियो

दिल्ली दंगों का सच और साक्ष्यों पर वेबिनार में हुई चर्चा, देखें  वीडियो
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स्वदेश वेबडेस्क। नागरिकता कानून लागू होने के बाद देश भर में शुरू हुए विरोध ने राजधानी दिल्ली में दंगों का रूप ले लिया था। जिसमें काफी मात्रा में जन-धन की हानि भी हुई थी। दिल्ली दंगों का सच और षड्यंत्र विषय पर आज स्वदेश एवं पांचजन्य द्वारा एक वेबिनार का आयोजन किया गया।इस वेबिनार में दीपक मिश्रा पूर्व एडीजी सीआरपीएफ एवं नीरज अरोड़ा अधिवक्ता सर्वौच्च न्यायलय ने भाग लिया।

नीरज अरोड़ा जोकि दिल्ली दंगों के कारणों की पड़ताल करने वाली संस्था कॉल फॉर जस्टिस के सदस्य है। उन्होंने बताया की यह दंगे एक दिन में हुई कोई आम घटना नहीं हैं। इसे पूरी योजना के साथ अंजाम दिया गया है। उन्होंने बताया देश में जो सरकार विरोधी ताकते है, वह लंबे समय से इस तरह की घटना को अंजाम देने का प्रयास कर रहें थे। नागरिकता संशोधन कानून लागू होने के बाद उन्हें यह मौका मिल गया। विपक्षी राजनितिक पार्टियों की आड़ में इन संगठनों ने मौके का लाभ उठाया है।

उन्होंने बताया की पीएफआई, पिंजरा तोड़, आईएस जैसे कई विदेशी संगठनों ने इसके लिए काम शुरू किया।शाहीन बाग में लोगों का विरोध करना इसकी शुरुआत का पहला चरण था। देश भर से लोगों को इस विरोध में जोड़ने के लिए सोशल मीडिया को मुख्य साधन साधन बनाया गया। वाट्सएप,ट्वीटर, फेसबुक के माध्यम से पलोगों तक भ्रामक खबरें और भड़काऊ पोस्ट के द्वारा जोड़ा गया। उन्होंने कहा की जिस दिन अमेरिकी राष्ट्रपति भारत आये उसी दिन 24 फरवरी को यह दंगे शुरू हुए।अंतर्राष्ट्रीय मीडिया का कवरेज लेने के लिए यह दिन चुना गया था।

उन्होंने कहा की जिस तरह से दंगे हुए और जो तैयारीयां थी। वह प्रमाणित करती है की यह दंगे पूरी पूर्व नियोजित थे।जैसे की ताहिर हुसैन के घर की छत पर बड़ी मात्रा में विस्फोटक पत्थर, गुलेल आदि का मिलना।यह सब तैयारियां एक दिन में नहीं होती।इसके लिए समय चाहिए होता है।उन्होने कहा की दिल्ली में पिछले कई दिनों से धरना चल रहा था। यह सोचने वाली बात है की फिर राष्ट्रपति ट्रंप के आते ही क्या हुआ जो हिंसा भड़क गई। उन्होंने बताया की इन दंगो के लिए विदेशी संस्थाओं से बड़ी धनराशि के विदेशों से आने के साक्ष्य मिले है।

इसके अलावा वेबिनार में भाग लेने वाले दीपक मिश्रा पूर्व एडीजी सीआरपीएफ ने कहा की दिल्ली में जो हुआ वह एकदम हुआ ऐसा कहना गलत होगा। उन्होंने कहा की जो घटनाये धीरे-धीरे घट रहीं थी। उनसे समय रहते हमें समझ जाना चाहिए था की कुछ बड़ा गलत हो सकता है। उन्होने कहा की जो हमारा सूचना तंत्र है, वह भी इसके विषय में जानकारी जुटाने में कहीं ना कहीं विफल रहा है। साथ ही उन्होंने कहा की दंगों के बाद जिस तरह पुलिस ने परिस्थितियों पर नियंत्रण किया। उन्होंने दंगो को परिस्थितयों का सहीं आंकलन ना कर पाने का परिणाम बताया।

वेबिनार का संचालन पांचजन्य संपादक हितेश शंकर ने किया एवं आभार स्वदेश के समूह संपादक अतुल तारे ने किया।


Updated : 14 Jun 2020 1:31 AM GMT
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