Home > स्वदेश विशेष > मतदाताओं ने सबको असमंजस में डाला

मतदाताओं ने सबको असमंजस में डाला

राजनीतिक दलों की अटकी सांस, खामोशी से आई वोटों की सुनामी

मतदाताओं ने सबको असमंजस में डाला
X

नई दिल्ली/विशेष प्रतिनिधि। मप्र विधानसभा चुनाव में जिस तरह वोटों की बरसात हुई है, उससे राजनीतिक दलों की सांस अटक गई हैं। खामोशी से आई वोटों की सुनामी ने राजनीतिक आकलनकर्ताओं को भी असमंजस में डाल दिया है। ज्यादा मत प्रतिशत का मतलब निकाला जाता था सत्ता के खिलाफ मतदान, लेकिन प्रदेश में यह थ्योरी लागू नहीं हो रही। कारण, पूरा चुनाव भाजपा के प्रति नाराजगी नहीं होना और कांग्रेस की तरफ से किसानों, युवाओं के लिए परोसे गए एजेंडे के इर्द-गिर्द हुआ है। लिहाजा, दोनों दलों के लिए यह अनुमान लगाना कठिन हो रहा है कि मतदान केन्द्र तक पहुंची मतदाताओं की भीड़ किसके साथ गई है। वैसे मप्र में 75 प्रतिशत की वोटिंग को ज्यादा नहीं कहा जा सकता। क्योंकि पिछले दो चुनाव से लगातार मत प्रतिशत बढ़ रहा है। 2008 में 70 प्रतिशत वोट पड़े थे। 2013 में 73 प्रतिशत मतदान हुआ था। यदि इस अनुपात को देखें तो पांच साल में दो प्रतिशत मतदान का बढ़ना स्वाभाविक है। लेकिन इस बार का चुनाव इसलिए महत्वपूर्ण है कि भाजपा चौथी पारी के लिए मैदान में है। माना ये जा रहा है कि जो वोट प्रतिशत बढ़ा है, वह कांग्रेस के बदलाव के नारे का समर्थन है। परन्तु दूसरी तरफ यह देखना भी आवश्यक है कि 15 साल की सत्ता के बाद भी राज्य में भाजपा के खिलाफ नकारात्मक माहौल नहीं था। मतदाताओं की नाराजगी रही भी है तो वह व्यक्तियों के प्रति थी। मतदाता विधायकों से नाराज थे। विधायक चाहे कांग्रेस का हो या भाजपा का। मतदाता यदि नाराज था तो दोनों दलों के विधायकों से था। इसलिए दोनों दलों की तरफ से अधिकांश विधायकों के टिकट काटकर इस नकारात्मक स्थिति को सुधारने का काम किया गया था।

दरअसल, भाजपा और कांग्रेस की परेशानी का कारण ये है कि दोनों दलों की तरफ से मतदाताओं को लुभाने के लिए पूरी ताकत झोंकी गई। भाजपा द्वारा 15 साल के काम को लोगों के सामने रखकर आगे भी बेहतर काम करने का विश्वास दिलाया गया, वहीं कांग्रेस की तरफ से ऐसे खास वोटर को टारगेट किया गया, जो कभी संतुष्ट नहीं हो पाता। इसमें किसानों की कर्ज माफी और युवाओं को रोजगार सहित कई तरह के प्रलोभन देने वाले मुद्दों का कांग्रेस ने खूब प्रचार किया। कांग्रेस इस ऊहापोह में है कि उसका यह मुद्दा मतदाताओं को प्रभावित कर पाया या नहीं। ऊहापोह की वजह ये भी है कि 2003 में इन्हीं मुद्दों के कारण उसे सत्ता से हटना पड़ा था। कांग्रेस यह अंदाजा नहीं लगा पा रही कि डेढ़ दशक बाद भी वोटर ने उसे गंभीरता से लिया है अथवा नहीं। भाजपा का डर ये है कि डेढ़ दशक की लंबी पारी में जनता कहीं भाजपा के शासनकाल से ऊब तो नहीं गई है। जिसके चलते मतदाताओं ने बदलाव का मन बना लिया हो, जिसे पार्टी भांप नहीं पाई। वैसे 2013 के बाद अभी तक जितने राज्यों में विधानसभा के चुनाव हुए, वहां मतदाताओं ने सारे आकलन ध्वस्त किए हैं। इसलिए मप्र विधानसभा चुनाव नतीजों को लेकर राजनीतिक पंडितों को यह समझने में कठिनाई हो रही है कि यहां ऊंट किस करवट बैठेगा।

Updated : 12 Dec 2018 3:59 PM GMT
Tags:    
author-thhumb

Swadesh Digital

स्वदेश वेब डेस्क www.swadeshnews.in


Next Story
Top