तनाव की गिरफ्त में युवा पीढ़ी…

तनाव की गिरफ्त में युवा पीढ़ी…
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घर-परिवार में जब कोई गंभीर विचार-मंथन चलता है, तब कोई तरुण या युवा उस गंभीर वैचारिकी में शामिल होकर अपनी बात रखने लगता है, तो परिवार के बड़े सदस्य यह कहकर उन्हें उससे दूर करने का प्रयास करते हैं कि अभी आपके खेलने-पढ़ने के दिन हैं। यही नहीं, घर-परिवार से बाहर सामाजिक परिवेश में भी यही माना जाता है कि तरुण और युवाओं की एक बड़ी आबादी अपनी पढ़ाई-लिखाई, मौज-मस्ती और व्यस्तताओं के बीच हर तरह के तनाव से मुक्त है, क्योंकि उनके हिस्से की जवाबदेही और चिंताओं का भार उठाने वाले माता-पिता, परिजन या बड़े भाई-बहन मौजूद होते हैं।

लेकिन तेजी से यह पूरा मानस बदलता नजर आ रहा है, क्योंकि जिस तेज गति से तनाव की गिरफ्त में आकर शिक्षित युवा और प्रौढ़ ही नहीं, अब तो तरुण से लेकर प्राथमिक कक्षा के बच्चे भी कम नंबरों के कारण अपनी जीवनलीला खत्म करने में देर नहीं लगाते। ऐसे में सामाजिक दायरा उन गंभीर चुनौतियों की तरफ संकेत कर रहा है, जिनके कारण देश की एक बड़ी आबादी डिप्रेशन के साथ ही अन्य तरह की चिंताओं और समस्याओं का शिकार हो रही है।

हर कोई यह मानकर चलता है कि सामान्य विद्यार्थी या युवाओं में खिलाड़ी ही सबसे ज्यादा स्वस्थ होते हैं, सिर्फ तन-मन से ही नहीं, बल्कि मानसिक रूप से भी पूर्ण स्वस्थ होते हैं। लेकिन मध्यप्रदेश के देवास में आठ माह के अंतराल में खेल जगत से जुड़ी ऐसी दो घटनाएं सामने आईं, जिन्होंने चिंता की एक बड़ी खाई समाज के समक्ष खड़ी कर दी है। अंतरराष्ट्रीय स्तर पर खेले जाने वाले जु-जित्सु नामक खेल में पारंगत और मार्शल आर्ट कोच रोहिणी कलम ने महज 35 वर्ष की आयु में अपनी जीवनलीला समाप्त कर ली। रोहिणी ने अंतरराष्ट्रीय प्रतियोगिता में कांस्य पदक भी जीता था।

इससे पहले 11 फरवरी को कराटे की राष्ट्रीय खिलाड़ी स्वाति शिंदे ने भी आत्महत्या कर ली थी। स्वाति ने विवाह वर्षगांठ से एक दिन पहले यह लोमहर्षक कदम उठाया था। ऐसे में एक ही शहर में इतनी कम समयावधि में दो महिला खिलाड़ी अपनी जीवनलीला समाप्त कर रही हैं, तो यह समाज के साथ ही बदलते परिवेश को लेकर चिंताजनक स्थिति बनता है।

रोहिणी कलम ने यह कदम क्यों उठाया, यह तो जांच के बाद ही सामने आएगा। लेकिन आज देश का हर पांचवां किशोर डिप्रेशन का शिकार माना जा रहा है। भारत के लिए यह रिपोर्ट डराने वाली तो है ही, युवा पीढ़ी के लिहाज से भी चिंताजनक है। किशोरों में बढ़ती तनाव की यह प्रवृत्ति अमूमन शहरी और ग्रामीण क्षेत्रों दोनों में गंभीरता के स्तर पर पहुंच रही है। 10 से 19 वर्ष की उम्र वालों का डिप्रेशन के भंवर में फंसते चले जाना राष्ट्रीय चिंता का विषय है, क्योंकि जब किसी भी तरह के मानसिक विकास में बाधा आती है, तब इस तरह की घटनाएं बढ़ना स्वाभाविक है।

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