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वचन और संकल्प बनाम वादे

एक दूसरे को नीचा दिखाने, नाकाम घोषित करने की गलाकाट स्पर्धा चल रही है।

वचन और संकल्प बनाम वादे
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-सियाराम पांडेय 'शांत'

मध्यप्रदेश और छत्तीसगढ़ के विधानसभा चुनाव में भाजपा और कांग्रेस अपने-अपने स्तर पर मतदाताओं को लुभाने में जुटी है। एक दूसरे को नीचा दिखाने, नाकाम घोषित करने की गलाकाट स्पर्धा चल रही है। छत्तीसगढ़ में कांग्रेस ने अपना वचनपत्र जारी किया है जबकि छत्तीसगढ़ में उसने घोषणापत्र जारी कर रखा है। वचन का महत्व होता है लेकिन देखना होगा कि वचन देने वाले की अहमियत क्या है? जब उसे जनता ने मौका दिया था, तब भी उसने जनता से कुछ वादे किए थे, उन्हें कितना पूरा किया? जो सत्तारूढ़ हैं, उन्नहोंने क्या किया? वैसे आजकल 'बोलने में क्या दरिद्रता' वाले सिद्धांत को मानने वालों की तादाद ज्यादा है।

वचन तो अयोध्या नरेश महाराज दशरथ ने अपनी पत्नी कैकेयी को दिए थे। प्राण दे दिया लेकिन वचन की मर्यादा भंग नहीं होने दिया। विश्वामित्र को अगर दक्षिणा का वचन दिया तो महाराज हरिश्चंद्र ने खुद को बेच दिया, पत्नी को बेच दिया, बेटे को बेच दिया। महाराज बलि ने वचन दिया तो अपना सब कुछ गंवाकर भी अपनी बात से मुकरे नहीं। राजनीति में वचनबद्धता मुमकिन है क्या? कांग्रेस के किसी एक नेता का भी ऐसा कोई इतिहास, ऐसा कोई प्रमाण है क्या कि उसने अपने वचन के लिए मुसीबत मोल ली हो। फिर उसकी बातों पर मध्यप्रदेश की जनता को क्यों यकीन कर लेना चाहिए।

वचन देता है रिजर्व बैंक का गवर्नर। एक कागज पर लिखा होता है कि मैं धारक को इतने रुपये देने का वचन देता हूं और इस वचन का पालन होता है। क्या ऐसा ही पक्का वचन कांग्रेस भी दे रही है? क्या छह दशक से अधिक की सत्तात्मक वादाखिलाफियों का उसने सही मायने में प्रायश्चित कर लिया है या वह मतदाताओं को अपने जाल में फंसाने के लिए लोभ का चारा डाल रही है। वचन छोटा होता है लेकिन उसकी अहमियत बड़ी होती है। आदमी वचन देते वक्त सौ बार सोचता है लेकिन कांग्रेस ने 112 पृष्ठों का वचन दिया है। एक वचन से काम नहीं चलता, इसलिए सभी भाषाओं में बहुवचन की व्यवस्था की गई। संस्कृत के विद्वानों को एक वचन और बहुवचन से संतोष नहीं हुआ तो उन्होंने बीच में द्विवचन भी जोड़ लिया। कांग्रेस को पता है कि सबको साधने के लिए एकवचन काफी नहीं है। इसलिए 112 पेज का वचन दे दिया। एक वचन में खतरा है, पूरा न हुआ तो लोग जुबान पकड़ लेते हैं। बहुवचन में सहूलियत है, उनमें कुछ तो पूरे हो ही जाते हैं। बोलने-बताने में सहूलियत रहती है। कांग्रेस अपनी सुविधा का संतुलन जरूर देखती है।

मध्यप्रदेश विधानसभा चुनाव के लिए कांग्रेस ने जो 'वचनपत्र' जारी किया है, उसमें सभी किसानों का दो लाख रुपये तक का कर्ज माफ करने की घोषणा की गई है। किसानों को जितनी भी मदद मिल जाए कम है लेकिन इतने पैसे कांग्रेस लाएगी कहां से? जाहिर है, इससे मध्यप्रदेश का विकास प्रभावित होगा। किसानों में कर्ज लेकर उसे अदा न करने की प्रवृत्ति विकसित होगी। जरूरत पड़ने पर बैंक किसानों को कर्ज नहीं देंगे। उन्हें पता है कि इसका भुगतान तब तक नहीं होगा, जब तक किसी नई पार्टी की सरकार न बने। कांग्रेस ने वचन दिया है कि वह मध्य प्रदेश के हर वर्ग, हर समाज, हर पीड़ित, हर शोषित और हर व्यथित के जीवन को सुधारेगी । हालांकि इसके अगले उपबंध में उसने कहा है कि हर वर्ग के एक-एक व्यक्ति, एक-एक परिवार के जीवन को संवारेगी। यह एक व्यक्ति और एक परिवार कौन होगा, लगे हाथ यह भी सुस्पष्ट हो जाता तो दिक्कत न होती। कांग्रेस ने जन आयोग गठित करने का वादा तो किया है लेकिन यह वचन बिल्कुल भी नहीं दिया है कि जन आयोग का मुखिया, उपाध्यक्ष या कार्यकारिणी का सदस्य कोई कांग्रेसी नहीं होगा। जनता से पूछा जाएगा कि समाज के किस ईमानदार व्यक्ति को जन आयोग का मुखिया बनाया जाए। खैर यह जन आयोग भ्रष्टाचार के खिलाफ लड़ाई लड़ेगा। उस लड़ाई में नेशनल हेराल्ड का घोटाला शामिल होगा कि नहीं, यह भी पता चलता तो जनता के पास वक्त आने पर पूछने या आरटीआई डालने का विकल्प रहता।

कांग्रेस ने किसानों का बिजली बिल आधा करने की बात कही है। सामाजिक सुरक्षा पेंशन की राशि में 700 रुपये का इजाफा करने, महिला स्व सहायता समूहों के कर्ज माफ करन, बच्चियों के विवाह के लिए 51 हजार रुपये का अनुदान देने का वचन दिया है। हर परिवार के बेरोजगार युवा को दस हजार रुपये मासिक देने, सूचना प्रौद्योगिकी के क्षेत्र में 1 लाख युवाओं को नौकरी देने, पहले 100 यूनिट का एक रुपये बिजली का बिल करने, सभी फसलों और कुछ सब्जियों पर बोनस देने, हर परिवार को 5 लीटर दूध देने, सबके लिए घर के अधिकार का कानून लाने और बेघर लोगों को 450 वर्ग फीट जमीन या फिर ढाई लाख रुपये देने का वचन दिया है। यह सब कहने में तो अच्छा लगता है लेकिन इसे पूरा कैसे करेगी कांग्रेस? वह इतनी जमीन कहां से लाएगी? इतना धन कहां से लाएगी? कांग्रेस को पता है कि भाजपा सरकार धन जरूरत के हिसाब से ही तय करती है। जब वह जाती है तो उसकी तरह खजाना खाली करके नहीं जाती। पूर्व संचित खजाने से ही वह अपने बहुत सारे वादे पूरे कर लेगी लेकिन यह समस्या का निदान नहीं है।

राज्य को ड्रग्स मुक्त बनाने की सोच अच्छी है लेकिन आबकारी राजस्व की प्रतिपूर्ति कैसे होगी? मध्य प्रदेश के उत्पादों को बढ़ावा देने,व्यापमं मामले की फिर से जांच कराने, छात्राओं को स्कूल से पीएचडी तक की मुफ्त पढ़ाई की व्यवस्था करने, बोर्ड परीक्षा में 70 फीसदी अंक लाने वाले सभी छात्रों को लैपटॉप देने, अनुसूचित जाति के सभी लोगों को जमीन का अधिकार देने, 60 साल से अधिक उम्र वाले पत्रकारों को 10 हजार रुपये पेंशन देने, अमरकंटक को संरक्षित कर नर्मदा के अस्तित्व को नुकसान पहुंचाने वालों के खिलाफ सख्त कार्रवाई करने, इंदौर, ग्वालियर तथा जबलपुर में ट्रांसपोर्ट हब बनाने, सड़कों के लिए समयसीमा में काम पूरा करने की जवाबदेही सुनिश्चित करने, 12वीं परीक्षा के जिलेवार आला विद्यार्थियों को दुपहिया वाहन देने, वर्ष 2008 से 2018 तक आयोजित व्यापमं, पीएमटी, डीमेट एवं अन्य परीक्षाओं से प्रभावित प्रदेश के मूल निवासी अभ्यर्थियों द्वारा जमा शुल्क वापस करने की घोषणा स्वागत योग्य है। फिर भी लोभ का इतना बड़ा संजाल स्थापित करने की बजाय अगर कांग्रेस उसके व्यावहारिक पक्ष पर विचार करती तो यह ज्यादा सुविधाजनक होता लेकिन कांग्रेस का अभीष्ठ येन-केन प्रकारेण चुनाव जीतना है। उसे राज्य की आत्मनिर्भरता और तरक्की से कोई मतलब नहीं है।

कांग्रेस से अलग छत्तीसगढ़ में जारी किया गया भाजपा का संकल्पपत्र है जिसमें राज्य को नक्सलमुक्त, शिक्षित, स्वस्थ, विकसित और कृषि सम्पन्न बनाने का वादा है। महिलाओं को स्वरोजगार के लिए दो लाख रुपये की आर्थिक मदद देने और पत्रकार कल्याण बोर्ड का गठन करने का भी वादा है। छत्तीसगढ़ फिल्म सिटी का निर्माण का सपना है। 24 घंटे बिजली देने, 5 वर्षों में किसानों को 2 लाख नए पंप कनेक्शन, दलहन और तिलहन किसानों से न्यूनतम समर्थन मूल्य पर खरीद आदि के भी वादे हैं। इन संकल्पों से राज्य की अर्थव्यवस्था पर भार तो पड़ता है लेकिन वह एकतरफा हरगिज नहीं है। लाभार्थी श्रम एवं पुरुषार्थ से जुड़ रहे हैं।

अनुसूचित जाति एवं जनजाति के बच्चों हेतु गुरु घासीदास एवं अमर शहीद गुंडाधुर छात्रवृत्ति योजना, निराश्रित पेंशन राशि में वृद्धि, कक्षा 9वीं में प्रवेश लेने वाले सभी छात्र-छात्राओं को मुफ्त साइकिल, 12वीं तक सभी छात्र-छात्राओं को निशुल्क ड्रेस और किताबें, मेधावी छात्राओं को यातायात में सुविधा देने हेतु निःशुल्क स्कूटी, महिलाओं को व्यापार हेतु 2 लाख और स्वयं सहायता समूहों को 5 लाख तक ब्याज लाख मुक्त ऋण देने का संकल्प जताया गया है। इसी तरह संकल्प पत्र में जिला अस्पतालों को मल्टी स्पेशलिटी, जगदलपुर और अंबिकापुर में सुपर स्पेशलिटी अस्पताल खोलने, युवाओं को कौशल उन्नयन भत्ता देने, 200 करोड़ रुपये के उद्यमिता मास्टर फंड की स्थापना करने आदि का भी संकल्प व्यक्त किया गया है। इस तरह की व्यवस्था से राज्य पर आर्थिक भार पड़ना स्वाभाविक है लेकिन इसमें विकास का विजन भी है।

किसी भी जनहितकारी सरकार से इस बात की उम्मीद तो की ही जानी चाहिए। संकल्प और वचन दरअसल एक ही सिक्के के दो पहलू हैं। संकल्प को पूरा करने की बाध्यता होती है जबकि वचन को अनिवार्यतः पूरा करना होता है लेकिन सर्वोपरि है दृष्टिकोण। किसी भी प्रदेश को विकास ही नहीं, विकास की निरंतरता की भी जरूरत है। चुनाव जीतने के लिए बड़ी-बड़ी घोषणाएं कर देना ही काफी नहीं है, उन्हें पूरा कैसे किया जाएगा, विचार तो इस पर भी होना चाहिए। पार्टियों के वादे जनता पर भारी पड़ें, यह नहीं होना चाहिए।

Updated : 12 Nov 2018 1:46 PM GMT
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Swadesh Digital

स्वदेश वेब डेस्क www.swadeshnews.in


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